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Wednesday, 20 November, 2024
होमसमाज-संस्कृतिद हिडन हिंदू : लाई डिटेक्टर मशीन पर कैसे सभी को हैरत में डालता है औघड़ी ओम शास्त्री

द हिडन हिंदू : लाई डिटेक्टर मशीन पर कैसे सभी को हैरत में डालता है औघड़ी ओम शास्त्री

शाहिस्ता पूछा 'तुम ओम् शास्त्री के रूप में वाराणसी में क्या कर रहे थे?' 'खोज.' 'खोज! किसकी?' 'सुभाष चंद्र बोस की.' सभी सहकर्मियों ने आश्चर्य से एक-दूसरे की ओर देखा. शाहिस्ता नहीं जानती थीं कि वे आगे क्या पूछें या कहें?

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डॉ. श्रीनिवासन ओम् के पीछे की ओर कुर्सी पर बैठ गए. ‘चिन्ना, कृपया ऐसा न करें. आप मुझसे जो भी पूछोगे, मैं उसमें सहयोग करने के लिए तैयार हूं.’ ओम् शास्त्री ने विनती की. उसकी नजर डॉ. श्रीनिवासन की ओर इशारा करते हुए छत की ओर टिकी हुई थी. डॉ. श्रीनिवासन ने डॉ. शाहिस्ता और डॉ. बत्रा की ओर देखा. उन दोनों के चेहरों ने भी इसी बात को व्यक्त किया. ‘कृपया शुरू करें.’ डॉ. श्रीनिवासन ने असहमति जताते हुए नाराजगी के साथ आदेश दिया. उनके
चेहरे पर ‘चिन्ना’ शब्द सुनकर झुंझलाहट स्पष्ट रूप से दिख रही थी. ओम् को फिर से दवा देकर दोबारा पूछताछ
शुरू की गई. पहला सवाल परिमल के लिए ध्यान देने और उसे दूसरों को उसका मतलब समझाने के लिए था. ‘तुमने विष्णु गुप्त के रूप में क्या सलाह दी थी?’ शाहिस्ता ने बेहोश ओम् से पूछा. ओम् ने संस्कृत का श्लोक दोहराया—

व्याघ्रीव तिष्ठति जरा परितर्जयन्ती
रोगाश्च शत्रव इव प्रहरन्ति देहम्.
आयुश्च परस्वितभिन्नघटादिवाम्भः
लोकस्तथाप्यहितमाचरतीति चित्रम्॥

डॉ. शाहिस्ता परिमल की ओर देख रही थीं. उसने अगूंठे के इशारे से काम हो जाने का संकेत दिया. ‘तुमने विष्णु गुप्त के रूप में किसे सलाह दी थी?’ ‘चंद्रगुप्त मौर्य को.’ ‘तुम ओम् शास्त्री क्यों बने? ‘अपनी असली पहचान छिपाए रखने के लिए.’ ‘किससे?’ ‘इस दुनिया से.’ ‘तुम्हारी वास्तविक पहचान क्या है?’ डॉ. शाहिस्ता छुपे हुए उत्तर पता लगाने में सक्षम थीं. ‘मेरी सभी पहचानें वास्तविक हैं.’ शाहिस्ता ने इस पर मानसिक रूप से गौर किया—‘मेरी सभी पहचानें वास्तविक हैं.’
‘तुम ओम् शास्त्री के रूप में वाराणसी में क्या कर रहे थे?’ ‘खोज.’ ‘खोज! किसकी?’ ‘सुभाष चंद्र बोस की.’ सभी सहकर्मियों ने आश्चर्य से एक-दूसरे की ओर देखा. शाहिस्ता नहीं जानती थीं कि वे आगे क्या पूछें या कहें? ‘यह बहुत अजीब होता जा रहा है’, ऐसा उन्होंने सोचा. आखिर में उन्होंने एक लंबी सांस ली और आगे बोलीं, ‘सुभाष चंद्र बोस मर चुके हैं.’ ‘नहीं, वे मरे नहीं हैं. वे बस, एक दूसरे नाम के साथ रह रहे हैं.’ ओम् ने दृढ़ता के साथ कहा.

‘तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि वह मरे नहीं हैं और किसी और नाम के साथ जी रहे हैं?’ मैं ऐसा सोचता नहीं हूं; मैं जानता हूँ.’ ‘तुम्हें इस बात पर इतना विश्वास कैसे है?’ शाहिस्ता ने पूछा. ‘क्योंकि मैं उन्हें महाभारत काल से जानता हूं.’ शाहिस्ता ने आंखें घुमाते हुए सोचा कि इस बात का कोई सिर-पैर नहीं है. ‘तुम उन्हें क्यों ढूंढ़ रहे हो?’ इस प्रश्न के जवाब ने अभिलाष को हिलाकर रख दिया. ‘क्योंकि वह अश्वत्थामा हैं.’ ‘अश्व…क्या?’ शाहिस्ता को समझ नहीं आया. अभिलाष अश्वत्थामा का नाम सुनकर उसकी बात गौर से सुनने लगा और शाहिस्ता की ओर आने लगा. ‘अश्वत्थामा.’ ओम् ने दोहराया. ‘उससे पूछिए कि वह किस अश्वत्थामा की बात कर रहा है?’ अभिलाष ने शाहिस्ता के कान में धीरे से कहा. ‘द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा, जो कृष्ण के द्वारा दिए गए शाप से अमर हैं.’ ओम् ने बिना शाहिस्ता के कुछ बोले जवाब दिया. डॉ. शाहिस्ता केवल ‘कृष्ण’ ही समझ पाईं. अभिलाष डॉ. बत्रा की ओर मुड़कर बोला, ‘इसकी बातों का कोई मतलब नहीं बन रहा है.’


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शाहिस्ता ने पूछा, ‘तुम और किसकी तलाश कर रहे हो?’ टूटती हुई आवाज के साथ उसने बताया, ‘परशुराम की.’ इन सबको उन्होंने फिजूल समझते हुए पूछताछ जारी रखी. ‘विष्णु गुप्त एक कोड नेम जैसा प्रतीत होता है.’ डॉ. बत्रा ने गंभीर विचार करते हुए कहा. ‘या हो सकता है, वह मानसिक रूप से अस्वस्‍थ हो या दोहरे व्यक्तित्व का मरीज हो अथवा फिर थोड़ा पागल हो!’ उन्होंने आगे कहा. ‘यह पुनर्जन्म का मामला भी हो सकता है.’ अभिलाष ने पौराणिक दृष्टिकोण के साथ कहा. डॉ. बत्रा ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया.

‘तुमने ओम् नाम से पहले और किन नामों का उपयोग किया है?’ शाहिस्ता ने पूछा. ‘गोविंदलाल यादव, भैरव सिंह, सुवर्ण प्रताप रेड्डी, बंकिमचंद्र चक्रवर्ती, गुरशील सिंह खुल्लर, विदुर, ओम् शास्त्री, हातिम अली मौलवी, प्रोतीम दास, विष्णु गुप्त, कबीर, सुषेण, जयशंकर प्रसाद, मधुकर राव, अधिरैयन.’ ओम् ने रटी हुई कविता की तरह बताया. उसका उच्चारण, लहजा और चेहरे के भाव प्रत्येक नाम के साथ बदल रहे थे. भैरव सिंह, हातिम अली मौलवी, गुरशील सिंह खुल्लर एवं सुवर्ण प्रताप रेड्डी ताकत और बहादुरी के स्वर में बोले गए थे. बंकिमचंद्र चक्रवर्ती बंगाली तरीके से, कबीर और सुषेण शांति की लहर के साथ बोले गए थे. उस कमरे में हर कोई उसकी स्वाभाविक और त्रुटि-रहित प्रतिक्रिया से अचंभित था. यहां तक कि सबसे अच्छे अभिनेता भी यह इतने अच्छे से नहीं कर सकते थे.

शाहिस्ता ने तनाव दर्शाते हुए अपना सिर पकड़ लिया. डॉ. श्रीनिवासन भी पहली बार हैरान थे. एल.एस.डी. ने ओम् के द्वारा बोले गए सभी नामों को लिख लिया था. परिमल शाहिस्ता द्वारा लिखे गए नोट्स को पढ़ रहा था. परिमल के मन में अचानक कुछ आया और वह डॉ. बत्रा के पास गया. इस दौरान ओम् अर्द्ध-मूर्च्छित अवस्था में नाम ले रहा था. ‘स…सर, जब ओम् ने वि…विष्णु गुप्त का नाम लिया था, मुझे विश्वास था कि वह 300 ईसा पूर्व के समय की बात कर रहा है; क्योंकि विष्णु गुप्त चाणक्य का असली नाम था. औ…और वह चंद्रगुप्त मौर्य का मुख्य सलाहकार था. आप मुझे पा…पागल समझ सकते हैं, लेकिन…’ परिमल ने अपने सामान्य अनिश्चित स्वर में कहा. लेकिन उसे बीच में ही रोकते हुए डॉ. बत्रा ने कहा, ‘नहीं परिमल, मैं तुम्हें पागल नहीं समझता हूं; बल्कि यदि यह वास्तव में चाणक्य के बारे में बात कर
रहा है तो यह उसी बंदा बहादुर के बारे में बात कर रहा था, जिसे मैंने सोचा था, किंतु विश्वास नहीं किया. मुझे बंदा बहादुर के बारे में भी कुछ पुष्टि करने की आवश्यकता है. मुझे थोड़ा समय दो.’

डॉ. बत्रा ने फोन पर कॉल करने के लिए क्षमा मांगते हुए कहा. एल.एस.डी. परिमल के पास आई. वह बहुत उत्साहित लग रही थी. ‘मैंने तुम्हारी बातचीत सुन ली थी. 300 ईसा पूर्व, मतलब 2317 साल पहले. है ना?’ एल.एस.डी. हवा में हिसाब लगाती हुई बोली. ‘क्या यह संभव है कि वह समय में आगे या पीछे जा सकता है?’ एल.एस.डी. के उत्तेजित
अनुमान के कारण मानो उसकी आंखें बाहर आ गई हों. उस विचार ने परिमल को कुपित कर दिया और वह चिढ़कर बोला, ‘वह ए…एक धो…धोखेबाज के अलावा कु…कुछ भी नहीं है.’

‘बीजी, सतश्री अकाल!’ (नमस्ते मां) डॉ. बत्रा फोन पर सामान्य से ज्यादा ऊंची आवाज में बात कर रहे थे, क्योंकि उनकी 80 वर्षीया मां को सुनने में तकलीफ होती थी. डॉ. बत्रा की आवाज इतनी ऊंची थी कि सब उन्हें सुन सकते थे और चूंकि वहां बहुत शांति थी, सभी लोग आसानी से और ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे. यहां तक कि एल.एस.डी. ने भी अपना
काम रोक दिया, जिससे की-बोर्ड पर बटनों की भी आवाज आनी बंद हो गई थी. ‘जिंदा रह पुत्तर!’ (जीते रहो पुत्र) दूसरी ओर से एक बूढ़ी आवाज आई. ‘इक गल दस्सो मैनू, बंदा बहादुर कौन सी?’ (मुझे एक बात बताओ, यह बंदा बहादुर कौन था?) डॉ. बत्रा ने पंजाबी में पूछा. ‘पुत्तर, बंदा सिंह बहादुर, श्री गुरु गोविंद सिंह जी दा जरनेल सी.’ (बेटा, बंदा सिंह बहादुर, गुरु गोविंद सिंह जी के प्रधान थे) एक साथ दो आवाजों में बहुत आदर व सम्मान के साथ जवाब आया. एक आवाज बूढ़ी मां की थी. जब डॉ. बत्रा ने दूसरी आवाज सुनी तो उन्होंने पीछे मुड़कर देखा और वे तुरंत समझ गए कि वह किसने बोला था. वे ओम् को सभी सवालों के जवाब, जो वे अपनी मां से पंजाबी में पूछ रहे थे, देते देख चौंक उठे; क्योंकि ओम् उनका जवाब अर्द्ध-मूर्च्छित अवस्था में ऐसे दे रहा था, जैसे वे सवाल उससे किए गए हों! यह असाधारण था. डॉ. बत्रा के पैर डगमगा रहे थे, क्योंकि जो कुछ भी हो रहा था, वे उसकी व्याख्या करने में विफल थे. वे पहले से ही बहुत कष्ट में थे और जल्द-से-जल्द इस जंजाल से बाहर निकलना चाह रहे थे.

‘उन्ना दा इंतकाल किस तरह होया सी?’ (उनकी मौत कैसे हुई थी?) डॉ. बत्रा ने अपनी मां से फोन पर धीरे से पूछा, लेकिन ओम् को ध्यान से देख रहे थे. ‘उन्ना नू मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने मरवाया सी.’ (उन्हें मुगल बादशाह, फर्रुखसियर द्वारा मरवाया गया था) उनके फोन से और उनके पीछे से आवाज आई. इससे डॉ. बत्रा हैरान रह गए और उन्होंने अपनी बातचीत को दूर से जारी रखने का फैसला किया, जहां से उन्हें सुना न जा सके. वे कमरे से बाहर चले गए. कमरे में सभी लोग हैरान थे. वे इस बात की पुष्टि कर सकते थे कि वह प्राचीनकाल की बात कर रहा था और सभी सवालों के जवाब उसी भाषा में दे रहा था, जिसमें वे पूछे जा रहे थे—पंजाबी; लेकिन कोई नहीं जानता था कि
क्यों?

वहां की शांति भंग करते हुए वीरभद्र अंदर आया. वह हांफ रहा था, जिससे पता लगा कि वह भागते हुए आया था.
उसने एक बार ओम् शास्त्री को देखा और लंबे-लंबे कदम रखता हुआ अंदर बढ़ता गया. ‘ऐमी ऐंदी?’ (क्या हुआ?) डॉ. श्रीनिवासन ने तेलुगू में पूछा. वीरभद्र के हाव-भाव देखकर उन्हें सबको बातचीत में शामिल करना ठीक नहीं लगा. ‘वर्शम पडतोंदी!’ (बारिश हो रही है!) भयभीत वीरभद्र ने जवाब दिया. ‘आइते?’ (तो क्या हुआ?) डॉ. श्रीनिवासन ओम् शास्त्री को लेकर पहले ही बहुत परेशान थे, उन्हें एक नया नाटक नहीं चाहिए था. ‘अतन‌िकी गंटल कृतम येला तेलुसिंडी?’ (उसे घंटों पहले ही यह बात कैसे पता थी?) वीरभद्र ने ओम् की तरफ इशारा करते हुए पूछा. ओम् ने भी उसी भाषा में कुछ बोलना शुरू कर दिया— ‘मेल्लागा उष्‍णोग्रिता मूंडू 2 डिग्री तगिंद्दी तरवाता इंडा 5 डिग्री वरूकु तग्गुमुखम पडींदी. घाली लो तेमा अनिपिनचिन्दी, तडी मट्टी सुवासना वोचिंदी. घाली 40 किलोमीटर वेगम तो वोस्तोंदी वर्षम वोस्तोंदी अनी अनुकुनानु.’ (तापमान 2 डिग्री नीचे गिर गया था, उसके बाद और 5 डिग्री. हवा 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने लगी थी. मैं हवा में उमस महसूस कर सकता था और गीली मिट्टी की सुगंध भी. इसलिए मैंने अनुमान लगाया कि बारिश होगी.) ओम् शास्त्री ने निश्चित रूप से उत्तर दिया.

‘आप सब लोग क्या बात कर रहे हो?’ डॉ. बत्रा ने बीच में कमरे में प्रवेश करते हुए कहा. बाकी सब भी बेसब्री से जवाब का इंतजार कर रहे थे. वीरभद्र ने डॉ. बत्रा और बाकी लोगों को समझाना शुरू किया. तभी डॉ. श्रीनिवासन ने कहा,
‘कुछ नहीं.’ किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. डॉ. शाहिस्ता एक बार फिर परेशान थीं कि वे ओम् शास्त्री से क्या पूछें; और इसलिए वे अगले आदेश के लिए अपने बॉस की ओर देख रही थीं. एक घंटा पूरा होने को आया था और जैसी कि डॉ. बत्रा को उम्मीद थी, ओम् शास्त्री ने फिर से होश में आने का संकेत दिया. सेशन खत्म हो चुका था. शाम होने वाली थी. कुछ भी योजना के अनुसार नहीं हुआ और उनके पुराने सवालों की जगह अब नए सवाल खड़े हो गए थे. इनमें से अधिकतर सवालों के जवाब उन लोगों के पास थे, जो जान-बूझकर उन्हें छुपा रहे थे. ‘हमें बात करने की जरूरत है.’ डॉ. बत्रा ने डॉ.
शाहिस्ता से कहा. ‘हम सबको बात करने की जरूरत है.’ डॉ. शाहिस्ता ने थक-हारकर कहा. ओम् शास्त्री फिर से होश में आ गया था.

ये किताब प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित हुई है और इसकी कीमत 250 रुपये है.

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