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मंगलवार, 17 जून, 2025
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दिल्ली में आम की चार हज़ार रुपये वाली महफिल में दास्तान, दस्तरख़ान और दुविधाएं

कार्यक्रम का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कश्कोल कलेक्टिव द्वारा किया गया था. इसमें संगीत, कविता और आम से तैयार पांच-कोर्स का भोजन था. हर व्यंजन एक अलग राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहा था.

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नई दिल्ली: हर किसी के पास आम की कहानी है — यहां तक कि ग़ालिब और बुद्ध के पास भी. और सिर्फ आम के प्रति प्रेम ही लोगों को शनिवार की शाम को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 40 डिग्री की गर्मी में तीन घंटे तक बैठे रहने के लिए प्रेरित कर सकता है.

सीखने के लिए थोड़ा, सुनने के लिए बहुत कुछ और प्यार करने के लिए बहुत-बहुत कुछ, लेकिन आम की तरह ही, प्रोग्राम के कुछ हिस्से थोड़े खट्टे हो गए. भारत के आमों पर एक प्रस्तुति, दास्तानगोई, एक घंटे से ज़्यादा चली, जिससे बातचीत में देरी हुई. लगभग 100 लोगों की भीड़ में, कई लोगों को आम के बारे में सुनना बहुत मुश्किल लगा. हालांकि, कुछ लोग हंसे भी. बज़्म-ए-आम में, आमों पर चर्चा — प्रोग्राम का हिस्सा — 24 मिनट से ज़्यादा नहीं चली और यह मौजूद लोगों की नज़रों से ओझल नहीं रहा.

अशहर हक द्वारा प्रस्तुत दास्तान-ए-अंबा नामक दास्तानगोई इतिहास, बुद्धि और कविता से भरपूर थी. उन्होंने ग़ालिब से लेकर मुगल यादों और लोक कथाओं तक — हर युग में आम की यात्रा का ज़िक्र किया. हालांकि, कई लोग, जो पहले से ही इन कहानियों को जानते थे और गहराई और संदर्भ की तलाश में थे. हास्य और शायरी के कुछ पल थे, जिससे कुछ टेबलों पर हंसी के ठहाके लगे.

अशहर ने अपनी दास्तान में शेर पढ़ा, “जन्नत हमें कुबूल है मगर एक शर्त पर, आम की कलम का हिसाब हमारे साथ जाए.”

कार्यक्रम का आयोजन कला और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले दिल्ली स्थित समूह कश्कोल कलेक्टिव ने किया था. इसमें संगीत, कविता और आम से तैयार पांच-कोर्स का भोजन था. हर व्यंजन एक अलग राज्य का प्रतिनिधित्व करता था और लोग बेसब्री से इसका इंतज़ार कर रहे थे. कार्यक्रम की शुरुआत में लोगों को आम का पन्ना परोसा गया.

इस सभा में सोपान जोशी की किताब Mangifera Indica: A Biography of the Mango की कहानियां भी शामिल की गईं, जो फल के समृद्ध सांस्कृतिक और पारिस्थितिक इतिहास का पता लगाती है. इसे पिछले साल लॉन्च किया गया था.

सोपान जोशी की किताब Mangifera Indica: A Biography of the Mango | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
सोपान जोशी की किताब Mangifera Indica: A Biography of the Mango | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

दास्तान-ए-अंबा के बाद, ‘आम के सांस्कृतिक जीवन’ पर एक पैनल चर्चा में इतिहासकार सोहेल हाशमी और पर्यावरणविद् और लेखक सोपान जोशी ने फल के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहलुओं पर चर्चा की. 24 मिनट की बातचीत में, उन्होंने व्यक्तिगत स्मृति और सांस्कृतिक विरासत को एक साथ पिरोया.

जोशी ने कहा, ‘‘जब हम आम के बारे में बात करते हैं, तो लोग इसके बारे में अपने बचपन की कहानियां सुनाना शुरू कर देते हैं. दो-तीन पीढ़ियों पहले, आमराई (आम का बगीचा) उनका बुनियादी ढांचा हुआ करता था. बारात वहां आती थी, कुश्ती वहां खेली जाती थी और यहां तक कि प्रेमी जोड़े भी वहीं मिलते थे. यही वजह है कि लोग आम के बारे में इतने जोश से बात करते हैं.’’

 

वेज मैंगो, नॉन-वेज मैंगो

हाशमी ने बताया कि दिल्ली के लोगों को आम की अलग-अलग किस्मों के बारे में बहुत कम जानकारी है.

सोहेल हाशमी ने कहा, “आम तौर पर, दिल्ली के लोग सिर्फ चार तरह के आमों से परिचित हैं — सफेदा, लंगड़ा, चौसा और दशहरी. ज़्यादातर दिल्लीवासी रतौल, सरोली या गोला खिमुद्दीन जैसी किस्मों के बारे में नहीं जानते. मैंने लोगों को बस ट्रिप पर ले जाना शुरू किया ताकि वह इन आमों के बारे में जान सकें और उनका स्वाद ले सकें. इन ट्रिप्स के ज़रिए आमों के साथ मेरा रिश्ता और गहरा होता गया. एक बार सोपान मेरे साथ थे और उन्होंने मुझसे कहा कि वे आमों पर एक किताब लिखना चाहते हैं. यह किताब उसी का नतीजा है.”

उन्होंने आम की महिमा का वर्णन करते हुए एक नज़्म पढ़ी:

“जो आम में है वो लब-ए-शीरीन में नहीं,

रस, रेशों में हैं जो शेख की दाढ़ी से मुक़द्दस.

आते हैं नज़र आम, तो जाते हैं बदन कस,

लंगड़े भी चले जाते हैं, खाने को बनारस.”

हालांकि, गर्मी और कार्यक्रम के मैनेजमेंट ने कुछ लोगों को निराश कर दिया.

वहां मौजूद लोगों में से एक सपना ने कहा, “मैंने इस प्रोग्राम के लिए 4,000 रुपये दिए हैं, लेकिन यह इसके लायक नहीं था. पहला हिस्सा लंबा हो गया. मुझे चर्चा पसंद आई, लेकिन यह बहुत छोटी थी. गर्मी बिल्कुल भी मदद नहीं कर रही थी. कार्यक्रम ने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया, लेकिन आप ऐसी चीज़ों से सीखते हैं.”

एक म्यूजिक सेशन जिसमें ढोलक रानी समूह द्वारा प्रस्तुत राग और लोकगीत शामिल थे, जिसका नेतृत्व गायिका शिवांगिनी यशु युवराज ने किया, कार्यक्रम के आखिरी में रखा गया. इसमें क्षेत्रीय लोकगीत थे जिनमें आम का उल्लेख था. कलाकारों के प्रदर्शन के दौरान, मौजूद लोग, जो अब तक अपने खाने के समय से काफी आगे निकल चुके थे, बुफे एरिया में चले गए. यह भारत के विभिन्न हिस्सों से आम के व्यंजनों का गुलदस्ता था.

बिहार से आम कूचा (कच्चे आम की चटनी), लखनऊ से अचराज नामक आम और मटन कीमा व्यंजन. कुछ अन्य व्यंजनों में बिहार से आम कटहल की सब्जी, मणिपुर से चटनी और सलाद और गुजराती-पारसी व्यंजन रस-नो-फजेटो और राजस्थान से आम की खीर शामिल थी.

हालांकि, आयोजकों ने शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजनों को अलग-अलग नहीं किया. जैसे ही लोग व्यंजनों का लुत्फ उठा रहे थे, उद्घोषक ने एक ज़रूरी आवाज़ लगाई: “अचराज एक नॉन-वेज डिश है. वेजिटेरियन इसे न खाएं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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