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Saturday, 21 December, 2024
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सारे मसाले, बेहिसाब स्पेशल इफेक्ट, आधा दर्जन सुपरस्टार लेकिन ‘ब्रह्मास्त्र’ में स्टोरी कहां है

ब्रह्मास्त्र की कहानी में तर्क यानी लॉजिक ढूंढने की जरूरत नहीं है. लॉजिक इसमें है भी नहीं. इस तरह की फिल्मों में लॉजिक की जरूरत भी नहीं होती.

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जब सब कुछ फेल हो रहा हो, स्टार डायरेक्टर, बड़े सुपरस्टार, संगीतकार, स्क्रिप्ट लेखक, स्पेशल इफेक्ट के उस्ताद, किसी का भी जादू न चल रहा हो, सारे तारे धरती पर गिरे पड़े हों, कोई भी फिल्म न चल रही हो तो बॉलीवुड क्या करे? इस सवाल का एक जवाब ये हो सकता है कि सब कुछ, यानी सारे मसाले, ढेर सारे सुपरस्टार, खूब सारे इफेक्ट एक साथ किसी फिल्म में डाल दें.

इस तरह जो फिल्म बनी है, वह है ब्रह्मास्त्र. ये बॉलीवुड का पिछले तीन साल का सबसे बड़ा नहीं भी तो, सबसे महंगा दांव है. सबसे बड़ा दांव तो शायद आमिर खान और करीना कपूर की लाल सिंह चड्ढा थी, जो बुरी तरह पिट गई. ये अच्छी बात है कि ब्रह्मास्त्र फिल्म से वैसे कई दर्शक अरसे बाद सिनेमाघरों में लौटे हैं, जो सिनेमाघरों खासकर मल्टिप्लेक्स में बॉलीवुड की फिल्में नहीं देख रहे थे. लेकिन ये फिल्म हिट या सुपरहिट बन पाएगी, ऐसा लगता नहीं है. अगर ये अपनी लागत वसूल ले तो ये बड़ी बात होगी, क्योंकि ये बेहद महंगी लागत वाली फिल्म है.

इस फिल्म को स्पेशल इफेक्ट के लिए देखा जा सकता है. लेकिन सिर्फ स्पेशल इफेक्ट के लिए क्या कोई फिल्म देखी जा सकती है? इसमें पिज्जा या पराठे की तरह का एक अस्त्र है, जिसे फिल्म में सारे लोग ब्रह्मास्त्र कहते हैं. हवा में उड़ते हीरो और विलेन है. आग बरसती है और बरसात में बुझ भी जाती है. इस एक फिल्म में जितनी आग दिखाई गई है, वह भी शायद कोई रिकॉर्ड ही हो.

फिल्म की कहानी में तीन सेंट्रल थीम हैं. अच्छाई और बुराई की जंग है, जिसमें कई बार बुराई का पलड़ा भारी नजर आता है पर अंत में अच्छाई की जीत होती है. दो, प्यार बहुत बड़ी चीज है. ये ब्रह्मास्त्र से भी ज्यादा ताकतवर है. जब प्यार की शक्ति जगती है (कैसे ये न पूछिए) तो सारे अस्त्र, यहां तक कि ब्रह्मास्त्र भी फेल हो जाता है. और तीन, गरीब अनाथ हीरो रणबीर को एक दिन अचानक एक बेहद अमीर लड़की आलिया मिलती है, जो पहले ही दिन से जाने क्यों और कैसे उसकी दीवानी हो जाती है. अमीर लड़की और अनाथ लड़के की ये लव स्टोरी फिल्म में लगातार चलती रहती है. हालांकि बाद में जैसा कि होता है कि हीरो को पता चलता है कि वह उतना अनाथ भी नहीं है, जितना कि शुरू में लगता है.

ये तीनों थीम या विषय को अपनाकर अब तक सैकड़ों फिल्में सफल हो चुकी हैं. बॉलीवुड का ये परमानेंट खाद-पानी रहा है. ब्रह्मास्त्र में ये तीनों फॉर्मूले एक साथ हैं. साथ में ढेर सारे सितारे, शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, नागार्जुन, डिंपल कपाड़िया, इनके अलावा स्पेशल इफेक्ट और वीएफएक्स का ओवरडोज है और कई बार ये एनिमेशन फिल्म या वीडियो गेम की फीलिंग भी देती है. इस फिल्म को देखने के बाद ये कहा जा सकता है कि बॉलीवुड स्पेशल इफेक्ट में किसी भी और फिल्म इंडस्ट्री को टक्कर दे सकता है. फिल्म के गाने सुरीले हैं. बॉलीवुड में अरसे बाद ऐसे गाने आए हैं, जिन्हें गुनगुनाया जा रहा है. हालांकि सुपरहिट गाना कोई नहीं है.

जहां तक कहानी की बात है तो इसमें मिथक, धर्मशास्त्र, कल्पना और आधुनिक जीवन को साथ में मिलाया गया है. ब्रह्मांश नाम का एक समूह है कि जो ब्रह्मास्त्र का रक्षक है. ये दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार है, जिसे ऋषियों ने तप करके बनाया है और जिसे एक बुरी शक्ति पाने की कोशिश कर रही है जो शायद मर चुकी है. इस बुरी शक्ति के अपने सेनापति हैं और उनमें जुनून भी है. लेकिन एक गुरुजी हैं जो अपने योद्धा तैयार कर रहे हैं ताकि ब्रह्मास्त्र को बुरे हाथों में जाने से रोका जा सके. आर्टिस्ट और साइंटिस्ट भी हैं. इनके पास अपने अस्त्र भी हैं. बीच में रणबीर और आलिया की लव स्टोरी भी चलती रहती है.

कहानी में तर्क यानी लॉजिक ढूंढने की जरूरत नहीं है. लॉजिक इसमें है भी नहीं. इस तरह की फिल्मों में लॉजिक की जरूरत भी नहीं होती.

फिल्म मौजूदा राजनीतिक माहौल को ध्यान में रखकर बनाई गई है. ये धार्मिक फिल्म के आसपास नजर आती है. फिल्म में धार्मिक त्यौहार, देवी-देवता, तीर्थस्थल पृष्ठभूमि में लगातार रहते हैं. फिल्म में ऐसा कुछ भी न करने की सचेत कोशिश की गई है, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए. फिल्म में न कोई मुसलमान है, न ईसाई और न ही कोई नास्तिक. जाति का जिक्र एक बार आया है, जब आलिया बताती है कि उसका परिवार पंडितों का है. लेकिन जाति का कोई टकराव नहीं है. अमीर और गरीब सब मिलकर रहते हैं. प्रेम करते हैं. विचारधारा या राजनीति के पचड़ों में फिल्म नहीं पड़ती. इसे पूरी तरह से वनिला यानी मासूम फिल्म बनाने की कोशिश की गई है.

इस फिल्म को सिर्फ सफल होने के लिए बनाया गया है. इसलिए फिल्म के निर्माण और तकनीकी या कला पक्ष पर बात करने से ज्यादा जरूरी है ये देखना कि क्या लोग इसे देखने सिनेमाघरों में आ रहे हैं और क्या उन लोगों की संख्या इतनी है कि वे इस फिल्म को सफल बना दें. इसलिए फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर नजर रखें.

(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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