scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमसमाज-संस्कृतिसीता दोराईस्वामी जिन्होंने 60 के दशक में जलतरंगम परंपरा को खत्म होने से बचाए रखा

सीता दोराईस्वामी जिन्होंने 60 के दशक में जलतरंगम परंपरा को खत्म होने से बचाए रखा

41 साल की उम्र में ऑल इंडिया रेडियो में जलतरंगम कलाकार बन गईं, अपने पहले प्रदर्शन के साथ उनकी खूब प्रशंसा की गई.

Text Size:

नई दिल्ली: मदीसर साड़ी पहने, पैर तिरछे कर मिट्टी के बर्तनों के इर्द-गिर्द बैठीं एक बुजुर्ग महिला दोनों हाथों में बांस की कुछ डंडियों को लिए बैठी बहुत प्यारी धुन बजाती हैं. इन डंडियों को वो कटोरों के किनारे पर प्यार से सहलाती हैं जिससे पानी की तरंगों की आवाज पैदा होती है जिसे ‘जलतरंगम’ भी कहते हैं.

सीता दोराईस्वामी एक प्रसिद्ध कर्नाटक वादक हैं जिन्हें भारतीय ताल वाद्य यंत्र की आखिरी मान्यता प्राप्त महिला प्रतिपादक के रूप में माना जाता है. जलतरंगम नाम की यह कला अब अंधकार में जा रही है.

जलतरंगम की दिल को लुभाने वाली लय के साथ चार दशकों से ज्यादा समय तक दर्शकों को प्रसन्न करते हुए, सीता दोराईस्वामी ने मरते हुए संगीत को बरकरार रखा.

इतना ही नहीं, उन्होंने संगीत में महिला प्रतिनिधित्व के लिए भी मिसाल कायम की. शादीशुदा जीवन और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण 25 साल से ज्यादा समय तक रुकने के बाद उन्होंने 41 साल की उम्र में अपने जुनून को फिर से आगे बढ़ाने की शुरुआत की.

जलतरंगम कला को संरक्षण देने के उनके योगदान को देखते हुए तमिलनाडु सरकार ने 2001 में दोराईस्वामी को राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार कलैमामणि से सम्मानित किया. वह आज तक जलतरंगम की प्रतिपादक के रूप में पुरस्कार पाने वाली एकमात्र प्राप्तकर्ता रही हैं.

पुरस्कार में कहा गया, ‘यह इस तथ्य को ध्यान में रखने का समय है कि सीता ने ऐसे समय में महिला प्रतिनिधित्व का समर्थन किया जब हमारे सांस्कृतिक मानदंड ऐसा नहीं कर सकते थे.’

कलाकार पहली कर्नाटक संगीत संस्थान, द म्यूजिक एकेडमी से 1939 में गोल्ड मेडल ऑफ ऑनर से सम्मानित होने वाली पहली महिला संगीतकार भी बनीं और आज तक इसे जीतने वाली सबसे कम उम्र की महिला बनी हुई हैं.

सीतालक्ष्मी दोराईस्वामी का जन्म 27 जनवरी 1926 को तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरुनेलवेली जिले के एक गाँव अदाचानी में हुआ था.

बचपन और जलतरंगम के साथ मुलाकात

संगीत में उनकी रुचि तब शुरू हुई जब उनका परिवार 10 साल की उम्र में मद्रास चला गया. ऐसा 1937 में प्रो. पी. सांबामूर्ति के भारतीय संगीत के ग्रीष्मकालीन विद्यालय में हुआ था जब उन्होंने पहली बार जलतरंगम देखा. उन्होंने पानी से भरे प्यालों के नजारे को मनोरंजक पाया और वह ‘विश्वास नहीं कर सकी कि आपको उन कटोरों पर मारकर आवाज पैदा करनी है’

दोराईस्वामी ने द हिंदू को बताया, ‘तब मैं सिर्फ 10 साल की थी और जलतरंगम कलाकारों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों ने मुझे उन छोटे जहाजों की याद दिला दी थी जिन्हें बच्चे घर-घर खेलने में इस्तेमाल करते थे. पानी से भरे बर्तन मजेदार लगते हैं.’

जलतरंगम को चुनना और ‘सरल’ परीक्षा पास करना

कर्नाटक संगीत के सैद्धांतिक पहलू में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद, प्रो. सांबामूर्ति के स्कूल के छात्र या तो गोट्टुवाद्यम या जलतरंगम चुन सकते थे. लेकिन जलतरंगम के लिए, स्कूल के संगीत शिक्षक, रमनिया चेट्टियार, इस बात से पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे कि सीता एक उपयुक्त उम्मीदवार हैं. पर सांबामूर्ति के कहने पर वह सीता को एक मौका देने के लिए राजी हो गए.

चेट्टियार ने कटोरों को पानी से भर दिया. उन्हें राग शंकरभरणम के स्वरों से जोड़कर रखा और सीता को राग मायामालवगौला बजाने के लिए कहा.

इसके बाद सीता का जवाब था- आसा है. उन्होंने जवाब में कहा- री’ और ‘दा’ का प्रतिनिधित्व करने वाले कपों में पानी का स्तर बढ़ाएं और आपको मायामालवागौला मिल जाएगा.

पने शिक्षकों को प्रभावित करने के बाद, दोराईस्वामी को एक छात्र के रूप में चुना गया और इस तरह उन्होंने अपना प्रशिक्षण शुरू किया. सीता का जुनून ऐसा था कि वह रोजाना सांबामूर्ति के घर जाती थीं, जो उस इलाके के स्थापित एकमात्र जलतरंगम के मालिक थे. इसके बाद सांबामूर्ति ने उन्हें घर पर अभ्यास करने के लिए एक सेट खरीद कर दिया.

लेकिन फिर अचानक सीता दोराईस्वामी के जीवन ने अचानक दिशा बदल दी, और उनके माता-पिता की इच्छा के अनुसार 14 साल की उम्र में उनकी शादी 27 वर्षीय एन दोराईस्वामी अय्यर से हुई. हालांकि जब उनके पति ने संगीत के प्रति उनका प्यार देखा तो उन्हें मद्रास संगीत अकादमी में दाखिला दिलाने में मदद की. जहाँ उन्होंने गुरु वालादी कृष्ण अय्यर के अधीन अध्ययन किया.

धीरे-धीरे उनकी जिम्मेदारियां बढ़ती गई. उनके 10 बच्चे हुए. तीन दशक तक वे जलतरंगम से दूर रहीं. वो सिर्फ अपने बच्चों के लिए जीने लगीं. फिर उनके एक बेटे की मौत हो गई जिसने उन्हें चकनाचूर कर दिया. फिर 1968 में परिवार के प्रोत्साहन के बाद उन्होंने पानी के कटोरों के पास जाने का फैसला किया.

जल तरंगों के साथ नए रिश्ते का जन्म

सीता दोराईस्वामी ने ‘पानी की लहरों’ के साथ अपना जोश फिर से हासिल कर लिया और 41 साल की उम्र में ऑल इंडिया रेडियो में जलतरंगम कलाकार बन गईं, अपने पहले प्रदर्शन के साथ उनकी खूब प्रशंसा की गई.

द हिंदू में 2005 के एक लेख में कहा गया है, ’79 साल की उम्र में, सीता दोराईस्वामी अभी भी खुशी के साथ जलतरंग बजाती हैं’ उनकी वापसी संगीत में महिला प्रतिनिधित्व के लिए प्रतिमान बदलने वाली थी.

हालांकि सीता दराईस्वामी खुद को एक परंपरावादी के रूप में देखती हैं जो तमाम प्रशंसाओं के बावजूद एक संतुष्ट पारिवारिक महिला हैं. उन्होंने अपनी उपलब्धियों को कभी असाधरण या उल्लेखनीय नहीं समझा. उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी कला का प्रदर्शन किया है मस्कट से लेकर यूएस तक.

1990 में अमेरिका में सीता दोराईस्वामी द्वारा दिए गए संगीत कार्यक्रम की समीक्षा करते हुए और यह स्वीकार करते हुए कि जलतरंगम बजाना कितना मुश्किल है, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, मिस दोराईस्वामी 20 से ज्यादा सालों से जलतरंगम बजा रही हैं और ढाई घंटे के प्रोग्राम में उन्होंने कुछ पश्चिमी बच्चों की धुनों पर एक दर्जन राग और विविधताएं बजाईं, उन्होंने न केवल एक उत्कृष्ट तकनीक का प्रदर्शन किया, बल्कि उन समस्याओं के कुछ सरल समाधानों का भी प्रदर्शन किया, जो वाद्य यंत्र प्रस्तुत करते हैं.

दोराईस्वामी ने एक बच्चे की तरह उपकरण को पाला.


यह भी पढ़ें- बधाई दो में एक ‘लैवेंडर मैरिज’ दिखाई गई है, धारा- 377 के बाद भारत में LGBT+ की लड़ाई को ठेस पहुंचाती है


 

share & View comments