नई दिल्ली: अभिनेता और निर्देशक जेडी मजीठिया ने अपने दोस्त और को-स्टार सतीश शाह के आखिरी शब्द याद किए: “मैं रिटायर होना चाहता हूं.” वे शाह के घर दो दिन पहले अपने परिवार के साथ गए थे, लेकिन उनसे मिल नहीं पाए.
मजीठिया ने दिप्रिंट को बताया, “वे बहुत थके हुए थे और आराम करना चाहते थे, इसलिए मुझे उनके घर के बाहर से ही लौटना पड़ा.” मजीठिया ने शाह के साथ दो दशकों से ज्यादा काम किया.
शब्दों की तलाश में जुटे मजीठिया ने कहा कि शाह की कमी — उनके लिए और इंडस्ट्री के लिए — बयान नहीं की जा सकती. “उन जैसे लोग लाखों साल में एक बार आते हैं.”
सतीश शाह, जिन्हें फिल्मों जाने भी दो यारों (1983), मैं हूं ना (2004) और हिट टीवी शो साराभाई वर्सेस साराभाई के लिए जाना जाता है, उनका शनिवार को कथित तौर पर किडनी से संबंधित जटिलताओं के कारण निधन हो गया. उनकी उम्र 74 साल थी.
वे हंसी के मास्टर, बदलते रंगों के अभिनेता और भारतीय मनोरंजन के एक शांत लेकिन प्रभावशाली स्तंभ थे, जिनका असर आखिरी सीन के बाद भी महसूस किया गया. उनकी विरासत सिर्फ फिल्मों की सूची नहीं है; यह दर्जनों हंसी और अनगिनत ‘याद है जब…’ पलों में है.
शाह ने दिखाया कि एक कॉमेडियन केवल पंचलाइन तक सीमित नहीं होता. यह उपस्थिति, निरंतरता और एक सीन को यादगार बनाने की कला है.
मजीठिया ने कहा, “वे बहुमुखी अभिनेता थे, इसलिए इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा खजाना थे.”
जादूगर, दूरदर्शी और भी बहुत कुछ
मजीठिया ने शाह को एक “दूरदर्शी”, “जादूगर” और बेहद “पढ़ा-लिखा आदमी” बताया.
मजीठिया ने कहा, “आप उनसे किसी भी चीज़ पर बात कर सकते थे—फिल्मों से लेकर विज्ञान और इतिहास तक, उन्हें हर चीज़ की गहरी समझ थी.” उन्होंने यह भी कहा कि शाह का जानवरों, खासकर पक्षियों के प्रति प्यार बेहद दिलचस्प था.
इंडस्ट्री में उनके ऊंचे दर्जे के बावजूद, शाह कभी किसी को छोटा या अहम महसूस नहीं कराते थे.
फिल्ममेकर ने याद किया, “अपनी मौजूदगी में उन्होंने कभी किसी को छोटा महसूस नहीं होने दिया. वे ग्राउंडेड थे और हमेशा यह सुनिश्चित करते थे कि सभी को शामिल महसूस हो.” उनके अनुसार, शाह सेट पर सबसे मिलने-जुलने वाले लोगों में से एक थे.
उन्होंने कहा, “भले ही कोई उनसे जवाब देना भूल जाए, वे हमेशा जवाब देते थे. उनके स्वभाव में कभी भी स्टार जैसी शान नहीं थी.” उन्होंने कहा, “वह सेट पर हर बातचीत की ‘जान’ थे.”
मजीठिया ने बताया कि शाह सिर्फ अपने किरदारों और फिल्मों में ही नहीं, बल्कि पूरे सेट के माहौल में ऊर्जा लाते थे, “इंडस्ट्री में उनका नेटवर्क उनके प्रभाव को दर्शाता था और रिश्ते बनाने और निभाने की उनकी क्षमता हर किसी के लिए सीखने लायक थी.”
मजीठिया के लिए, शाह का सबसे अविस्मरणीय अभिनय जाने भी दो यारों में मृत शरीर का रोल रहा.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “हमारे पास कई बेहतरीन अभिनेता हैं, लेकिन कोई भी उनके जैसी मृत शरीर की भूमिका नहीं निभा सकता था. यह बस अद्भुत था.”
उन्होंने शाह के चेहरे को “बहुत ही स्क्रीन-फ्रेंडली” बताया. मजीठिया ने अपने दोस्त को गर्मजोशी से याद किया, “उन्हें देखकर ही आपको मुस्कान आ जाती थी, वह सकारात्मकता फैलाते थे.”
सतीश शाह की विरासत
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से ग्रेजुएट सतीश शाह ने अपने करियर की शुरुआत छोटे लेकिन प्रभावशाली रोल्स से की, जैसे अरविन्द देसाई की अजीब दास्तान (1978) और गमन (1978).
उनका सबसे बड़ा ब्रेक आया कुंदन शाह की क्लासिक फिल्म जाने भी दो यारों से, जिसमें उन्होंने भ्रष्ट, लेकिन मज़ेदार म्युनिसिपल कमिश्नर डी’मेलो का किरदार निभाया. भ्रष्टाचार पर यह व्यंग्यात्मक फिल्म नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और पंकज कपूर जैसे पावरहाउस कलाकारों के साथ बनी थी. फिर भी शाह ने अपनी अलग पहचान बनाई.
टीवी जल्दी ही उनके टैलेंट का दूसरा मैदान बन गया. यही जो है ज़िंदगी और फिल्मी चक्कर जैसे शो में उन्होंने दर्शकों का दिल जीता, जहां उनकी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और आसानी से कई किरदार निभाने की क्षमता ने उन्हें हर घर में पहचान दिलाई.
2000 के दशक की शुरुआत में उन्होंने अपने करियर का शिखर साराभाई वर्सेस साराभाई से छूआ, जिसमें उन्होंने इंद्रवदन साराभाई का किरदार निभाया — तीखा, व्यंग्यपूर्ण परिवार का मुखिया, जिसकी पंचलाइनें पॉप कल्चर का हिस्सा बन गईं. रत्ना पाठक शाह, रुपाली गांगुली, सुमित राघवन और राजेश कुमार के साथ उन्होंने इस सिटकॉम को एक कालजयी क्लासिक में बदल दिया, जो आज भी नए दर्शकों को आकर्षित करता है.
टीवी के अलावा, शाह बॉलीवुड के बड़े फिल्मों में भी परिचित और प्रिय चेहरे थे. उनकी फिल्मोग्राफी में कभी हां कभी ना, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, मैं हूं ना, कल हो ना हो, ओम शांति ओम, फना, अकेले हम अकेले तुम जैसी हिट फिल्में शामिल हैं. कॉमिक रिलीफ हो या आकर्षक साइड कैरेक्टर, उन्होंने हर फ्रेम में गर्मजोशी और ह्यूमर जोड़ा.
चार दशकों से अधिक के करियर में उन्होंने 200 से अधिक फिल्में और टीवी शो किए — यह उनकी बहुमुखी प्रतिभा और धैर्य का प्रमाण है. उन्होंने पीढ़ियों को आसानी से जोड़ा — बच्चे इंद्रवदन को पसंद करते थे, बड़े उनके फिल्म कैमियो को सराहते थे और टीवी के फैन उनके शुरुआती मल्टी-किरदार प्रदर्शन कभी नहीं भूलते.
मिली-जुली हंसी फैलाते हुए भी, उन्होंने अपने बाद के सालों में स्वास्थ्य समस्याओं से चुपचाप जूझा, यह याद दिलाते हुए कि हर कॉमिक मास्क के पीछे एक इंसान भी होता है जो महसूस करता है, संघर्ष करता है और धैर्य रखता है.
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