अकेले में वो घबराते तो होंगे
मिटा के हमको पछताते तो होंगे
1950 में आई फ़िल्म ‘बीवी’ के इस गीत को गाया है मोहम्मद रफ़ी ने और इसे संगीत दिया है ख़य्याम साहब ने. इस गीत के संगीत ने ख़य्याम को संगीत की दुनिया मे स्थापित किया. ये गाना और इसका संगीत इतना पसंद किया गया कि उस समय के जाने-माने संगीतकार, ख़य्याम साहब के कायल हो गए.
1927 में जन्में ख़य्याम 10 साल की उम्र में ही घर छोड़कर दिल्ली आ गए थे.अभिनेता बनने का सपना उन्हें दिल्ली ले आया था. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. दिल्ली में 5 साल रहते हुए उन्होंने संगीत सीखा और अपनी किस्मत आजमाने के लिए बम्बई (आज के मुंबई) चले गए. लेकिन वहां उन्हें लगातार असफलता मिली.
संगीत की बारीकियों को सीखने के लिए ख़य्याम ‘लाहौर बाबा चिश्ती’ के पास गए जो उस वक़्त के बड़े संगीतकार थे. कुछ ही समय में ख़य्याम ने बाबा चिश्ती पर अपनी छाप छोड़ दी. उसी दौर में बीआर चोपड़ा की नज़र ख़य्याम पर गयी और उन्हें काम मिलने लगा. कुछ सालों बाद ख़य्याम लाहौर से बम्बई आ गए. आते ही उन्हें काम मिलने लगा और उनकी पहचान भी बनने लगी.
ख़य्याम ने हिंदी समेत पंजाबी गानों के लिए भी संगीत दिया है. उनका संगीत संगीतकारों के लिए नज़ीर है. ख़य्याम ने फ़िल्म शगुन, कभी-कभी, बाज़ार, उमराव जान, रज़िया सुल्तान, शोला और शबनम, आखिरी ख़त, फिर सुबह होगी, नूरी, त्रिशूल, आहिस्ता आहिस्ता, दिल-ए-नादान, रजिया सुल्तान, हीर रांझा जैसी फ़िल्मों में बेहतरीन संगीत दिया.
मशहूर संगीतकार खय्याम ने 92 वर्ष की उम्र में मुम्बई में आखिरी सासं ली. 1947 में अपना कैरियर शुरू करने के बाद खय्याम ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा. बॉलीवुड के सभी संगीतकार उनका सम्मान करते थे. नौशाद हो या शंकर जयकिशन सभी उनके फंकार पर फिदा थे.
मशहूर शायर साहिर लुधियानवी उनके सबसे खास दोस्त थे. ख़य्याम को बॉलीवु़ड में स्थापित करने में साहिर साहब की महत्वपूर्ण भूमिका थी. ख़य्याम ने अपने कैरियर में बहुत कम गीतों के लिए संगीत दिया लेकिन जितने ही गीतों में संगीत दिया वो सभी बेहतरीन थे. उन गानों के संगीत से जीवन का चित्र उभरता था जिसे इंसान अपने जीवन से जोड़कर भी महसूस कर सकता था.
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उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद भारतीय संगीत जगत में जो शून्यता पैदा हुई है उसे भर पाना काफी मुश्किल है.
उन्हें याद करते हुए उनके कुछ बेहतरीन गीतों के लिए दिए संगीत को याद करना लाजिमी है.
इन आंखों की मस्ती में….
1981 में आई फिल्म उमराव जान के गीतों में संगीत खय्याम साहब ने दिया. इस फिल्म का एक गीत इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों है खूब पसंद किया गया. इस गीत पर अभिनेत्री रेखा का नृत्य भी लाजवाब था. गीत के एक एक बोल पर रेखा के पैरों की थिरकन और हाथों और चेहरे की अभिव्यंजना काबिले-तारीफ थी जो संगीत के साथ एकरुपता बनाए हुए थी.
इस फिल्म के संगीत के लिए खय्याम ने काफी मेहनत की थी. इस फिल्म के गीतों को आशा भोसले ने गाया था. खय्याम चाहते थे कि आशा इस फिल्म के गानों को अलग तरह से गाए जो संगीत की दुनिया में एक लकीर खींचे. आशा को इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन आशा और खय्याम की जोड़ी ने कमाल कर दिखाया. खय्याम साहब को इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया. गौरतलब यह है कि आशा भोसले को भी राष्ट्रीय पुरस्करा मिला.
दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए….
हल्के संगीत से शुरु होता है ये गाना. सितार की आवाज आपको दिल थामने के लिए मजबूर कर देती है. जैसे जैसे गीत आगे बढ़ता है वैसै ही ढोलक और पांव में बंधे घुंघरुओं की आवाज आपको मदहोश कर देती है. गीत के बोल ऐसे हैं कि जो अपने आप में समूचा अर्थ देते हैं.
मैं पल दो पल का शायर हूं ….
कल और आएँगे नग़मों की
खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले
तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मशरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद कर
मैं पल दो पल का शायर हूँ
इस गीत को सुनते हुए आप महसूस कर सकते हैं कि खय्याम अपने संगीत के माध्यम से उस सच्चाई को रच रहे थे जिसमें गीत के बोल हैं कि कल मुझसे बेहतर कहने वाला तुमसे बेहतर सुनने वाले होंगे.
गीत के इन शब्दों को ढालते हुए जो संगीत तैयार किया गया है उसमें आपको एक ठहराव मिलेगा जिसे एक संगीत प्रेमी ही महसूस कर सकता है. संगीत में एक ठहराव है जो शरीर में सिहरन पैदा करती है और ख्यालों में खो जाने को मज़बूर करती है.
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कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है…..
साहिर द्वारा लिखा गीत, लता मंगेशकर की आवाज और खय्याम साहब के संगीत से सजा ये गीत 70-80 के दशक के सबसे मशहूर गीतों में से एक है. खय्याम के संगीत को इस गाने में महसूस करें तो ढोलक की थाप और शहनाई की आवाज आपको इस गीत से बांधे रखती है. गीत को सुनते हुए आप ख्यालों में खो जाते हैं और उस दुनिया को महसूस करने लगते हैं जिसमें प्रेमी-प्रेमिका एकांत की तलाश करते हैं. गीत के बोल और संगीत एक दूसरे को पूरा करते हैं और जिस धीमी टोन पर लता मंगेशकर ने इसे गाया है वो श्रोताओं को गीत के और करीब ले आता है.
ए-दिले नादान….
1983 में आई फिल्म रजिया सुल्तान का गीत ए-दिले नादान खय्याम के संगीत के कारण खूब चर्चित हुआ. इस गीत का संगीत अलग तरीके का है. धीमी संगीत में खय्याम ने कई प्रयोग किए हैं. घुंघरुओं की आवाज इस गीत की पहचान है. ढोलक की थाप और घुंघरुओं की आवाज के साथ इस गीत के बोल इसे खास बनाती है. उलझन भरे इस गीत में खय्याम ने संगीत को भी बड़ी ही संजीदगी से रचा है जिससे गीत को मायने मिल सकें.
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता….
1980 में आई आहिस्ता आहिस्ता फिल्म के इस गीत ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता‘ को निदा फाजली ने लिखा है और इसमें संगीत दिया है खय्याम ने. इस गीत के मर्म को समझे तो इसमें उम्मीद, कोशिश और जीवन की यात्रा के दौरान मिले अनुभव को समेटा गया है. ऐसे में खय्याम साहब ने संगीत को इस तरह रचा है कि आप जब इसे सुनेंगे तो उन अनुभवों से गुजरेंगे जिसके सहारे हम मुकम्मल जहां पाने की कोशिश में लगे होते हैं. शब्दों को बांधता संगीत और उसमें ठहराव बनाए रखना संगाीतकार की बड़ी उपलब्धि होती है जो खय्याम साहब में थी.
तुम अपना रंज़ों ग़म अपनी परेशानी हमें दे दो
फिल्म में ‘शगून’ के दिल छूने वाले गीत पर ख़य्याम की छाप नजर आती है. जगज़ीत कौर की आवाज ‘तुम अपना रंज-ओ-ग़म‘ उनके यादगार नगमों में से एक है. 1964 में आई इस फिल्म के गीत लिखे थे साहिर लुधियानवी ने और संगीत दिया था खय्याम ने. जिस तरह से इस गीत का संगीत आपके दिलों के तार को झंकृत करता है.
ख़य्याम ने हिंदी सिनेमा जगत के लिए उस दौर में संगीत रचा जो हिंदी सिनेमा और संगीत का स्वर्णिम युग कहा जाता है. एक से बढ़कर एक संगीतकारों के बीच ख़य्याम ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई और संगीत की दुनिया में एक ऐसी लकीर खींची जिसे सभी छूना चाहते हैं. ये पद्मभूषण ख़य्याम ही थे जिनके जाने पर संगीत की एक सदी के अंत के रूप में देखा जा रहा है. सुर साम्रज्ञी लता मंगेशकर ने कहा था कि ख़य्याम का जाना संगीत के एक युग का अंत जैसा है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए लिखा था,’ खय्याम ने अपनी यादगार धुनों से अनगिनत गीतों को अमर बना दिया. उनके अप्रतिम योगदान के लिए फिल्म और कला जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा.’
भले ही ख़य्याम साहब आज हमारे बीच मे नही हैं लेकिन वो हमारे बीच अपनी धुनों और अपनी रचनाओं से हमेशा हमारे साथ रहेंगे. जब भी उनका रचा संगीत हमारे कानों में पहुंचेगा वो फिर से हमे याद आ जाएंगे.