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Thursday, 25 April, 2024
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‘राजनीति काजल की कोठरी है, जो इसमें जाता है काला होकर निकलता है’

अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं में संघर्ष, उत्साह और वीरता के प्रति उनकी सोच को महसूस किया जा सकता है.

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नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पहली पुण्यतिथि है. अटल जी को कई तरीके से आज के दिन याद किया जा सकता है. अटल बिहारी वाजपेयी को राजनेता, कवि, पत्रकार के तौर पर समूचा देश जानता है. उनकी कविताओं में संघर्ष, उत्साह और वीरता के प्रति उनकी सोच को महसूस किया जा सकता है. पत्रकार के रूप में भी उन्होंने काम किया था.

आइए उनकी पहली पुण्यतिथि पर उनकी कुछ बेहतरीन कविताएं को याद करते हैं.

एक संघर्ष भरे जीवन में उत्साह जगाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी एक कविता में लिखा था :

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता

मुश्किलों का सामना कैसे किया जाए और उससे कैसे निपटा जाए, इस पर अटल जी ने लिखा था -:

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

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बाधाएं आती है आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं
पांवों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं
निज हाथों में हंसते-हंसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

5 दशकों से भी ज्यादा समय तक राजनीति में सक्रिय रहने के बाद भी अटल जी ने कहा था -:

राजनीति काजल की कोठरी है. जो इसमें जाता है, काला होकर ही निकलता है. ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में ईमानदार होकर भी सक्रिय रहना,बेदाग छवि बनाए रखना, क्या कठिन नहीं हो गया है?

पाकिस्तान के बारे में अटल जी ने कहा था -:

मूर्ख नहीं महान झुकता है, धरती नहीं आसमान झुकता है,हमारी विनम्रता का गलत अर्थ ना निकाल लेना ए पाकिस्तान और ये समझ लेना की हिंदुस्तान झुकता है.आप मित्र बदल सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं.

इतिहास को लेकर भी अटल जी बेहतरीन समझ रखते थे और उस समय लिए गए फैसलों को व्यापकता में देखते थे. वो कहते थे, ‘इतिहास में हुई भूल के लिए आज किसी से बदला लेने का समय नहीं है, लेकिन उस भूल को ठीक करने का सवाल है.’

हार न मानने वाले अटल

टूटे हुए सपनों की
कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा
पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर
लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं

मौत से ठन गई

जूझने का कोई इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक करप वह खड़ी हो गई
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई

आओ फिर से दिया जलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं

कौन-कौरव कौन पांडव

बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है.

कांग्रेस के अध्यक्ष रहे देवकांत बरुआ ने जब इंदिरा गांधी के बारे में ‘इंडिया इज़ इंदिरा एंड इंदिरा इज़ इंडिया‘ कहा था, इसपर अटल जी ने व्यंगपूर्वक कहा था –

इंदिरा इंडिया एक है,इति बरुआ महाराज,
अकल घास चरने गई चमचों के सरताज,
चमचां के सरताज किया अपमानित भारत,
एक मृत्यु के लिए कलंकित भूत भविष्यत,
कह कैदी कविराय स्वर्ग से जो महान है,
कौन भला उस भारत माता के समान है?

25 जून 1975 को लगाए गए इमरजेंसी पर अटल जी ने लिखा था –

अनुशासन के नाम पर,अनुशासन का खून
भंग कर दिया संघ को,कैसा चढ़ा जुनून
कैसा चढ़ा जुनून ,मातृपूजा प्रतिबंधित
कुलटा करती केशव-कुल की कीर्ति कलंकित
यह कैदी कविराय ,तोड़ कानूनी कारा
गूंजेगा भारतमाता की जय का नारा

अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में अटल जी का तेवर :-

1996 में अटल जी की सरकार एक मत से गिर गई. इसके बाद संसद में जो भाषण अटल जी ने दिया वो यादगार बन गया. उन्होंने कहा था कि, ‘ये कोई आकस्मिक चमत्कार नहीं है कि हमें इतने वोट मिले हैं. ये हमारी 40 साल की मेहनत का परिणाम है. हम लोगों के बीच में गए और हमने मेहनत की है. हमारी 365 दिन चलने वाली पार्टी है, ये चुनाव में कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होने वाली पार्टी नहीं है.’

उन्होंने कहा था कि, ‘आज हमें सिर्फ इसलिए कटघरे में खड़ा कर दिया गया क्योंकि हम थोड़े ज्यादा सीटें नहीं ला पाए. राष्ट्रपति ने हमें सरकार बनाने का मौका दिया और हमने इसका फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन हमें सफलता नहीं मिली, ये अलग बात है. पर हम अब भी सदन में सबसे बड़े विपक्ष के तौर पर बैठेंगे.’

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