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Thursday, 25 April, 2024
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‘अपनी कुर्सी की पेटी बांध लीजिए’ – भरपूर एक्शन और मसाले के साथ हाज़िर है, ‘पठान’

इस फिल्म का मकसद आपको कोई महान कहानी या कोई बहुत ही जानदार पटकथा दिखाना नहीं है. इस फिल्म का मकसद है आपको उन रंगीन मसालों की बारिश में भिगोना जिसके लिए ‘बॉलीवुड’ जाना जाता है.

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मसाले परोसना बॉलीवुड की पुरानी आदत है. सच तो यह है कि जब यह समझ न आ रहा हो कि दर्शकों को लुभाने के लिए क्या परोसा जाए तो बॉलीवुड वाले मसालों का ही सहारा लेते हैं. अब कोई उन पर यह आरोप लगाए तो लगाए कि यह काम तो हॉलीवुड हमेशा से करता आया है.

बड़ा शोर था कि ‘जीरो’ के चार साल बाद शाहरुख लौट रहे हैं तो जरूर कुछ नया, कुछ हटके टाइप माल होगा. लेकिन पहले तो ट्रेलर से खुलासा हो गया कि ऐसा कुछ नहीं है और अब इस फिल्म ने भी बता दिया कि इस बार अपना हीरो मसालों में लिपट कर आया है. वैसे भी जब शाहरुख की ‘जीरो’, ‘फैन’, ‘जब हैरी मैट सेजल’ जैसी अलग मिजाज की छवियों को दर्शकों ने नकार दिया हो तो सेफ गेम खेलने में बुराई ही क्या है.

कहानी बताती है कि 2019 में भारत ने कश्मीर से धारा 370 हटाई तो पाकिस्तान के एक जनरल ने हिन्दुस्तान को सबक सिखाने के लिए एक खूंखार खलनायक जिम को भाड़े पर लिया. तीन साल बाद जिम ने भारत पर एक अजीब किस्म का हमला करने का प्लान किया. जिम को रोकने का काम मिला पठान को जो कभी भारत का खुफिया एजेंट था. उसकी मदद को आगे आई पाकिस्तान की खुफिया एजेंट रह चुकी रुबीना. ये दोनों मिले तो धमाके हुए. धमाके हुए तो खलनायक हारा और देशभक्त जीते.

आप चाहें तो पूछ सकते हैं कि जिम ने तीन साल का इंतजार क्यों किया? क्योंकि इन तीन सालों में उसने कोई तीर मारा हो, फिल्म यह नहीं दिखता. आप चाहें तो यह भी पूछ सकते हैं कि हिन्दी फिल्मों में भारत के खुफिया एजेंट हमेशा गायब और रिटायर क्यों रहते हैं? यह सवाल भी आप पूछ सकते हैं कि भारत का हीरो और पाकिस्तान की हीरोइन तो हम ‘टाईगर’ सीरिज की फिल्मों में भी देख चुके हैं, तो इस फिल्म में नया क्या है? इनके अलावा भी आप कई सारे सवाल पूछ सकते हैं, लेकिन यह फिल्म आपके ऐसे किसी सवाल का कोई जवाब नहीं देती है.

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सिद्धार्थ आनंद की लिखी इस फिल्म की कहानी बहुत ही साधारण है और उस पर लिखी श्रीधर राघवन की पटकथा में भी ढेरों छेद आप तलाश सकते हैं. लेकिन इस फिल्म का मकसद आपको कोई महान कहानी या कोई बहुत ही जानदार पटकथा दिखाना था भी नहीं. इस फिल्म का मकसद है आपको उन रंगीन मसालों की बारिश में भिगोना जिसके लिए ‘बॉलीवुड’ जाना जाता है. चिकने-चुपड़े चेहरे, कसरती जिस्म, जबर्दस्त एक्शन, तेज रफ्तार, रोमांच, मनभावन विदेशी लोकेशंस, रंग-बिरंगा माहौल… एक आम दर्शक को भला और क्या चाहिए?

पठान कहता है कि भारत ने उसे पाला है. हालांकि ट्रेलर में वह जिसे अपना ‘घर’ बताता है वह जगह अफगानिस्तान में है. उधर रुबीना का कहना है कि उसके देश पाकिस्तान या वहां की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. की भारत से कोई दुश्मनी नहीं है बल्कि वहां का एक सनकी जनरल हिन्दुस्तान को तबाह करना चाहता है. फिल्म यह भी दिखाती है कि जिम पहले भारत का ही एजेंट था जो बागी हो गया और अब भारत का एक वैज्ञानिक उससे डर कर उसका साथ दे रहा है.

फिल्म हमारे खुफिया तंत्र को जिन बेहद आधुनिक तकनीकों से लैस दिखाती है, उस पर हैरान हुआ जा सकता है. हर थोड़ी देर के बाद जो धुआंधार एक्शन यह परोसती है, उस पर भी हैरान हुआ जा सकता है. असल में इस फिल्म का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट इसका एक्शन ही है-बेहद रोमांचक और इतना तेज कि न सोचने का मौका मिले, न समझने का. ऊपर से एक सीक्वेंस में टाईगर यानी सलमान खान की एंट्री तालियां बजवाती है. वैसे फिल्म में कई जगह बेहद तकनीकी भाषा और अंग्रेजी का इस्तेमाल इसकी पकड़ को कम करता है. संवाद औसत हैं.

शाहरुख खान जंचे हैं, दीपिका पादुकोण भी. जॉन अब्राहम कहीं ज्यादा विश्वसनीय लगे. डिंपल कपाड़िया और आशुतोष राणा असरदार रहे. लोकेशंस, सैट्स, वी.एफ.एक्स., कैमरा जैसे तकनीकी मामलों में फिल्म सुपर कही जा सकती है. गाने रंग-बिरंगे हैं-सुनने में भी, देखने में भी. निर्देशक सिद्धार्थ आनंद की मेहनत इसी काम में ज्यादा लगती दिखाई दी कि कुछ नया न परोसने के बावजूद कैसे वह दर्शकों को हर मसाला थोड़ा-थोड़ा चटाते रहें ताकि बीच-बीच में उबासियां लेने के बावजूद वे जगे रहें.


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