कोलकाता: कहा जाता है कि किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं. एक महीने से भी लंबे समय से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट और टीवी चैनलों से ऊब कर लोग किताबों की शरण में ही जाते हैं. लेकिन जब तमाम दुकानों और पुस्तकालय बंद हों तो लोग आखिर किताबें लाएंगे कहां से?
पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के सबसे बड़े सामाजिक संगठन यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) ने इस मुश्किल सवाल का जवाब तलाश लिया है. संगठन मौजूदा दौर को ध्यान में रखते हुए एक तीर से दो शिकार की तर्ज पर अब राजधानी आइजल के सबसे बड़े मोहल्ले रामलूम साउथ में लोगों को घर-घर उनकी पसंदीदा किताबें पहुंचा रहा है.
एक तीर से दो शिकार का मतलब यह है कि एक ओर जहां इसके जरिए आम लोगों को लॉकडाउन के दौरान पैदा होने वाली बोरियत से बचाया जा रहा है वहीं इससे लोगों में पढ़ने की आदत को भी बढ़ावा मिल रहा है. इससे किताबों के मनुष्य के सबसे अच्छी मित्र होने वाली कहावत भी एक बार फिर चरितार्थ हो रही है. अगर इस तथ्य को ध्यान में ऱखें कि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक 91.33 प्रतिशत की साक्षरता दर के साथ मिजोरम, केरल और लक्ष्यद्वीप के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा साक्षर राज्य है, तो इस लाइब्रेरी की बढ़ती लोकप्रियता समझना मुश्किल नहीं है. 1935 में स्थापित वाईएमए राज्य का सबसे बड़ा और ताकतवर सामाजिक संगठन है.
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यहां यह दलील दी जा सकती है कि ई-बुक और इंटरनेट के मौजूदा दौर में भला किताबों की क्या कमी है? इस सवाल का जवाब वाईएमए की लाइब्रेरी सब-तमिटी के प्रमुख बी. लालमालसावमा देते हैं. वह कहते हैं, ‘ई-बुक काफी लोकप्रिय हैं. लेकिन मिजो भाषा में ज्यादा ई-बुक्स उपलब्ध नहीं हैं. इसी वजह से लोग किताबों को तरजीह दे रहे हैं. इसके अलावा कई इलाको में इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी ठीक नहीं है.’
वाईएमए के रामलूम दक्षिण शाखा ने बीते सप्ताह अंग्रेजी और मिजो भाषा की पुस्तकों के साथ इस कावटकाई लाइब्रेरी की शुरुआत की थी. मिजो भाषा में कावटकाई का अर्थ मोबाइल या भ्राम्यमान होता है. इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है.
लालमालसावमा बताते हैं कि लॉकडाउन की शुरुआत के बाद ही इसे शुरू करने पर विचार किया गया था लेकिन कामकाज के तरीके को मूर्त रूप देने की योजना बनाने की वजह से इसमें देरी हुई. इसका मुख्य मकसद खासकर युवा तबके में किताबों के प्रति दिलचस्पी पैदा करना और खाली समय का सदुपयोग करना था. साथ ही इससे आम लोगों को मनोबल भी बढ़ेगा.
फिलहाल इस योजना के तहत लाइब्रेरी में आठ वर्गों में लगभग साढ़े चार हजार पुस्तकें हैं. इनमें साहित्य से लेकर सिनेमा, संस्कृति, इतिहास, कहानी और उपन्यास शामिल हैं. और हां, यह योजना पूरी तरह मुफ्त है. यानी लोगों को इसके एवज में कोई पैसा नहीं देना पड़ता है. इलाके में लगभग डेढ़ हजार मकान हैं.
आखिर यह लाइब्रेरी काम कैसे करती है? इसके लिए वाईएमए ने व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप बनाया है. उस पर किताबों के कवर और भीतर के दो-चार पन्नों की तस्वीरें डाल दी जाती हैं. उसके बाद लोग अपनी पसंदीदा पुस्तकों का ऑर्डर करते हैं. मोहल्ले से ऑर्डर मिलने के बाद संगठन के वॉलंटियर सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए उन किताबों को घर-घर पहुंचा देते हैं. इस योजना के एक तहत कोई भी व्यक्ति 10 दिनों के लिए चार किताबें ले सकता है लेकिन लालमालसावमा के मुताबिक, ज्यादातर लोग दो दिन में ही पूरी किताब पढ़ लेते हैं. उसके बाद वहां जाकर उन किताबों को वापस ले लिया जाता है.
लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए संगठन ने सबसे ज्यादा पुस्तकें लेने वालों को पुरस्कृत करने की भी योजना बनाई है. वाईएमए की रामलूम शाखा ने 1985 में अपनी लाइब्रेरी स्थापित की थी.
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वैसे, बांग्लादेश और म्यामांर की सीमा से सटे इस पर्वतीय राज्य में पढ़ने की संस्कृति काफी गहरे रची-बसी है. वर्ष 2019 में मिजो लेखक और पत्रकार लालरुआतलुआंगा चावंग्टे ने आइजल में सड़कों के किनारे छोटी-छोटी कई लाइब्रेरियों की स्थापना की थी. इस योजना के तहत खुले में रैक पर पुस्तकें रखी रहती हैं. लोग आकर वहां से अपनी पसंद की किताबें ले जाते हैं और पढ़ कर उनको दोबोरा वहीं रख जाते हैं. लोग वहां किताबें दान में भी देते हैं. यह पहल जल्दी ही इतनी लोकप्रिय हुई कि राजधानी को दूसरे इलाको में भी इसकी शुरुआत हो गई. चावंग्टे कहते हैं, ‘इसका प्रमुख मकसद युवा तबके में किताबों के प्रति दिलचस्पी बढ़ाना था. मिजोरम के लोगों में पढ़ने की आदत है औऱ राज्य के हर इलाके में कोई न कोई लाइब्रेरी मिल जाएगी.’
सेंट्रल वाईएमए के अध्यक्ष लानलालरुआता कहते हैं, ‘यह आइडिया अच्छा है. इसे मिजोरम के बाकी हिस्सों में भी शुरू किया जा सकता है.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)