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Sunday, 22 December, 2024
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‘अजीब दास्तां है ये’ और ‘लग जा गले’ जैसे सैकड़ों गीतों को लता मंगेशकर ने अमरता दी

लता-मुकेश की जुगलबंदी,आनंदमय, ज़िंदादिल थी जिसको केवल फिल्म के और गानों से समझा जा सकता है जैसे हँसता हुआ नूरानी चेहरा.

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ज्यादातर भारतीयों के लिए लता मंगेशकर उनके परिवार का एक अभिन्न अंग थी. वह लोगों के लिए ‘दीदी’, ‘स्वरकोकिला’ और वॉइस ऑफ़ नेशन के रूप में जानी जाती रहीं. हम सभी के कानों में उनकी मीठी-मधुर आवाज शहद-सी घुलने लगती है.

कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की मलिक्का एम.एस सुब्बुलक्ष्मी के बाद केवल दूसरी गायक है जिनको भारत रत्न से सम्मानित किया गया है. उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन ऑफ हॉनर’ से नवाजा गया है.

फिर भी, इतने परिचय के बाद भी लता मंगेशकर का कुछ हिस्सा भूला हुआ रहा है- शायद इसकी प्रमुख वजह उनकी लंबी उम्र (वह 1942 से पेशेवर रूप से गा रही है )और जितनी बड़ी संख्या में उन्होंने गाने गाये हैं, वही है.

(कुछ सूत्रों का कहना है कि उन्होंने करीब 25,000 से अधिक गाने गाए हैं).


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उनके गाने ‘अजीब दास्तान है ये’ और ‘लग जा गले’, ‘रैना बीती जाये’ और ओ सजना, बरखा बहार आयी जैसे सैकड़ों गाने हैं जो उनके ताज में उस तरह नहीं जुड़े, जैसे जुड़ने चाहिए थे.

आज के दिन 92 साल की उम्र में लता मंगेशकर का कोरोना संक्रमित होने के बाद निधन हो गया जिसके बाद से पूरे देश समेत दुनिया के कई हिस्सों में शोक मनाया जा रहा है. आज दिप्रिंट उनके कुछ बेहतरीन गाने पेश कर रहा है जो स्वर मल्लिका के ताज के नायाब हीरे रहे हैं.

मनमोहना बड़े झूठे  (फिल्म : सीमा 1955)

इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोई प्लेबैक सिंगर लता की शास्त्रीय प्रवीणता के करीब भी नहीं पहुंच सका. शंकर-जयकिशन की राग जयजयवन्ती में संरचना इसके अच्छे उदाहरणों में से एक है, हालांकि ये बहुत प्रसिद्ध नहीं है.

अपने सैयां से नैना लड़ाईबे (फिल्म: अर्धांगिनी ,1959)

हिंदी फिल्म संगीतकारों के देव तुलनीय,वसंत देसाई है जिन्होंने दो आंखें बरह हाथ, झनक झनक पायल बाजे और गुड्डी जैसे तमाम क्लासिक दी पर उन्हें कभी उनको श्रेय नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे.

यह रचना दो मिथकों को तोड़ने में मदद करती है कि मीरा कुमारी और लता मंगेशकर दोनों अल्हड़पने वाले वाले गाने नहीं गा सकती.

बैरन नींद ना आये, मोहे बैरन नींद ना आये (फिल्म: चाचा ज़िंदाबाद, 1959)

लता जी का उनके ‘भाई’ मदन मोहन के साथ रिश्ते के बारे में सब अच्छी तरह से जानते है – लता जी उनकी पसंदीदा गायिका थी और शायद वह उनके सबसे पसंदीदा संगीतकार थे.

दोनों ने हिंदी सिनेमा के इतिहास में सबसे यादगार हिट दिए आए, ‘जैसे लग जा गले’ लेकिन यह शास्त्रीय रत्न, जो इस हास्य फिल्म में मौजूद है शायद ही याद किये जाये.

मेहताब तेरा चेहरा (फिल्म: आशिक, 1962)

सिनेमा इतिहास में मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के साथ लता जी के अनगिनत गाने संगीत के सबसे बेहतरीन नमूनों में से हैं. लेकिन मुकेश के साथ किया हुआ काम बहुत पीछे नहीं हैं, खासतौर पर शंकर-जयकिशन की भव्यता के कारण.

राज कपूर पर फिल्माया गया ये गाना जिसका निर्देशन ऋषिकेश मुखर्जी ने किया है वह भी उसी दर्ज़े के काम में आता है.इसके सिवाय ऐसे और प्रसिद्ध गाने जैसे आवारा फिल्म से दम भर जो उधर मुँह फेरे और अनाड़ी फिल्म  से दिल की नज़र से. आपने शायद इसके बारे में सुना हो. शायद.

बेदर्दी दगाबाज़ जा रे जा (फिल्म: ब्लफ मास्टर, 1963)

मनमोहन देसाई द्वारा निर्देशित फिल्म में शम्मी कपूर की बचकानी हरकते भी आपको लता की एक और मास्टरक्लास से ध्यान नहीं बाटने देगी.  कल्याणजी-आनंदजी का संगीत हालांकि, गोविंदा आला रे आला के लिए ज़्यादा याद किया जाता है.

चोरी चोरी जो तुमसे मिली (फिल्म: पारसमणि,1963)

यह लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ लता की अद्भुत जोड़ी का एक प्रमाण है कि लोगों को उनके बेहतरीन कामों को खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ता है .यह संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के जोड़ी की पहली फिल्म पारसमणि से है.
लता-मुकेश की जुगलबंदी,आनंदमय, ज़िंदादिल थी जिसको केवल फिल्म के और गानों से समझा जा सकता है जैसे हँसता हुआ नूरानी चेहरा.
खबर मोरी ना लेनी (फिल्म: संत ज्ञानेश्वर, 1964)

लता और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी का एक और बेहतरीन गाना जिसकी धुन दिल दिमाग में बस जाती है को भरत व्यास ने लिखा है. जिन्होंने कई आध्यात्मिक गाने लिखे है जैसे की “ए मालिक तेरे बन्दे हम” . ऐसा लगता है की लता इन गानों को गाते हुए उनमें खो गयी है ,जो इसे अविस्मरणीय बनाता है.

ये मेरी ज़िंदगी एक पागल हवा (फिल्म: जिद्दी, 1964)

कई सालों तक, लता ने अपने जोन के गाने गए जैसे रोमांटिक,मृदुल और उदासी वाले गाने गए, जबकि उनकी बहन आशा ने  तेज़ी से चलने वाले, चंचल, काबरेऔर मुजरा वाले गानों को चुना. तब दीदी “दादा” यानि  एसडी बर्मन से प्यार में थी. ओ.पी.नैयर और उनके संरक्षण से आशा पूर्ण रूप से मुख्यधारा में आ गईं.
1964 में दादा और दीदी फिर मिले  लेकिन किरदार बदल चुके थे  – यह लता थी आशा नहीं और अपना ख़ुशदिल गाना गया जो की खुशमिज़ाज़ आशा पारेख पर फिल्माया गया.
ओ मेरे प्यार आ जा (फिल्म: भूत बंगला, 1965)

एक ऐसी हॉरर कॉमेडी जिसमें आओ ट्विस्ट करें (मन्ना डे) और भुतहा गीत जागो सोने वालों (किशोर कुमार) जैसे गाने हैं, लता का यह खुशनुमा सोलो एक ताज़ा हवा के झोंके जैसा है.
युवा आर डी बर्मन की कम्पोज़िशन और अरेंजमेंट का  मज़ा ज़रूर आता  है लेकिन लता के जादू  के बिना यह गाना अधूरा ही होता.
सपनों में अगर मेरे (फिल्म : दुल्हन एक रात की , 1966 )

कुछ गाने हैं –  केवल कुछ ही लाइन सुन कर आप बता सकते है कि लता मदन मोहन के लिए गा रहीं है. राजा मेहदी अली खान द्वारा लिखित यह क्लासिक, उसी श्रेणी में आता है.
कोई बेचारा (फिल्म: सन्नाटा, 1966)

ये इतना दुर्लभ है कि इसका एक यूट्यूब लिंक ही मिलता है वो भी तीन गाने एक साथ. हमने कोई बेचारा पर क्लिक करने का सुझाव दिया है पर आप सभी सुनेंगे तो पछताएंगे नहीं.

वो तिकड़ी जिसने हमे महान गीत जैसे खामोशी फिल्म का- हमने देखी है – दिया वो यहा भी मनमोहक है. गुलज़ार का गीत अलग है और हेमंत कुमार की जटिल रचना को निभाने में लता पूरी तरह सक्षम रहीं है.

सोच के ये गगन झूमे (फिल्म:  ज्योति , 1969)

नर्म अदाज़ में पेश एसडी बर्मन के इस गीत में लता और मन्ना डे बेजोड़ है. देखिये दोनों उस्ताद गायक कैसे बरमन दादा की मुश्किल धुन और ताल को निभाते है और सामने आता है एक गीत जो सदाबहार है.

प्यास लिए मनवा हमारा ये तरसे  (फिल्म: मेरे भय्या, 1972)

अनसुने गानों की बात करें तो हम शर्त लगा सकते हैं  हैं कि आपने यह गाना नहीं सुना होगा और यह काफी दुख की बात  है.
यह महान फिल्म निर्देशक बासु भट्टाचार्य की एक अनरीलीज़्ड फिल्म का गाना है जिसे जांनिसार अख्तर (मशहूर उर्दू कवि और जावेद अख्तर के पिता) ने कलमबद्ध किया है और सलिल चौधरी ने कम्पोज़ किया है. इस गाने में मन्ना डे भी सह – गायक के रूप में हैं.
यह लता का ट्रेडमार्क गाना है – शांत सुकूनदेह और सुरीला.  यह आपके दिल के कोनों तक गर्माहट पहुंचा देगा , बस आप  वीडियो के साथ थोड़ा धीरज रखें, यह अत्यधिक दुर्लभ है.
फिर किसी शाख ने (फिल्म : लिबास , 1988 में प्रोड्यूस की गयी लेकिन अनरिलीज़्ड )

सलिल चौधरी और लता के गाने जितने बेहतरीन हैं, उस हिसाब से उनका नाम इस सूची में काफी देर से आया है. और यह धुन भी ऐसी है जिससे हर बांग्ला – भाषी परिचित होगा – सात भाई चंपा जागो रे जागो रे.
इस गाने का हिंदी संस्करण मूल बांग्ला की तुलना में धीमा और भजन-नुमा होने के साथ साथ अत्यंत दुर्लभ भी है.
कान्हा बोले ना (फिल्म : संगत , 1976 में प्रोड्यूस की गयी लेकिन अनरिलीज़्ड )

लोगों का मानना है की मदन मोहन के अलावा आरडी बर्मन वो संगीतकार थे जिन्होंने लता से सबसे अच्छा काम निकलवाया था.इन दोनों की जोड़ी पंचम की पहली रिलीज़ छोटा नवाब, 1961 से (1942: ए लव स्टोरी, 1994) के आखिरी गीत तक चली. जिसने श्रोताओं के दिल और दिमाग पर असर छोड़ा.

 

और उस समय एक फिल्म “लिबास” आई थी जो व्यभिचार पर बनी थी और इसको गुलज़ार ने निर्देशित किया था.यह फिल्म कुछ फिल्म फेस्टिवल्स को छोड़कर कभी रिलीज़ नहीं हो पायी.

लता का गाया हर गीत एक हीरा है.  हालाँकि “सिली हवा छू गयी” और “ख़ामोश सा अफ़साना” को थोड़ा बहुत याद किया जाता है. इस गाने को, जोकि पेचीदी भी है और आप के दिलो दिमाग में घूमता रहता है, जो दीदी को अपने हुनर के उरूज में पेश करता है, एक कोहिनूर है जो कहीं धूल में खो गया है.

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