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Friday, 22 November, 2024
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निर्मल पुरजा, नेपाली पर्वतारोही जिसने एवरेस्ट, ल्होत्से और मकालू की चढ़ाई दो दिन में पूरी की

14 चोटियों पर सबसे तेज़ी से चढ़ने के अलावा पुरजा के नाम तीन और रिकॉर्ड हैं. उन्होंने एवेरेस्ट से ल्होत्से तक की यात्रा सबसे काम समय में (10 घण्टे 15 मिनट) तय कर पिछले 20 घंटे के रिकॉर्ड को भी तोड़ा.

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दुनिया की सभी 8000 (26,247 फीट) मीटर की ऊंचाई से अधिक की चोटियों को फतह करने वाले पहले पर्वतारोही जर्मनी के रेनॉल्ड मेसनर थे. 16 अक्टूबर 1986 को उन्होंने ल्होत्से पर चढ़ाई पूरी कर यह उपलब्धि हासिल की. इस करिश्मे को पूरा करने में उन्हें 16 साल लगे थे. कई अन्य लोगों ने इस रिकॉर्ड को तोड़ना चाहा जिनमें कोरियाई पर्वतरोही किम चांग-हो कामयाब रहे. किम ने सात साल, 10 महीने और छह दिन- सबसे कम समय में ऐसा करने का रिकॉर्ड कायम किया, जिसे आख़िरकार निर्मल पुरजा ने तोड़ दिया है.

29 अक्टूबर 2019 को निर्मल सभी (14) आठ हजार से ज्यादा ऊंचाई वाली छोटी पर चढ़ने वाले 40वें व्यक्ति बन गए. खास बात यह है कि उन्होंने छह महीने और छह दिनों में यह इतिहास रचा. उन्होंने 23 अप्रैल को अन्नपूर्णा (8,091 मी.) से शुरुआत की और 29 अक्टूबर को शीशपंग्मा (8,013 मी.) के साथ अपनी ऐतिहासिक यात्रा समाप्त की.

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United we conquer ! Here is to The A-team ?? . .(Climbing team ) @mingma_david_sherpa , @gesmantamang , @geljen_sherpa_ @zekson_srpa ,Halung Dorchi . . . The journey of 14/7 has tested us all the way though at many levels. Together we have been through so much, we climbed not only as a team but as brothers with one sole goal to make the impossible possible pushing the human limitations to next level. Now, the BROTHERHOOD that we share between us is even STRONGER ! . . #trust #brotherhood #team . . 14/14 ✅ #14peaks7months #History . . #nimsdai #BremontProjectPossible ‬ #dedication #resilience #extremehighaltitudemountaineering #uksf #extremeoftheextreme #nolimit #silxo #ospreyeurope #antmiddleton #digi2al #adconstructiongroup #omnirisc #summitoxygen #inmarsat #thrudark #gurkhas #sherpas #elitehimalayanadventures #alwaysalittlehigher

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हिम मानव

कौन हैं ये निर्मल पुरजा ? नेपाल के धौलागिरि के मायागड़ी जिले में जन्मे निर्मल पुरजा (निम्स) एक गोरखा और विशेष नाव सैनिक थे, जो बाद में ब्रिटिश रॉयल आर्मी के विशिष्ट विशेष बलों में सेवा करने के लिए चले गए. ऊंचाई वाले पर्वतारोहण में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें जून 2018 में एमबीइ से सम्मानित किया गया था.

पुरजा अपने पिता की तरह ब्रिटिश सेना में एक गोरखा बनना चाहते थे. 2003 में जब वह 18 वर्ष के थे, तब गोरखा रेजिमेंट में शामिल होने पर उनका ये सपना सच हो गया.

एवरेस्ट बेस कैंप के लिए एक अभियान के दौरान 2012 में ही पुरजा को पहाड़ों से प्यार हो गया. उस समय उन्होंने कहा, ‘पहाड़ों पर खड़े होकर इस ऊंचाई से दुनिया का नज़ारा देखने का चस्का मुझे उसी समय लगा.’

प्रोजेक्ट पॉसिबल

पहाड़ी इलाके में जन्मे पुरजा को देखकर कोई भी कहेगा कि उनका जन्म पहाड़ों पर चढ़ने के लिए ही हुआ है और हो भी क्यों न- धौलागिरी में कई ऊंची चोटियां हैं जिनमें से एक की ऊंचाई 8000 मीटर से अधिक है. जल्द ही पुरजा ने ठान लिया कि वो पर्वतारोहण पर पूरी तरह से अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. इसके बाद उन्होंने ‘एलिट हिमालयन एडवेंचर’ कि स्थापना कि जहां प्रोजेक्ट पॉसिबल 14/7 का जन्म हुआ.

अप्रैल 2019 में पुरजा ने सात महीनों में सभी 14 चोटियों पर विजय प्राप्त करने की ठान ली. उन्होंने निम्स दाई नाम से अपने ‘प्रोजेक्ट पॉसिबल 14/7 के लिए पैसे इकठ्ठा करने का कैंपेन शुरू किया. दान में मिली 10 यूरो की धनराशि औज़ार खरीदने में चली गयी और 30 यूरो से रस्सियां खरीदी गयीं.

23 अप्रैल को पुरजा ने अन्नपूर्णा की चढ़ाई शुरू की. उसके बाद 12 मई को धौलागिरी (8,167 मी.) पर चढ़ना शुरू किया. 15 मई को कंचनजंगा (8,586 मी.) हफ्ते भर बाद एवेरेस्ट (8,848 मी.), उसी दिन ल्होत्से (8,516) और 24 मई को मकालू (8,481 मी.) मई के महीने में एक के बाद एक वो कई चोटियों पर विजय पताका लहराते चले गए.

अंतिम शिखर शीशपंग्मा (8,013 मी.) पर चढ़ने से पहले जुलाई से सितम्बर तक बरसात शुरू हो चुकी थी और अक्टूबर में चीन के अधिकारियों से परमिट लेने की लम्बी लड़ाई के बाद आख़िरकार निर्मल ने वो कर दिखाया जो नामुमकिन सा प्रतीत होता है.

इंडियन माउंटेनीरिंग फॉउण्डेशन के मनिंदर कोहली ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले दस सालों में तेज़ी से बदल रहे पर्वतारोहण की तकनीकों में ये घटना एक क्रांति के सामान है. आमतौर पर यूरोपी पर्वतारोही ही ‘स्पीड चढ़ाई’ करने के लिए जाने जाते थे, पर निर्मल के इस कारनामे से सबका ध्यान नेपालियों और शेरपाओं की तरफ गया है जो प्राकृतिक रूप से अच्छे पर्वतारोही होते हैं पर फिर भी उन्हें उनका श्रेय नहीं दिया जाता.’

हमारी बात पुरजा से नहीं हो सकी, परन्तु उनके मैनेजर रिचर्ड पिकार्ड ने बताया की पुरजा का अगला प्लान हिमालय की अमा डबलम पर 11 नवम्बर को चढ़कर प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की याद में एक फूल का पौधा लगाना है.

रिकॉर्ड तोड़े, दिल जीते

14 चोटियों पर सबसे तेज़ी से चढ़ने के अलावा पुरजा के नाम तीन और रिकॉर्ड हैं. उन्होंने एवरेस्ट से ल्होत्से तक की यात्रा सबसे कम समय में ( 10 घण्टे 15 मिनट ) तय कर पिछले 20 घंटे के रिकॉर्ड को भी तोड़ा. दूसरा रिकॉर्ड एवरेस्ट, ल्होत्से और मकालू पर लगातार सबसे कम समय में चढ़ाई करने का है. 48 घण्टे में ऐसा कर उन्होंने अपने ही पुराने रिकॉर्ड को तोडा. पुरजा के पास एक ही सीजन (17 दिनों में) में दो बार एवरेस्ट और एक एक बार ल्होत्से और मकालू पर चढ़ाई करने का भी रिकॉर्ड है.

परन्तु वैश्विक स्तर पर इस तरह के रिकार्ड्स की इतनी मान्यता नहीं है. इंडियन माउंटेनीरिंग फॉउण्डेशन के अमित चौधरी (विंग कमांडर) बताते हैं, ‘हम इस तरह के रिकार्ड्स को बढ़ावा नहीं देते हैं, न ही इन्हें रिकार्ड्स मानते हैं. ये पर्वतारोहण नहीं है, ये बस सनसनी फ़ैलाने और ध्यान आकर्षित करने के लिए है.’

लेकिन ये पुरजा के हौसलों को तोड़ने वाला नहीं है. न ही उनके प्रशंसकों पर इससे कोई फर्क पड़ने वाला है. दुनिया भर से अभी भी उनके लिए शुभकामना संदेशों की झड़ी लगी हुई है. इनमें से एक प्रसिद्ध पर्वतारोही कौनराड ऐंकर भी हैं.

कयासों से उलट, पुरजा के लिए ये जल्दी लोकप्रियता पाने का ज़रिया नहीं था. ‘मेरे लिए ये सिर्फ अपनी असीम संभावनाओं को खोजना और मानव शक्ति की सीमाओं का पता लगाने का माध्यम है, पर मैं प्रकृति से टक्कर नहीं लेना चाहता..मैं जानता हूँ कब आगे बढ़ना है और कब रुकना है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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