नई दिल्ली: काले फ्रेम का चश्मा लगाए और टी-शर्ट पहने, चेहरे पर बिना किसी मेकअप के, भोजपुरी गायक और यूट्यूब सनसनी नेहा सिंह राठौड़ ने सीधे कैमरे में देखते हुए बड़े सामान्य तरीक़े से हिंदी में बात की. मंगलवार को अपलोड किया गया वीडियो बहुत आलोचनात्मक था लेकिन इस बार इसमें कोई कविता, आकर्षक बीट या आमतौर पर साड़ी में लिपटी शख़्सियत नहीं थी.
उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी से चुनाव शुरू हो रहे हैं. राठौड़ जो फिलहाल वाराणसी में रहती हैं उन्होंने अपने दर्शकों को एक सीधा संदेश दिया था: ‘चुनाव का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है. इसी समय सरकारों की पूंछ दबी होती है और सबसे ज़्यादा ताक़त लोगों के पास होती है. यही समय है जब आप सरकार से शिकायत कर सकते हैं और कुछ सुधार ला सकते हैं…’
कुछ घंटों के भीतर, वीडियो को 1.71 लाख से अधिक व्यूज़ मिल गए. हालांकि, इसमें भोजपुर रैप गीतों के वो तत्व नहीं थे जिन्होंने यूपी सरकार की तीखी लेकिन मनोरंजक आलोचना ने राठौड़ को राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिला दी थी.
पिछले महीने जारी किए जाने के बाद से, ‘यूपी में का बा (यूपी में क्या है)’, भाग 1 और 2 को क्रमश: 53 लाख और 26 लाख व्यूज़ मिले हैं. राठौड़ ने कहा है कि तीसरा भाग भी जल्द आने वाला है लेकिन साफ है कि 24 वर्षीय युवती की आवाज़ और संदेश, लोगों के बीच तब भी गूंजते हैं जब उनमें संगीत और नाट्य प्रदर्शन नहीं होते.
दिप्रिंट से बात करते हुए राठौड़ ने कहा कि लोक कलाकार बनने से पहले वो एक चिंताशील नागरिक थीं और इसी के चलते उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल की शुरुआत की. राठौड़ ने हंसते हुए कहा, ‘मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मैं क्या हूं? लेकिन मैं ख़ुद को जनकवि मानती हूं’.
आज, मीडिया इंटरव्यूज़ और सोशल मीडिया फॉलोइंग से जुड़े रहने के बीच, जिसमें कुछ बड़े उद्योगपति और अन्य सार्वजनिक हस्तियां शामिल हैं, उनके पास सांस लेने का समय नहीं है. यूपी के विपक्षी नेता भी उसे फॉलो कर रहे हैं और बड़ी ख़ुशी के साथ उसके गीतों का इस्तेमाल करते हुए यूपी की बीजेपी सरकार पर तंज़ कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव के दफ्तरों से फोन आए थे’.
‘थोड़ी कम आत्मविश्वासी’ बीएससी ग्रेजुएट के लिए ये एक बड़ी उछाल है जिसने कहा कि उसे दरअसल अपनी आवाज़ उस ग़ुस्से से मिली, जो उसे 2020 लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों की दुर्दशा देखकर महसूस हुआ.
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‘मैं एक अकेली सेना हूं’
तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी नेहा सिंह राठौड़ की परवरिश बिहार के एक सामान्य मध्यम-वर्गीय परिवार में हुई. उनके पिता एक निजी कंपनी में कर्मचारी हैं और मां एक गृहिणी हैं. दो साल पहले तक, राठौड़ पारंपरिक सफलता के एक घिसे-पिटे रास्ते पर चल रहीं थीं और 2018 में उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय में बीएससी की डिग्री हासिल की थी.
दिप्रिंट के साथ एक टेलीफोन इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘मैं कभी शर्मीली नहीं थी लेकिन मुझमें उतना आत्मविश्वास भी नहीं था. इसलिए, मैं ये नहीं कहूंगी कि मैं बचपन से ही एक लोक गायक बनना चाहती थी’.
उनका कहना था कि वो पहली बार अपनी आवाज़ उठाने के लिए तब मजबूर हुईं जब मार्च 2020 के लॉकडाउन के बाद उन्होंने प्रवासी श्रमिकों को शहरों से पैदल अपने घरों को आते देखा. उन्होंने याद किया कि उस समय वो बिहार के कैमूर ज़िले में, अपने पैतृक गांव में रह रहीं थीं, और यही वो समय था जब उन्होंने पहली बार एक मंच के तौर पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया.
राठौड़ ने कहा, ‘जब मैंने घर लौटते मज़दूरों की तस्वीरें देखीं जो भूख से निढाल थे और जिनके पैरों में चप्पलें नहीं थीं तो मुझे रोना आने लगा था’.
मई 2020 में उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल शरू कर दिया और सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए लोक गायकी माध्यम का इस्तेमाल करने का फैसला किया.
उनके पिता के मन में इसे लेकर गंभीर संदेह था क्योंकि भोजपुरी संगीत को ‘अश्लीलता’ से जोड़कर देखा जाता है लेकिन राठौड़ को भरोसा था कि वो इस छवि को बदल सकती हैं और उन्होंने काम शुरू कर दिया.
उन्होंने समझाया, ‘मैं एक अकेली सेना हूं. गीत लिखने से लेकर शूटिंग और रिकॉर्डिंग तक, मैंने अपने आप सब कुछ सीखा’.
इस प्रयास का एक हिस्सा ऐसा व्यक्तित्व विकसित करना था जिससे लोग जुड़ाव महसूस करें. रोज़मर्रा के जीवन में आमतौर से चश्मा लगाने वाली और शलवार सूट पहनने वाली राठौड़ ने म्यूज़िक वीडियोज़ में अपने आपको एक ऐसी महिला के रूप में पेश किया, जो खेत जोतती है और कारख़ानों में काम करती है- माथे पर बिंदी और सर पर साड़ी का पल्लू. इस सहज सी छवि और शीर्ष सत्ताधारियों को चुनौती देते गीतों के बोलों ने जल्द ही लोगों का ध्यान खींचना शुरू कर दिया.
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प्रारंभिक सफलता और विवाद
नेहा सिंह राठौड़ के यूट्यूब चैनल ने पहली बार अक्टूबर-नवंबर 2020 में बिहार असेंबली चुनावों के दौरान तहलका मचाया जब उनके गीत ‘बिहार में का बा?’ को तुरंत तवज्जो मिली. ये गीत मनोज बाजपेई के ‘मुम्बई में का बा’ से प्रेरित था जिसमें बिहार के श्रमिक वर्ग की दुर्दशा पर रोशनी डाली गई थी और इसे सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से शेयर किया गया.
राठौड़ ने दिप्रिंट को बताया, ‘मनोज बाजपेयी को भी मेरा गीत पसंद आया और बहुत से बिहारी सितारों ने मुझसे संपर्क किया’.
लेकिन, इसी समय के आसपास राठौड़ ने पहली बार किसी विवाद का मज़ा चखा. नवंबर 2020 में, जब उन्होंने इलाहबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति पर एक गीत अपलोड किया तो कई छात्रों ने उनसे मांफी की मांग की क्योंकि उन्होंने कैम्पस राजनीति को अवैध गतिविधि के रूप में चित्रित किया गया था और कुछ छात्रों को ‘बॉम्बर’ क़रार दे दिया था.
जहां राठौड़ को ग़रीबी, बेरोज़गारी और नशाख़ोरी जैसे जटिल विषय उठाने के लिए सराहा गया है, वहीं सोशल मीडिया कॉमेंट सेक्शन में उनके विरोधियों ने उनपर ‘प्रचार की भूखी’ और ‘राजनीतिक महत्वाकांक्षा से प्रेरित’ होने का आरोप लगाया है.
राठौड़ इसका खंडन करती हैं और कहती हैं कि वो सत्ता के पीछे नहीं हैं बल्कि सत्ता के सामने सच्चाई को रखती हैं. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से कभी कभी उन्हें मुश्किलें भी पेश आईं हैं.
उन्होंने कहा, ‘कभी कभी मुझे कई जगहों पर परफॉर्म करने के लिए बुलाया जाता है लेकिन आख़िरी समय पर कार्यक्रम रद्द कर दिया जाता है. मुखर होने की आपको क़ीमत चुकानी पड़ती है. ख़ुद का फेसबुक पेज चलते-चलते ही बीत जाएगा तो भी चलेगा’.
राठौड़ ने आगे कहा कि उन्हें ट्रोल्स से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने कहा, ‘मैंने इस सब से निपटना सीख लिया है. अब तो मैं अपना मैसेंजर खोलती भी नहीं’. सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के अलावा अब उनका मिशन भोजपुरी संगीत की उन्नति है.
उन्होंने कहा, ‘भोजपुरी संगीत के नाम पर बहुत अधिक अश्लीलता फैलाई जा रही है. किसी को कुछ तो करना था’. राठौड़ का कहना है कि वो एक ‘भोजपुरी बचाव आंदोलन’ की अगुवाई कर रही हैं और अकसर लाइव सेशंस की मेज़बानी करती हैं जहां लोगों को लोक संगीत और असली भोजपुरी गीतों की शिक्षा दी जाती है.
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