कई सरकारी स्कूलों में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक है लेकिन, यह तथ्य उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी की लड़कों के साथ उनकी भागीदारी का स्तर. इस मामले में एक अच्छा उदाहरण देखा जा सकता है रायगढ़ जिला परिषद प्राथमिक मराठी स्कूल दिवील में. यह स्कूल जिला मुख्यालय अलीबाग से करीब 130 किलोमीटर दूर तहसील पोलादपुर के अंतर्गत है. ऐसा संभव हुआ यहां की शिक्षिकाओं की सोच और प्रयासों से. इसके लिए, यहां की शिक्षिकाएं जून, 2018 से सकूल की कक्षाओं में विशेष सत्र आयोजित कर रही हैं.
इसके कारण ज्यादातर लड़कियों के व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है. अब यहां की ज्यादातर लड़कियां समय से पहले स्कूल तो पहुंच ही रही हैं, कक्षा में अपनी नियमित उपस्थिति भी दर्ज करा रही हैं. यही नहीं, ये लड़कियां शाला-प्रबंधन के कई कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. बात चाहे खेलों की हो या पढ़ाई की, स्वच्छता की हो या अभिव्यक्ति के कौशल की, छोटे बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की हो या नेतृव्य क्षमता की, यहां की ज्यादातर लड़कियां अपने प्रदर्शन से पूरे क्षेत्र में एक अलग पहचान बना रही हैं.
करीब एक हजार की जनसंख्या वाला दिवील मराठा बहुल गांव है. यहां अधिकतर बड़े और मध्यम श्रेणी के धान, दलहन व तिलहन उत्पादक किसान परिवार हैं. 1932 में स्थापित इस स्कूल में कुल 62 बच्चों में 32 लड़कियां और 30 लड़के हैं.
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लड़कियां ऐसे आईं आगे
शिक्षक द्वारकानाथ गुरव कहते हैं कि पहले लड़कों के मुकाबले ज्यादातर लड़कियों में स्कूल के प्रति विशेष आकर्षण नहीं था. वजह, अक्सर घरेलू कामकाज के कारण समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाती थीं. इसलिए, पढ़ाई में पीछे होने से वे स्कूल के दूसरे कामों में भी झिझकती थीं. यहां लड़कियों की संख्या अधिक है तो जाहिर है कि उनकी झिझक स्कूल की शैक्षणिक दिनचर्या को भी बहुत प्रभावित करती. यही वजह है कि वे कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम और प्रदर्शनियों में पूरे आत्मविश्वास के साथ शामिल नहीं हो पाती थीं.
लेकिन, स्कूल में जब नई शिक्षिकाएं आईं तो उनहोंने शिक्षण पद्धति और कई गतिविधियों के बूते लड़कियों के संकोची स्वभाव को बदलने में धीरे-धीरे सफलता हासिल की. इसके बाद, लड़कियों को कई आयोजनों की पूरी जिम्मेदारी सौंपी जाने लगी. साथ ही, स्कूल ने परिजनों से बार-बार मुलाकातें कीं और लड़कियों को समय पर स्कूल भेजने के लिए राजी किया.
मौका मिलने पर कड़ी मेहनत और अभ्यास के बाद यहां की लड़कियों ने गत वर्ष तहसील स्तर पर आयोजित कबड्डी और दौड़ प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया है. इसी तरह, इन्होंने गत वर्ष तहसील स्तर पर आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी में प्रश्नोत्तरी और भाषण कला में दूसरा स्थान प्राप्त किया है. इसके अलावा, यहां की लड़कियों ने गत वर्ष ही शिक्षा केंद्र के स्तर पर आयोजित पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन में भी दूसरा स्थान प्राप्त किया है.
इन अवसरों को भुनाया
शिक्षिका सीमा काले बताती हैं कि उन्होंने कक्षा में व्याख्यान देने की बजाय कुछ गतिविधियां आयोजित कीं. इसलिए, इन गतिविधियों में लड़कियों की लगातार सहभागिता से उन्हें अपनेआप अपना व्यक्त्वि निखारने का मौका मिला. विशेषकर सहयोगी खेल और समूह में कार्य करने वाली प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने से उनमें खुलापन आता गया और वे नि:संकोच बोलने और पूछने लगीं.
दूसरी तरफ, विशेषकर ‘महिलाओं का आदर करना’ और ‘लैंगिक भेदभाव’ जैसी गतिविधियों का सभी बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा. इस दौरान बहुत सारी लड़कियां भी यह बताने लगीं कि घर और खेतों में महिलाएं कौन-से महत्वपूर्ण कार्य करती हैं और उनके कार्यों की किस तरह से अनदेखी की जाती है.
इसके अलावा, ‘घरेलू जिम्मेदारियां’, ‘देखभाल करने वाली लड़की’ और ‘ईमानदारी का फल’ जैसी अन्य गतिविधियों के सहारे स्कूल ने लैंगिकता से जुड़ी बच्चों की कई धारणाएं तोड़ने का प्रयास किया.
इसके बाद, स्कूल ने लड़कियों की अगुवाई में बाल सभाओं का आयोजन किया. इसी कड़ी में बीते 30 जनवरी, 2020 को लड़कियों की अगुवाई में सभी बच्चों ने सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन मनाया. इसमें लड़कियों ने स्कूल के पुस्तकालय से सावित्रीबाई फुले के बारे में बहुत सारी जानकारियां हासिल की.
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लड़कियां संभाल रहीं स्कूल
शिक्षिका अपेक्षा भोंसले के मुताबिक इन गतिविधियों के क्रियान्वयन के बाद बीते डेढ़ वर्ष में लड़कियों का अध्ययन स्तर भी सुधरा है. पिछले शैक्षणिक सत्र के मुकाबले इस बार लड़कियों का परीक्षा परिणाम 20 प्रतिशत बेहतर रहा है. अब विशेषकर तीसरी और चौथी कक्षा की लड़कियां पहले से अधिक शिष्ट, अनुशासित और जिम्मेदारी का अनुभव कर रही हैं.
दूसरी तरफ, स्कूल की दिनचर्या में भी लड़कियों की जवाबदेही बढ़ती जा रही है. कक्षा चौथी की समीक्षा भिलोरे बताती हैं, ‘हम कुछ सहेलियों ने एक समूह बनाया है. हम मिलकर स्कूल के बगीचे में पेड़ों को पानी देते हैं, साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं.’
कक्षा चौथी की प्राची चाढ़वीकर कहती हैं, ‘हमारा एक और समूह है, जो स्कूल में या घर जाकर छोटे बच्चों की पढ़ाई कराता है.’
(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)