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Tuesday, 11 February, 2025
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लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद में 6 नई भाषाओं में ट्रांसलेशन सेवाओं की घोषणा की

पहले अनुवाद सेवाएं 10 भाषाओं में उपलब्ध थीं, जिनमें असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु, साथ ही हिंदी और अंग्रेजी शामिल थीं.

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नई दिल्ली: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को संसद में छह नई भाषाओं में अनुवाद सेवाओं का विस्तार करने की घोषणा की, जिनमें बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, उर्दू और संस्कृत शामिल हैं.

संसद में भाषण देते हुए बिरला ने कहा कि पहले अनुवाद सेवाएं 10 भाषाओं में उपलब्ध थीं, जिनमें असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु, साथ ही हिंदी और अंग्रेजी शामिल थीं.

“अब, हमने छह और भाषाओं को शामिल किया है- बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, उर्दू, और संस्कृत. इसके साथ ही, जैसे-जैसे मानव संसाधन उपलब्ध होंगे, हम इन भाषाओं में भी समानांतर अनुवाद प्रदान करने के प्रयास कर रहे हैं,” उन्होंने कहा.

“भारत की संसदीय प्रणाली एक लोकतांत्रिक ढांचा है, जो इतनी सारी भाषाओं में अनुवाद प्रदान करती हैं. जब मैंने वैश्विक स्तर पर यह चर्चा की कि हम भारत में 22 भाषाओं में यह प्रयास कर रहे हैं, तो सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी सराहना की गई. हमारा प्रयास यह है कि 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाओं को हम भविष्य में भी शामिल करें,” ओम बिरला ने कहा.

डीएमके के सांसद दयानिधि मारन ने लोकसभा अध्यक्ष की घोषणा पर आपत्ति जताते हुए पूछा कि संस्कृत में समानांतर अनुवाद पर जनता का पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है, जबकि इसके बोलने वालों की संख्या केवल 70,000 है जैसा कि जनगणना में बताया गया है.

मारन ने कहा,”यह भारत के किसी भी राज्य में बातचीत के लिए इस्तेमाल नहीं होती. कोई भी इसे नहीं बोल रहा है. 2011 की जनसंख्या सर्वे में कहा गया था कि केवल 73,000 लोग इसे बोलते हैं. टैक्सपेयर्स का पैसा क्यों बर्बाद किया जा रहा है, आपकी RSS विचारधाराओं की वजह से?”

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, अध्यक्ष ने उन्हें फटकारते हुए पूछा, “आप किस देश में रहते हैं?”

“यह भारत है, जिसका ‘मूल भाषा’ संस्कृत रही है. इसलिए हमने 22 भाषाओं का उल्लेख किया, न कि सिर्फ संस्कृत का. आपको संस्कृत से क्यों आपत्ति है?” बिरला ने पूछा.


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