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Sunday, 3 November, 2024
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कैसे नदियों का होगा 2074-75 में स्वरूप, तब भी आएगी बाढ़

गंगा की धारा को सरकार अपनी जरूरतों के अनुसार बदलती रही और आखिर में वह एक मानव निर्मित नदी के रूप में तब्दील हो जाएगी.

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नई दिल्ली: इन दिनों बिहार और पूर्वोत्तर के राज्य बाढ़ की चपेट मे हैं, बाढ़ से इन राज्यों में हुई तबाही की खबरें हर दिन मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं. सरकार नदियों को संरक्षित करने और साफ सुथरा करने के लिए नित्य नए वादे तो कर रही है लेकिन नदियों के बेड एरिया में लोग लगातार कब्जा कर उसमें खेती-बाड़ी कर रहे हैं सोसायटी का निर्माण कर लिया है. अब जब नदियां बरसात के दिनों में पूरे शबाब पर होती हैं और अपने बेड एरिया में बढ़ती हैं तो यही लोग बाढ़-बाढ़ चिल्लाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी कह रही है लेखक अभय मिश्रा की किताब माटी मानुष चून.

अपनी किताब में अभय भविष्य को देख रहे हैं कैसा होगा 55 साल बाद देश, देश के हालात, बांध, और बाढ़ के इर्द-गिर्द घूमती है. अभय की यह किताब वैसे तो गंगा के इर्द-गिर्द घूमती हैं लेकिन इसमें नदियों के दोहन, बेदम होती नदियों का 2074 में हाल कैसा होगा, उस समय बाढ़ की स्थिति क्या होगी को बखूबी बताने की कोशिश की है.  पानी की कहानी जिसे उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोते हुए लिखा है वेंटिलेटर पर जिंदा एक महान नदी की कहानी.

55 साल बाद 2074-75 में देश में नदियों की स्थिति क्या होगी, क्या होगी गंगा की स्थिति. तब जब दुनिया का सारा पानी कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ा है.

लेखक नदी को कुछ अलग अंदाज में बयां करने की कोशिश करते हैं. किताब ‘शुरू अन्त’ से होता है और अंत ‘नो वन किल्ड रिवर या एक रुका हुआ फैसला’ पर होता है. किताब महज दो महीने में नदी की पूरी कहानी कहती है कि कैसे ‘नदी जोड़ो परियोजना’ और ‘बांध’ के विरोध में पर्यावरणीय आंदोलनों में तेजी को जोड़ा है. 13 दिसंबर 2074 की रात से शुरू हुई कहानी कई मोड़ से गुजरती है. किताब की शुरुआत पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में आधी रात में आई बाढ़ से होती है जिसमें लेखक बताते हैं कि किस तरह पूरा गांव लगातार हो रही बारिश से आई बाढ़ से बचने के लिए एक पहाड़ की ओर भागता है. पहाड़ पर बना हजारों साल पुराना शिव मंदिर कभी डूब नहीं सकता है. अब वह मंदिर ही उसकी आखिरी उम्मीद बचा था. मंदिर धाराशाई होने-होने को था.

मालदा सहित बंगाल-बिहार के हिस्से के लिए बाढ़ आना कोई नई बात नहीं है..इन दिनों देश एकबार फिर बाढ़ की चपेट में हैं. बिहार, नेपाल, बांग्लादेश सहित आधे भारत में गंगा सहित सभी नदियों का दबा गुस्सा फूट रहा है. हजारों हेक्टेयर जमीन गंगा के विकराल होते मुंह में समा चुकी थीं. फ़सल तो पहले ही पूरी तरह बर्बाद हो चुका था. बंगाल में फरक्का के आसपास के क्षेत्र को पद्मा-मेघना नदी भी रौद्र रूप दिखा रही थीं. फरक्का बैराज की अनूठी कहानी को दिखाया है कि किस तरह से बरसात के दौरान नदियां उफान भरती हैं और फिर सरकार की सारी कोशिशें बैराज के गेट को तोड़कर बह जाती हैं.

कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है किताब का दूसरा चैप्टर सीधे एक महीने आगे जनवरी ले जाता है जहां वह यह बताने की कोशिश करता है कि संवेदनाओं के सरोकार आर्थिक स्थिति से तय होते हैं. बांग्ला देश और भारत नदियों पर हुई फरक्का संधि पर बात होती है. मामला अंतराष्ट्रीय न्यायालय की सलाहकार साक्षी भारत आती हैं. क्योंकि बांग्लादेश इस पूरी त्रासदी जिसे फरक्का त्रासदी का नाम दिया गया है उसे अंतराष्ट्रीय अदालत में पहुंचा दिया है. वहीं हैं इस पूरे मामले की न्याय अधिकारी जो यह देखने आईं हैं कि इस भयावह स्थिति को रोकने के लिए क्या कोशिशें की गईं.

साक्षी की बचपन की कुछ यादें बाढ़ से और भारत से जुड़ी हैं जो कोलकाता में उतरते ही झोंके से उसके पटल पर आ जाती है. इसके साथ लेखक धीरे धीरे मीटिंग के साथ किताब में अपने साथियों के साथ हुई मुलाकातों का जिक्र करते हैं. जिसमें बंग भूमि का दर्द, समुद्र आकार ले रहा है, महान नदी जब टूटती है, मछली जबरदस्ती की रानी है के साथ क्योंकि भगवान को कभी कैंसर नहीं होता से कहानी धीरे-धीरे गंगा, नदियों और उससे जुड़े लोगों को जोड़ने की कोशिश करते हैं. किताब कहीं कहीं रोचक जानकारियों से भरपूर है तो कहीं बहुत बोझिल हो गई है.

अगर नदियों में आने वाली बाढ़ को समझना है, बाढ़ में होने वाली त्रासदी, नदियों में बढ़ते गाद और उसके गणित को समझाने की भरसक कोशिश की है. यही नहीं किस तरह 1857 के गदर के बाद की कहानी पहली गिरमिटिया चैप्टर में बहुत ही रोचक तरीके से पेश किया गया है. इस एक चैप्टर में पाठक को बताने की कोशिश की गई है कि कैसे 1857 के गदर के बाद कैसे गंगा के किनारों पर काल बनकर आया.  किसानों पर जमींदार के अत्याचार से लेकर कई कहानियों का जिक्र है. कहानी 2074 से लेकर 2075 में पहुंच जाती है. गंगा की त्रासदी से मरती गंगा और उग्र होती गंगा की त्रासदी के बीच साक्षी किस तरह से नदियों के निर्माण की बात करती हैं.

बंगाल से नई दिल्ली के सफर में साक्षी, गंगा के इर्द-गिर्द घूमती नदी की बेहतरीन समन्वय के बीच नदियों पर अतंरराष्ट्रीय संधि को उजागर करती अभय मिश्रा की इस किताब के दूरगामी परिणाम होंगे जिसमें वह यह बताने की कोशिश करते हैं कि कैसे भारत ने ने बांग्लादेश के साथ पानी को लेकर संधि की और लगातार बांग्लादेश को पानी देते रहे. वहीं कई परियोजनाओं का जिक्र है जिससे पाठक को यह पता चलता है कि किस तरह सप्तकोशी परियोजना फेल हुई.

कहते हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध अगर होगा तो वह पानी को लेकर होगा और उसका एक नजारा इस किताब में देखने को मिलता है. लेकिन किताब के आखिरी चैप्टर में जिस तरह से नो वन किल्ड रिवर में नदी जोड़ों परियोजना को बाढ़ के मामले में एक फेल परियोजना बताया है..वहीं साक्षी ने बताया कि गंगा नदी का भविष्य क्या है..कैसे अपने फायदे के लिए गंगा अविरल धारा न रहकर 55 साल बाद मानव निर्मित नदी बन जाएगी जिसपर बैराज होंगे, जिसकी धारा को सरकार अपनी जरूरतों के अनुसार बदलती रही और आखिर में वह एक मानव निर्मित नदी के रूप में तब्दील हो चुकी है, जिसे देश गंगा कहते हैं.

(किताब- माटी मानुष चून, लेखक- अभय मिश्रा, प्रकाशक- वाणी प्रकाशक, )

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