scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमसमाज-संस्कृतिखेल के मैदान में हरियाणा कैसे बना चैंपियन

खेल के मैदान में हरियाणा कैसे बना चैंपियन

Text Size:

हरियाणा के लोगों में कृषि और सेना की ओर एक ऐतिहासिक झुकाव रहा है, दोनों ही पेशे शारीरिक दक्षता की मांग करते है.

नई दिल्ली: पिछले दशक में हर अंतरराष्ट्रीय इवेंट के बाद इस बात की चर्चा हर बार होती है, जैसा कि हाल के एशियाई खेलों के बाद हो रही है : हरियाणा के बारे में ऐसी क्या बात है जो इस राज्य को भारतीय मैडल तालिका के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुँचाती है?

जकार्ता-पालेमबांग खेलों में हरियाणा ने भारत के 69 पदक में से 18 और 15 स्वर्ण पदक में से पांच स्वर्ण पदक जीते. इस साल की शुरुआत में गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में, राज्य ने भारत के 26 स्वर्ण पदक में से 9 स्वर्ण पदक जीते थे और कुल 66 में से 22 पदक जीते थे. इससे पहले, राज्य ने 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के 64 पदकों में से 19 पदक जीते और 2010 के नई दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में देश के 101 में से 27 जीते थे.

ऐसे इवेंट राज्य के लिए आशा की किरण हैं, भारत के सबसे अमीर राज्य होने के बावजूद, आमतौर पर यह राज्य खराब लिंग अनुपात, महिलाओं के खिलाफ स्थानिक अपराध और बेरोज़गारी के लिए खबरों में रहता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि वे इस तथ्य को हाईलाइट करने में भी मदद कर रहे हैं कि हरियाणा ने अपने एथलीटों में निवेश करने के लिए कड़ी मेहनत की है.

सुनीता खत्री राय (सोनीपत) में सरकार द्वारा संचालित मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोर्ट्स में सचिव के रूप में कार्यरत है ने कहा कि, “इसको देखो की हरियाणा सरकार ने कितनी मात्रा में स्पोर्ट्स में पैसों को इन्वेस्ट किया है.”

“यह अधिक खिलाड़ियों को आकर्षित करेगा. अब उनके प्रशिक्षण के लिए कई सुविधाएं और अकादमियां खोली जा रही हैं.”


यह भी पढ़ें : The Haryana-Kerala domination of Indian sport is complete, this Asiad shows


एम.के.कौशिक पूर्व राष्ट्रीय हॉकी कोच और पूर्व डिप्टी डायरेक्टर हरियाणा स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट ने कहा: “हरियाणा एकमात्र राज्य है जो बड़ी मात्रा में कैश देकर प्रोत्साहन करता है. सरकार जो सत्ता में आई है, उसने पैसे के रुप में खिलाड़ियों का प्रोत्साहन बढ़ाया है, जो की खेल में भागीदारी बढ़ाने में मदद करता है.”

सांस्कृतिक आत्मतीयता

लोगों का कहना है कि हरियाणा की सफलता खेल के सांस्कृतिक लगाव की वजह से उपजी है. राज्य के लोगों में कृषि और सेना के प्रति ऐतिहासिक झुकाव रहा है, दोनों ही पेशों में शारीरिक दक्षता की ज़रुरत होती है.

इस साल राष्ट्रमंडल खेलों पर एक लेख में ,खेल लेखक सौरभ दुग्गल ने हिंदुस्तान टाइम्स में उल्लेख किया कि सेना का प्रभाव राज्य में बढ़ गया है, जिसने कृषि प्रदेश हरियाणा को खेल में अपने कौशल को बढ़ावा देने की नींव रखी.

वर्ष 1966 हरियाणा से पहले एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता भिवानी के भीम सिंह थे, जिन्होंने 2.05 मीटर उच्च कूदकर एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया था.उनके प्रदर्शन के लिए उनके “मोस्ट कॉन्फिडेंट एथलिट ऑफ़ द गेम” के खिताब से नवाज़ा गया.

खेल और युवा मामलों के हरियाणा विभाग के पूर्व निदेशक और भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) के पूर्व सचिव डॉ बीके सिन्हा ने दि प्रिंट को बताया कि हरियाणा की स्वतंत्रता के बाद ही खेलों में भागीदारी की लहर पर सवार हो गया, मुख्यत: हरियाणा के दक्षिणी ज़िले जैसे नारनोल, रेवारी, भिवानी, जहां सेना का प्रभाव मज़बूत था.

वास्तव में राज्य के कई पूर्व ओलंपियन जैसे पहलवान लीला राम और देवी सिंह और लॉन्ग जम्पर राम मेहर की सेना की पृष्ठभूमि थी. बाद में वे कोच बन गए और राज्य में ओलंपियन्स की एक नई लहर को प्रेरित किया.

पारंपरिक से आधुनिक तक

सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया कि हरियाणा ने खेल को एक ऐसे स्तर तक लाने के लिए जहां खेल के लिए हरियाणा के पारंपरिक प्यार बनाये रखने का सचेत प्रयास किया जहां प्रतिभागी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते थे.

सिन्हा ने कहा, “नजफगढ़ से सोनीपत तक, पूरे बेल्ट में आज़ादी से पहले कई अखाड़े थे क्योंकि यह वहां का एक शौक था.”

हालांकि, उन्होंने कहा, मिट्टी पर कुश्ती के पारंपरिक तरीकों का अभ्यास किया जाता रहा है. हरियाणा में खेलों के विभाग ने फिर एक ‘मड-टू-मैट’ योजना शुरू की जहां उन्होंने पहलवानों को प्रशिक्षण के लिए मैट पर अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने कहा, भिवानी और दादरी में मुक्केबाज़ी लोकप्रिय थी लेकिन प्रतिभागियों को प्रतिस्पर्धा करने में संकोच था क्योंकि उन्हें डर था कि उपकरण के आभाव वे चोट की चपेट में न आ जाये.

उन्होंने कहा, “फिर हमने उन्हें उपकरण दिए और उन्हें वीडियो दिखाया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किस प्रकार प्रतिस्पर्धी मुक्केबाज़ का सामना कर सके”. “अब हमारे पास इन ज़िलों से कम से कम एक दर्जन राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज़ हैं.”

हाल के एशियाई खेलों के लिए जकार्ता में भारतीय टीम के साथ गए सिन्हा ने यह भी बताया कि हरियाणा ने वर्ष 2000 में ही पहली बार राज्य खेल नीति पेश की थी.

इस नीति ने अंतरराष्ट्रीय खेलो में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को दिए जाने वाले कैश प्रोत्साहन में काफी वृद्धि की.

सिन्हा ने कहा, ” वर्ष 2000 सिडनी ओलंपिक खेलों से पहले, कैश इनाम हज़ारों में दिए गए थे, जिसमें स्वर्ण पदक विजेता को 1 लाख रुपये का इनाम दिया जा रहा था”. “लेकिन फिर हरियाणा के कैबिनेट ने इसे बढ़ाने का फैसला लिया .”

वर्ष 2000 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने कांस्य पदक विजेताओं के लिए 25 लाख रुपये, रजत पदक विजेता के लिए 50 लाख रुपये और स्वर्ण पदक जीतने वालों के लिए 1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया.

कैश प्रोत्साहन में ज़बरदस्त वृद्धि ने तब से हरियाणा में कई खिलाड़ियों को आकर्षित किया.

यह 2000 में भी था कि खेल प्रचार के लिए भारत की शीर्ष संस्था एसएआई ने राज्य में क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना शुरू किया.

जो भी बुनियादी ढांचा निर्मित हुआ उनमें हॉकी के लिए पहला एस्ट्रो टर्फ मैदान था, जिसे शाहबाद हॉकी अकादमी में सबसे पहले लगाया गया. भारत की पूर्व हॉकी कप्तान रितु रानी ने 2014 को एशियाड में देश के लिए कांस्य पदक जीता था, उन्हें संस्थान में ही प्रशिक्षित किया गया था.

नौकरी का वादा

वर्ष 2001 में एक कैबिनेट प्रस्ताव पारित किया गया था ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) और हरियाणा पुलिस सेवा (एचपीएस) में अधिकारी के रूप में बिना बारी के नियुक्ति का वादा किया था.

इसने खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कार्य किया.

हरियाणा के खेल मंत्री अनिल विज ने इस साल एशियाड में अपने एथलीटों द्वारा उम्दा प्रदर्शन के बाद, स्वर्ण विजेता विनेश फोगत और बजरंग पूनिया और रजत विजेता लक्ष्मी शिरान के लिए 3 करोड़ रुपये तक की नकद पुरस्कार की घोषणा की.

विज ने मंगलवार को यह भी कहा कि राज्य सरकार जूनियर एथलीटों के लिए नकद पुरस्कारों की अनुमति देने के लिए अपनी खेल नीति में बदलाव करेगी.

हालांकि, हरियाणा सरकार के खेल के लिए उठाए गए एक कदम ने राज्य प्रशासन की मुश्किले बढा दी,जब उसने एक नियम पेश किया था जिसमें सरकारी नौकरियों में खिलाड़ियों को अपने इनाम और विज्ञापन की कमाई का 1/3 खेल विकास निधि को अनिवार्य रूप में देना होगा.

ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त समेत स्थानीय खेल सितारों की कड़ी आलोचना के बाद नियम को रद्द करना पड़ा था.

जकार्ता से सबक

सिन्हा ने कहा कि खेल में प्रगति के बावजूद स्थानीय खिलाड़ियों की तीक्ष्णता को बनाए रखने के लिए और अधिक मेहनत करने की ज़रूरत है.

“खेल इवेंट में हर वक़्त सेंसेक्स की तरह होता है. “उन्होंने कहा ,शिखर पर बने रहने के लिए, हर एक सेकंड महत्त्वपूर्ण है.


यह भी पढ़ें : Obsession with Asian Games’ medal tally shows India’s breathtaking apathy towards sports


उन्होंने कहा कि उपकरणों की गुणवत्ता के संबंध में बहुत प्रगति हो रही है और इसका यह मतलब है कि “किसी भी मैच के दौरान पहनने वाले कपड़े की सिलाई भी आपके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है”.

उन्होंने हरियाणा में खिलाड़ियों के लिए एक बेहतर मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण शुरू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.

हरियाणा में लोग सोचते हैं कि उनके लड़कों में बहुत ताकत है और वह अपने दम पर सामने वाले खिलाड़ी का सामना कर लेगा, लेकिन वे समझ नहीं रहे हैं कि आज के दौर में सामना करने से काम नहीं चलता अब “कौशल ताकत से ज़्यादा मायने रखता है.”

Read in English : How does Haryana top India’s medal tallies? The answer lies in history and incentives

share & View comments