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Wednesday, 1 May, 2024
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जेएनयू के ‘देशद्रोहियों’ की वजह से मैं कई सालों से होली में घर नहीं गया

बड़ी बात ये है कि भाजपा और आरएसएस वाले भले ही स्वदेशी का राग अलापते हैं, बावजूद इसके देश में 90 प्रतिशत लोग होली मनाने के लिए चाइनीज़ रंगों पर आश्रित हैं.

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अख़बार, टीवी, सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से मिलने वाली जानकारी की ख़ूबसूरती ये है कि इससे आपके सोचने का ढर्रा बनता है. अगर किसी के बारे में आपको लगातार अच्छी जानकारी दी जाती है तो उसके बारे में आपकी सोच सरकारात्मक बनती चलती है और ख़राब जानकारी दी जाए तो यही सोच नकारात्मक हो जाती है.

2016 से जेएनयू के साथ निरंतर ऐसा हुआ है कि ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ के सहारे इसकी छवि ‘हिंदू-विरोधी’ और ‘देशद्रोहियों’ के अड्डे की बना दी गई. कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों के पास इस यूनिवर्सिटी से जुड़ी कई बातें व्हाट्सएप फॉरवर्ड के रूप में भेजी जाती हैं और उनमें से कई इन बातों को बिना जांचे-परखे सच मान बैठते हैं.

पता नहीं इसे पढ़ रहे पाठक देश के किस हिस्से से हैं और कितनी बार जेएनयू गए हैं या वहां के छात्रों से मिले हैं, लेकिन 2011 में मीडिया की पढ़ाई करने दिल्ली आने के बाद से आम तौर पर न जाने कितनी बार इस कैंपस में एक छात्र और एक रिपोर्टर के तौर पर जाना हुआ है और ख़ास तौर पर होली में तो ज़रूर जाना हुआ.

होली वाले दिन जेएनयू एक शैक्षणिक कैंपस की तरह नहीं बल्कि घर से दूर बसे एक घर जैसा लगता है. तमाम तरह के रंगों में रंगे लोग एक-दूसरे को बड़ी मुश्किल से पहचान पाते हैं. सब मिलकर बड़े प्यार और सलीके से होली खेलते हैं. यहां बिहारी छात्रों की ख़ासी संख्या होनी की वजह से रंग के अलावा कीचड़ और कपड़े फ़ाड़ने का भी रिवाज़ है. होली मनाए जाने के दौरान कीचड़ से कपड़े फ़ाड़ने तक सब में एक सलीका होता है.

दरअसल, ‘बुरा न मानो होली है’ को एक ऐसी बात के तौर पर भी लिया जाता है जिसका इज़ाद महिलाओं की सहमति के साथ होली के नाम पर खिलवाड़ करने के लिए किया गया हो.

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भोजपुरी में होली के हर गाने में भाभी, उनकी चोली और उनके साथ ज़ोर-जबर्दस्ती से लेकर दिल्ली में लड़कियों पर स्पर्म भरे गुब्बारे फेंके जाने से इस बात का सबूत है कि ‘बुरा न मानो होली है’ के नाम पर कई बार ज़्यादती होती है और सहमति के साथ खिलवाड़ होता है.

जेएनयू कैंपस की होली की एक और ख़ूबसूरती है कि यहां लड़कियों और लड़कों की संख्या लगभग बराबर होती है. लेकिन मेरे होश में किसी साल ऐसा नहीं हुआ कि किसी लड़की की सहमति से किसी तरह का खिलवाड़ हुआ हो, शायद ही ऐसा हुआ हो जब कभी किसी से किसी तरह की ज़ोर-जबर्दस्ती की गई हो.

जिस साल कन्हैया जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष थे उसी साल यानी 2016 में उमर ख़ालिद और अनिर्बान तक पर देशद्रोह के अरोप लगे. इसी साल से व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर लगातार बनाई गई इनकी ‘देशद्रोही’ और ‘एंटी हिंदू’ की छवि के बावजूद होली में मैं जब कैंपस पहुंचा, हिंदू-मुस्लिम, देशद्रोही-देशप्रेमी और ऐसे तमाम तमगों के परे ये सब होली के रंग में सराबोर दिखे.

बड़ी बात ये है कि भाजपा और आरएसएस वाले भले ही स्वदेशी का राग अलापते हैं, बावजूद इसके देश में 90 प्रतिशत लोग होली मनाने के लिए चाइनीज़ रंगों पर आश्रित हैं. जेएनयू को लेकर अच्छी बात ये है कि यहां रंग और पानी का काफ़ी कम इस्तेमाल होता है और इको फ्रेंडली होली मनाई जाती है.

बिहार और उत्तर प्रदेश की होली की तरह यहां के गंगा ढाबा के सामने एक गड्ढे की खुदाई होती है जिसमें पानी डालकर कीचड़ बनाया जाता है. मुश्किल से एक से दो टैंकर पानी में हज़ारों छात्र और कुछ बाहरी लोगी ख़ुशी-ख़ुशी होली मना लेते हैं.

अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार द्वारा 2016 से देशद्रोह के आरोपों का सामना कर रहे छात्रों के मामले में अब कोर्ट को तय करना है कि उन्होंने देशद्रोह किया है या नहीं लेकिन इन्हीं आरोपों और इनसे जुड़ी जानकारियों की वजह से अन्य लोगों के ज़ेहन में जेएनयू की चाहे जैसी तस्वीर बनी हो, घर से तकरीबन हज़ार किलोमीटर दूर बसे इस कैंपस ने होली में मुझे कभी भी घर की कमी का एहसास नहीं होने दिया.

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1 टिप्पणी

  1. Article is very biased and mentioned fake references of holi..he mentioned regarding delhi incident of sperm ballons..which was proved later in investigation that balllon was not filled by sperm , person who did this confirmed d same.. plz do ur propoganda against hinduism as it suit leftist newspaper but atleast dont use fake references.

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