मेरे पिता का सिद्धान्त था—‘जितनी कड़ी मेहनत उतनी अच्छी क़िस्मत.’ लोग उनसे कहते थे आप कितने क़िस्मत वाले हैं कि आप कामयाब हैं. यही बात लोग मुझसे भी कहते हैं, पर उनकी यह बात ग़लत है. मेरे परिवारवालों और दोस्तों ने देखा है कि मैंने कितनी कड़ी मेहनत की है, कितना संघर्ष किया है, और वे चाहते हैं कि मैं अपनी जद्दोजहद के बारे में अपनी किताब में लिखूॅँ. उनमें से किसी ने भी यह नहीं कहा कि मैं क़िस्मत वाली हूं. आपको ऐसा लग सकता है कि टाइम्स स्क्वायर के बिलबोर्ड पर मेरा नज़र आना क़िस्मत की मेहरबानी की वजह से हुआ था या उनहत्तर साल की उम्र में कवर-गर्ल बनना भी मेरी ख़ुशक़िस्मती थी. हां, मैं मानती हूं पर अपनी क़िस्मत बनाने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी पड़ती है.
जब हम टोरंटो के लिए निकले तो अपने साथ बहुत कम पैसे ले जा पाए. मैंने बहुत कड़ी मेहनत की थी और आख़िरकार जोहान्सबर्ग में काफ़ी अच्छी स्थिति में आ गई थी लेकिन चूंकि मेरा पैसा दक्षिण अफ़्रीका में ही फंस गया था इसलिए कनाडा में मुझे नये सिरे से शुरुआत करनी पड़ी.
मेरे अकाउंटेंट हर महीने हर किसी के लिए एक छोटी रकम ही भेज पा रहे थे, जिससे हम चारों अपनी-अपनी पढ़ाई कर रहे थे या किचन का सामान लाने के लिए हमें एक छोटी रकम मिल जाती थी. मैं हफ़्ते में दस घंटे बतौर शोधकर्ता काम कर रही थी जिससे हमारे फ़्लैट का किराया निकल जाता था. वहाँ पहुँचते ही मैंने मॉडलिंग भी शुरू कर दी थी जिससे बाक़ी सारे ख़र्चों का इन्तज़ाम हो जाता था.
मैंने फ़ौरन ही यूनिवर्सिटी में काम करना शुरू कर दिया था और मैं इतनी ज़्यादा व्यस्त हो गई थी कि मेरे पास अपनी बेटी टॉस्का के लिए स्कूल खोजने तक का वक़्त नहीं था.
उस बेचारी ने अपने आप ही अलग-अलग स्कूलों के बारे में जानकारियां जमा कीं, ताकि वो आसपास के इलाक़े में ही एक स्कूल का चुनाव कर सके. इस तरह स्कूल का इन्तज़ाम तो हो गया. पर जब वो घर पहुंची तो उसे समझ में आया कि हम जिस घर में रह रहे हैं, वहां तो उसे बस हाथ पर हाथ रखे बैठे रहना है, जो उसे मंज़ूर नहीं था. इसलिए वो पास ही हैमबर्गर की एक दुकान में नौकरी के लिए गई.
उन्होंने पूछा, “तुम कितने दिन काम करना चाहती हो?”
उसने जवाब दिया, “मैं रोज़ाना काम कर सकती हूं.”
हैमबर्गर शॉप के मालिक ने बताया कि क़ानूनी तौर पर तुम्हें हफ़्ते में छह दिन ही काम करने की इजाज़त मिल सकती है.
इसके बाद जब उन्होंने पूछा कि वो रोज़ कितने घंटे काम करना चाहती है तो उसने जवाब दिया, दिन में बारह घंटे. इस पर हैमबर्गर शॉप के मालिक ने कहा कि क़ानूनी तौर पर तुम रोज़ाना दिन में सिर्फ़ आठ घंटे ही काम कर सकती हो. उसे इस क़ानून के बारे में ज़िन्दगी में पहली बार पता चला था क्योंकि वो पहली बार कोई नौकरी करने जा रही थी.
उसने फ़ौरन ही सारा दिन उस जगह काम करना शुरू कर दिया, और जब उसका स्कूल शुरू हो गया तो स्कूल के बाद वो वहां काम करने चली जाती.
हैमबर्गर की दुकान में वो फ़र्श साफ़ करती थी, कचरा निकालती थी और टॉयलेट साफ़ करती थी, जो काम उसने ज़िन्दगी में पहले कभी नहीं किये थे. दक्षिण अफ़्रीका में उसने जो ज़िन्दगी जी थी, यह उससे बहुत अलग दुनिया थी. वहां उसके पास अपना एक बेडरूम था, जो उसकी ज़रूरतों और मांगों के हिसाब से बनाया गया था. उसके पास पूरी दीवार जितनी बड़ी एक अलमारी थी. घर का सबसे अच्छा कमरा उसके पास था. पर अब वो मेरे साथ बेडरूम शेयर कर रही थी और एक फ़ास्ट-फ़ूड जॉइंट में बाथरूम साफ़ कर रही थी.
लेकिन उसने इसे एक रोमांचक यात्रा की तरह देखा. उसने ख़ुद से कहा, “यह तो बस मेरी एक नौकरी है.” और वो काम करती गई. उसने कभी कोई शिकायत नहीं की.
वो पूरे महीने बर्गर और फ़्रेंच फ़्राइज़ खाती, यह भी उसके लिए एक नया अनुभव था क्योंकि दक्षिण अफ़्रीका में उसे फ़ास्ट फ़ूड नहीं मिलता था. उसने सिर्फ़ एक महीने सफ़ाई-कर्मचारी की तरह काम किया, इसके बाद उसकी तरक़्क़ी हो गई और उसे ड्राइव-थ्रू में असिस्टेंट मैनेजर बना दिया गया.
आख़िरकार टॉस्का को एक नई नौकरी मिल गई जो घर के पास ही थी. इस बार उसे एक महँगे सुपर मार्केट में काम मिला था और अब उसकी तनख़्वाह भी तकरीबन दोगुनी हो गई थी. यह उसके लिए अर्थशास्त्र का एक सबक था जिसे वो ज़िन्दगी-भर नहीं भूली.
आज वो मोलभाव करने में माहिर है और अपने यहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों के साथ इन्साफ़ करती है. जो लोग मन लगाकर काम करते हैं और दिन में कई-कई घंटे जुटे रहते हैं, उनकी तारीफ़ भी करती है.
टोरंटो में हमारी ज़िन्दगी आसान नहीं थी, पर हम जल्दी ही सब सीख रहे थे और वहां के मुताबिक़ ख़ुद को ढाल रहे थे. मैं एक मॉडल के तौर पर काम कर रही थी, पर मुझे क्रेडिट कार्ड नहीं मिल सकता था क्योंकि मेरी कोई क्रेडिट रेटिंग नहीं थी. हर बार मेरी अर्ज़ी ठुकरा दी जाती थी. इसका मतलब यह था कि हम इस दौरान अपने पास जो नकद पैसे होते थे बस उन्हीं के सहारे जी सकते थे. जब भी मुझे मॉडलिंग के लिए पैसे मिलते थे, उसके बाद हम कुछ और चीज़ें ख़रीदने के क़ाबिल हो जाते थे जैसे कि गर्म कोट और जूते या फिर घर के लिए चादरें और कम्बल.
हमने जाने कितने बैंकों से सम्पर्क किया, पर कार्ड नहीं मिलना था, तो नहीं मिला. वजह यह थी कि मेरा कोई क्रेडिट स्कोर नहीं था और क्रेडिट कार्ड के बिना मैं इस देश में अपना क्रेडिट स्कोर बना भी नहीं सकती थी. अगर मैं अपना क्रेडिट स्कोर नहीं बना पाई तो मेरे लिए नामुमकिन था कि मैं किराए पर कार, घर या कुछ और लेने के लिए लीज़ डॉक्यूमेंट बनवा सकूं. एक भी बैंक ऐसा नहीं था जो मुझ पर भरोसा करने को तैयार हो.
किसी ने मुझे सलाह दी कि डिपार्टमेंटल स्टोर की शर्तें थोड़ी नरम होती हैं, इसलिए मुझे एक स्टोर कार्ड के लिए अर्ज़ी देनी चाहिए. मुमकिन है कि वे राज़ी हो जाएँ और इस तरह मैं अपना क्रेडिट स्कोर बना सकूँ.
मैं ‘ईटन्स’ गई, जो एक बहुत बड़ा और शानदार डिपार्टमेंटल स्टोर था.
उन्होंने ‘ना’ कह दिया.
उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें इस बात की तसल्ली नहीं हो पा रही है कि मैं वक़्त पर भुगतान कर पाऊंगी. तभी मेरी नज़र उनके ऑफिस में डेस्क के ऊपर लगे ‘मदर्स डे’ के एक पोस्टर पर पड़ी जिसमें मैं ही मॉडल थी. मैंने उन्हें वो पोस्टर दिखाकर अपने बारे में बताया.
वो ख़ुश हो गए और उन्होंने कहा, “हम आपको कार्ड दे रहे हैं.”
इस तरह, मेरी तो जैसे क़िस्मत ही खुल गई. फिर मुझे याद आया कि ईटन्स के शूट के लिए मैं किस तरह गई थी. मैंने यूनिवर्सिटी से एक दिन की छुट्टी ली थी. उसके बाद मैं लोकल ट्रेन और बसों का सफ़र तय करते हुए एक बर्फ़ीले दिन स्टूडियो पहुँची थी. मेरी वह मेहनत रंग लाई.
मैं सौभाग्य लेकर पैदा हुई थी. मेरे माता-पिता बहुत अच्छे थे, जिन्होंने मुझे अच्छी शिक्षा दी. इसके बाद की पढ़ाई मैंने अपने पैसों से की और अपने काम को तीन देशों के आठ शहरों तक फैलाया. मॉडलिंग की नज़र से देखूँ तो मैं अपनी ख़ूबसूरत माँ की तरह दिखती थी और क़द मुझे मेरे आकर्षक पिता से मिला था, ये मेरी ख़ुशनसीबी थी. मॉडलिंग ने मुझे थोड़ी अतिरिक्त आमदनी करवाई. और अब, इकहत्तर साल की उम्र में, इससे काफ़ी शानदार आमदनी हो रही है. अच्छी क़िस्मत के सिवा, और क्या कहूं. हां यह ज़रूर है कि बीते पचास सालों में मैंने मॉडलिंग की दुनिया में कड़ी मेहनत की है. आज भी अपनी सेहत बनाए रखने, और अपने वज़न को क़ाबू में रखने के लिए मैं रोज़ाना, हर मिनट, हर घंटे बहुत कड़ी मेहनत करती हूँ. यह सिर्फ़ क़िस्मत नहीं है, बल्कि सही मायनों में कड़ी मेहनत है.
अगर आप सुविधाओं में पैदा नहीं हुई हैं, तो आपको अपनी प्रतिभा खोजनी होगी और उस पर कड़ी मेहनत भी करनी होगी. सोशल मीडिया के ज़रिये अपनी प्रतिभा को दोस्तों और दुनिया के सामने रखिए. मैं तो कहूँगी कि आपको भूलना होगा कि आप किन हालात में पैदा हुई थीं. एक कहावत याद रखिए—‘इक्कीस साल की उम्र में आप अनाथ नहीं कहला सकतीं’. इसका मतलब यह है कि अपने भावी जीवन की ज़िम्मेदारी आपको ख़ुद उठानी होगी. आप जितनी कड़ी मेहनत करेंगी, क़िस्मत उतने ही आपके क़रीब आती चली जाएगी.
आत्मकथा ‘जब औरत सोचती है’ की लेखिका मेय मस्क हैं और इसका हिंदी अनुवाद यूनुस ख़ान ने किया है. इस किताब को राजकमल प्रकाशन ने छापा है और यह अंश प्रकाशन की अनुमति से छापा जा रहा है.
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