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Sunday, 22 December, 2024
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ऑस्कर में जाते ही विवादों में क्यों घिरी गुजराती फिल्म ‘छेल्लो शो’

छेल्लो शो के ऑस्कर के लिए नॉमिनेट होते ही, कोई इसे विदेशी फिल्म की नकल बता रहा है तो किसी को ‘आरआरआर’ या ‘द कश्मीर फाइल्स’ के न भेजे जाने का अफसोस सता रहा है.

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गुजराती फिल्म ‘छेल्लो शो’ (आखिरी शो) को ऑस्कर में भेजे जाने की घोषणा के साथ ही हर साल की तरह आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है. किसी को लगता है कि यह ऑस्कर के लिहाज से कमजोर फिल्म है तो किसी को इसकी ‘गुजराती’ भाषा में भी मोदी और राजनीति का हाथ दिखाई दे रहा है. कोई इसे विदेशी फिल्म की नकल बता रहा है तो किसी को ‘आरआरआर’ या ‘द कश्मीर फाइल्स’ के न भेजे जाने का अफसोस सता रहा है. हालांकि इस तरह की बातें न तो अब नई रह गई हैं और न ही अनोखी. हर साल ऑस्कर में भेजी जाने वाली फिल्म के समर्थन और मुखालफत में फिल्मी और आम लोग आ खड़े होते हैं. आइए देखें कि ऑस्कर का सिलसिला आखिर है क्या?

ऑस्कर अकादमी मंगवाती है फिल्में

अमेरिका की एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड सांईसेज यानी ऑस्कर अकादमी की तरफ से दिए जाने वाले ये पुरस्कार यूं तो वहीं की फिल्मों के लिए होते हैं लेकिन तमाम अवार्ड्स में से एक पुरस्कार ‘अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म’ का भी होता है, जिसके लिए ऑस्कर अकादमी दुनिया भर से फिल्में आमंत्रित करती है. 2018 तक इस पुरस्कार का नाम ‘विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म‘ हुआ करता था.

भारत से ऑस्कर के लिए फिल्म चुन कर भेजने के लिए अधिकृत संस्था फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (एफ.एफ.आई.) है जो देश भर के फिल्म निर्माताओं की संस्थाओं से फिल्में भेजने का आग्रह करती है. नियम यह है कि पिछले एक साल के तय समय में वह फिल्म उस देश के किसी सिनेमाहॉल में कम से कम एक हफ्ते तक सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित हुई हो. इस के पीछे मंशा यह है कि भेजे जानी वाली फिल्म महज फिल्मकार की आत्मसंतुष्टि या सिर्फ अवार्ड पाने की मंशा से ही न बनाई गई हो बल्कि वह आम दर्शकों तक भी पहुंची हो.

अब यह बात अलग है कि इस नियम के दायरे में आने के लिए कई बार निर्माता-निर्देशक अपनी जेब से खर्चा करके न सिर्फ फिल्म रिलीज करते हैं बल्कि खाली पड़े थिएटरों में टिकटें भी बिकवाते हैं. 2023 में होने वाले 95वें ऑस्कर पुरस्कारों के लिए 1 जनवरी, 2022 से 30 नवंबर, 2022 तक फिल्मों के रिलीज होने का नियम बना है और इसीलिए ‘छेल्लो शो’ अब 14 अक्टूबर को थिएटरों में रिलीज की जा रही है. एक और नियम यह भी है कि वह फिल्म अंग्रेजी में न हो और मोटे तौर पर उस देश की किसी आधिकारिक भाषा में हो. अलग-अलग भाषाओं से आने वाली इन फिल्मों को एक जूरी देखती है और फिर किसी एक फिल्म को चुन कर ऑस्कर के लिए भेजा जाता है.

1957 से भारत भेज रहा है फिल्में

भारत से पहली फिल्म महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ 1957 में ऑस्कर के लिए भेजी गई थी जो आखिरी पांच में नॉमिनेट भी हुई थी. इसके बाद फाइनल फाइव में नामांकित होने का सम्मान मिला 1988 में भेजी गई मीरा नायर की ‘सलाम बांबे’ को. नामांकन पाने वाली अपनी तीसरी और अब तक की आखिरी फिल्म आमिर खान की ‘लगान’ थी जिसे 2001 में भेजा गया था. दो-एक बार ऐसा भी हुआ जब भारत ने कोई भी फिल्म नहीं भेजी. हालांकि हाल के बरसों में ‘अदामिंते माकन अबू’, ‘द गुड रोड’, ‘कोर्ट’, ‘विसरनई’, ‘न्यूटन’ जैसी काफी दमदार फिल्में भी भेजी गईं लेकिन इनमें से कोई भी शॉर्ट-लिस्ट तक न हो सकी.

इस साल का हाल

2022 में फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया को पूरे भारत से जो फिल्में ऑस्कर की दौड़ में जाने के लिए मिलीं उनमें गुजराती की ‘छेल्लो शो’ के अलावा तेलुगू की ‘आरआरआर’, हिन्दी की ‘द कश्मीर फाइल्स’, तेलुगू की ‘श्याम सिंघा रॉय’, मलयालम की ‘मालायनकुंजू’, हिन्दी-तमिल-अंग्रेजी में बनी ‘रॉकेट्री-द नंबी इफैक्ट’, तमिल की ‘इराविन निझल’ जैसी फिल्में शामिल थीं.

बहुत सारे लोगों का मानना था कि इस बार भारत की तरफ से ऑस्कर में आधिकारिक रूप से ‘आरआरआर’ को ही भेजा जाएगा. यहां तक कि एक प्रमुख विदेशी पत्रिका ने तो इस फिल्म को तीन-चार श्रेणियों में ऑस्कर दिए जाने की भविष्यवाणी भी कर डाली थी. खुद इस फिल्म को बनाने वाले भी अमेरिका में इसे मिले रिस्पांस को लेकर काफी उत्साह में थे. इधर भारत में भी इस फिल्म के पक्ष में फिल्म इंडस्ट्री, मीडिया और दर्शकों की एक लॉबी हवा बनाने में लगी हुई थी लेकिन अब ‘छेल्लो शो’ को भेजे जाने के बाद सोशल मीडिया पर बहुत लोगों का गुस्सा फूट रहा है.

नामी फिल्म समीक्षक नम्रता जोशी लिखती है कि मैं सोच भी नहीं सकती थी कि ‘आरआरआर’ को यूं अनदेखा किया जाएगा. इस फिल्म को भेज कर इस साल ऑस्कर जीतने का अच्छा मौका था. नम्रता आगे लिखती हैं कि ऑस्कर एक रणनीतिक खेल है जिसमें अच्छी या खराब फिल्म से ज्यादा ‘सही’ फिल्म भेजी जानी चाहिए.

‘छेल्लो शो’ पर विवाद

गुजराती भाषा की ‘छेल्लो शो’ के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि पिछले साल भी ऑस्कर के लिए इस फिल्म के नाम पर विचार किया गया था और तब इसे रिजेक्ट कर दिया गया था. उधर कुछ लोग 1988 में आई इटेलियन फिल्म ‘सिनेमा पैराडिसो’ की फोटो शेयर करते हुए ‘छेल्लो शो’ को उसकी घटिया नकल बता रहे है

अलग तरह का सिनेमा बनाने के लिए ख्यात फिल्मकार पेन नलिन (नलिन कुमार पंड्या) की फिल्म ‘छेल्लो शो’ गुजरात के एक ऐसे लड़के की कहानी है जो अपने पिता की चाय की दुकान पर हाथ बंटाता है और सिनेमा देखने का शौकीन है. यह फिल्म कुछ एक विख्यात फिल्म समारोहों में जाकर बेहद सराही जा चुकी है और उम्दा सिनेमा की एक बेहतरीन मिसाल भी है. लेकिन ऑस्कर में फिल्म भेजे जाने के बाद विवादों का सिर उठाना हमारे यहां एक चलन है जो कुछ दिन बाद अपने-आप शांत हो जाता है.

(दीपक दुआ 1993 से फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं. विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं.)

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