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Saturday, 21 December, 2024
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फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’: चायवाला और चौकीदार पर ज़बर्दस्त ऐक्शन कॉमेडी

बहुत दिनों बाद ऐसी एक्शन कॉमेडी फिल्म आई है जिसके एक्शन सीन याद रह जाएंगे. बॉलीवुड, हॉलीवुड, रजनीकांत-कमल हासन और ब्रूस ली को छूते हुए ये फिल्म बेहतरीन मनोरंजन करती है.

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नई दिल्ली: बहुत दिनों बाद ऐसी एक्शन कॉमेडी फिल्म आई है जिसके एक्शन सीन याद रह जाएंगे. ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ बॉलीवुड, हॉलीवुड, रजनीकांत-कमल हासन और ब्रूस ली को छूते हुए फिल्म बेहतरीन मनोरंजन करती है.

हीरोइन का कैरेक्टर ज़बर्दस्त लिखा गया है

फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ के एक दृश्य में किशोर कुमार का गाया ‘न्यू देल्ही’ फिल्म का गाना ‘नखरेवाली’ नेपथ्य में बज रहा होता है. बैकग्राउंड में लाइन आती है ‘अजनबी ये छोरियां, दिल पे डाले डोरियां’ और पर्दे पर सुप्री (राधिका मदान) एक पॉसिबल रेपिस्ट को अपने स्कार्फ से पकड़कर खींच रही होती हैं और खुद कार की बोनट पर किसी एक्शन हीरो की तरह सरक रही होती हैं. ‘बेरहम, कुछ तो अपना पता दे’ लाइन आती है और हीरो सूर्या (भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यु दसानी) गुंडों पर कहर ढाती हीरोइन को मंत्रमुग्ध होकर देखते रहते हैं.

संभवतः बॉलीवुड में ये पहली एक्शन हीरोइन है जो पूरी तरह से फाइट करती है और फाइट के बाद हीरो के लिए स्टार स्ट्रक नहीं हो जाती है. उसकी आइडेंटिटी बदलती नहीं है. बाद में सूर्या के साथ रात बिताने के बाद सुबह उठते ही वो मेडिकल स्टोर पर आई-पिल खरीदने जाती है. स्टोर वाला पानी भी देता है. ये दृश्य बिना किसी स्कैंडल के दिखाये गये हैं.

एक और दृश्य में जब सुप्री और सूर्या रात को छत पर बैठे होते हैं तब वो ‘खुजली’ का जिस तरह से वर्णन करती है, ये बस पहले फिल्मों के हीरो को हासिल था. अभिनेत्रियों को देखकर लगता ही नहीं था कि इनको खुजली हो भी सकती है. पर पारिवारिक दबाव में इतनी कॉन्फिडेंट और फाइटर सुप्री अपने होने वाले पति के सामने टूटी रहती है क्योंकि वो इसके पूरे परिवार का खर्च उठा रहा है. एक शराबी की लड़की के साथ ये कॉम्प्लिकेशन रह सकता है. वसन बाला की इस फिल्म में सुप्री का कैरेक्टर बहुत अच्छा लिखा गया है.

जितना बढ़िया हीरो, उतना बढ़िया विलेन

इस फिल्म के मुख्य नायक सूर्या को एक बीमारी है जिसकी वजह से उसे दर्द महसूस नहीं होता. उसके दादा (महेश मांजरेकर) ने उसे दुनिया में रहने के लिए ट्रेन किया है. इस ट्रेनिंग में बच्चे को सिखाया गया है कि चोट लगने पर ‘आउच’ कहना है. पूरी फिल्म में बहुत कॉन्शसली सूर्या आउच कहता है. ये सारे सीन ज़बर्दस्त हैं. इस बच्चे का रोल बहुत अच्छा है. चाहे वो वीसीआर प्लेयर के सामने प्रैक्टिस करने की बात हो या फिर पाप को जलाकर राख कर देने की बात.

नब्बे के दशक के बच्चों के लिए ये नॉस्टैल्जिया है जिसमें वो पुरानी एक्शन फिल्मों के वीसीआर प्लेयर देखते हैं. सबको अपना कल्पनाशील बचपन याद आ जाएगा. एक जगह तो हीरो कहता भी है कि लोग बड़े होते ही रेंगने क्यों लगते हैं. बचपन के सारे दृश्य कुछ ऐसे बने हैं जो फिल्म को फिल्म नहीं रहने देते. आप खो जाते हैं और पर्दे पर एक अलग ज़िंदगी चलने लगती है. बचपन की. पहले हाफ तक तो ये ज़बर्दस्त कॉमेडी चलती रहती है.

दूसरे हाफ में दो नये लोगों की एंट्री होती है. जिमी (गुलशन देवैय्या) और मणि (गुलशन देवैय्या) यानी डबल रोल यानी जुड़वां भाई. जिमी पुरानी अंग्रेज़ी फिल्मों के स्टाइलिश डॉन की तरह है जो अपने एक पैर से अपंग भाई से नफरत करते हैं और उसको तड़पाने में उन्हें बहुत मज़ा आता है. जिम्मी सिक्योरिटी गार्ड्स (चौकीदारों) की एक एजेंसी चलाता है. किसी भी क्राइम में वो खुद का हाथ गंदा नहीं करते. उनके साथ सूट पहने सिक्योरिटी गार्ड्स हैं जो कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. सारे गुंडों और सारे हीरोज को इकट्ठा कर जिमी टूर्नामेंट भी करवाता है. खुद रेफरी रहता है और जोर से बोलने पर हिदायत देता है कि ये रेसिडेंशियल एरिया है, मार-पीट करो पर हल्ला मत करो. ज़मीन पर पड़ी सुप्री को कहता है कि हिलो डुलो मत, वहीं से टेक लगाकर फाइट देख लो.

चायवाला और चौकीदार की मौजूदगी में होती है ज़बर्दस्त फाइट

फिल्म में हीरो के खिलाफ सिक्योरिटी गार्ड्स यानी चौकीदार ही फाइट करते हैं. इस सब में एक प्यारा सीन आता है जब पिटाई के डर से एक विलेन ज़मीन पर चुपचाप पड़ा रहता है, पुकारे जाने पर आंख खोलता है पर तुरंत बंद भी कर लेता है. जिमी और मणि के रोल में गुलशन देवैय्या ने ज़बर्दस्त काम किया है.

फिल्म ने पहले ही डिक्लेयर कर दिया है कि किसी का मज़ाक उड़ाना मकसद नहीं है. क्योंकि मणि की दुर्गति होते देख आपत्ति हो सकती थी. इसी दौरान एक और सीन आता है. जब विलेन का चायवाला और सिक्योरिटी वाले दोनों सूर्या से फाइट करते हैं. भारतीय लोकसभा चुनावों में चाय और चौकीदार का महत्व काफी बढ़ गया है. इस नाते ये अभूतपूर्व संयोग ज़बर्दस्त बन पड़ा है. चायवाला तो ऑफिस वाले एक्शन सीक्वेंस में भी नाटकीय गंभीरता से सब कुछ निपटा देने की बात करता है. चौकीदार भी मार खाते हैं पर मानते ही नहीं.

ये फिल्म एक बेहतरीन एक्शन कॉमेडी है. थिएटर में कई लड़कियों के मुंह से सुना कि उन्होंने किसी एक्शन फिल्म को इतना एंजॉय नहीं किया है. पहली बार किसी भारतीय फिल्म में नेपथ्य से ही डायलॉग बोले गये हैं. कहीं कहीं ये हॉलीवुड फिल्म ‘डेडपूल’ की भी याद दिलाता है. सूर्या को दर्द होता नहीं वो पीछे से डायलॉग बोलता है, पर्दे पर एक्शन करता है और हमें एक्शन सीन के दो वर्जन बताता है. एक जो वो चाहता है, दूसरा जो होता है. दोनों ही बेहतरीन दृश्य बनते हैं.

फिल्म में जब जिमी के ऑफिस में फाइट होती है तो वो साउथ कोरियन एक्शन फिल्मों की याद दिलाती है. वहां पर बूढ़े क्लर्क का रोल जबर्दस्त है. उसके ऑफिस के गार्डस गुस्से में पिस्तौल मांगते हैं पर वो बार-बार रूल-बुक का जिक्र कर मना कर देता है. अपने ऑफिस के बंदों को पिटते देख भी वो इमोशनलेस ही रहता है. कोई फर्क नहीं पड़ता. आग लग जाने के बाद फायर एक्जिट खोल आराम से निकल जाता है. हीरो-हीरोइन को रास्ता भी दिखा देता है. पर अपने नियमों से चलता है. किसी का वेट भी नहीं करता. मर्द को दर्द नहीं होता, उसी पे फिट होता है.

रजनीकांत की ‘गिरफ्तार’ बार-बार दिखती है फिल्म में

वसन बाला साउथ इंडिया के हैं और इस नाते जिमी एक जगह अपने भाई मणि से कहता है कि तू तो कमल हासन का फैन है, रजनीकांत का फैन होता तो कुछ और बात होती. पर सूर्या अपने बचपन में हॉलीवुड और चाइनीज एक्शन फिल्मों के साथ एक और फिल्म देखता है- गिरफ्तार. अमिताभ बच्चन और रजनीकांत की.

एक जगह जब सूर्या को उसके अजोबा यानी दादा छत पर चढ़कर सब कुछ उगल देने की बात कहते हैं तो वो अपनी फिल्मों की तर्ज पर ‘गिरफ्तार’ चिल्लाता है और वाकई पुलिस आ के कई पियक्कड़ लोगों को गिरफ्तार करती है. मतलब हीरो रजनीकांत के संरक्षण में है. और उसके फाइट सीक्वेंस में रजनी की अजेयता दिखती है. एकलव्य की तरह वीसीआर प्लेयर के सामने उसने कराटे की प्रैक्टिस की है.

फिल्म का एक कमजोर पक्ष है कि एक साथ ही ये कई मुद्दों को पकड़ना शुरू करती है. शराबी, शराबी की पत्नी, शराबी की बेटी. चेन स्नैचिंग में मां की मौत और बेटे का चेन स्नैचर्स के प्रति बचपन से ही कॉमिक एक्शन हीरो का भाव रहना, बेटे के बाप की नई लव स्टोरी, दादा की नेताजी वाली कहानियां और पोते को पता नहीं क्या बनाने की चाहत. अंत में दो भाइयों की क्लासिक हॉलीवुड स्टाइल में ईर्ष्यागत लड़ाई. इनमें से हर चीज को एक्सप्लोर किया जा सकता है. इन सब तमाम बातों के बावजूद फिल्म का फन हर चीज़ पर भारी पड़ता है. याद रह जाने लायक फिल्म है.

फिल्म- मर्द को दर्द नहीं होता. निर्देशक- वसन बाला. कलाकार- अभिमन्यु दसानी, राधिका मदान, गुलशन देवैय्या.

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