नई दिल्ली: अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत इस सप्ताह उर्दू अखबारों के संपादकीय में शामिल किए गए मुख्य विषयों में से एक थी. उन्होंने युद्ध समाप्त करने के उनके वादे और कमला हैरिस की हार को देश के लिए खोया हुआ अवसर बताया.
सियासत, इंकलाब और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने अपने संपादकीय में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द करने वाले निचली अदालत के फैसले को पलटने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी स्वागत किया.
उन्होंने जम्मू-कश्मीर में बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की, जिसमें क्षेत्र में स्थानीय लोगों और प्रवासी श्रमिकों दोनों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की खबरों का ज़िक्र किया गया.
दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में पहले पन्ने पर सुर्खियां बटोरने और संपादकीय में शामिल सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.
ट्रंप और युद्ध समाप्त करना
7 नवंबर को प्रकाशित सियासत के संपादकीय में राष्ट्रपति-चुनाव में ट्रंप के विजय भाषण में युद्ध शुरू करने के बजाय समाप्त करने के बारे में की गई टिप्पणियों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें कहा गया कि वैश्विक स्थिति के मद्देनज़र यह महत्वपूर्ण था. हालांकि, ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे किस बारे में बात कर रहे थे, लेकिन अखबार का अनुमान है कि वे यूक्रेन के बारे में बात कर रहे थे, जहां उनकी जीत का अमेरिकी समर्थन और सहायता पर प्रभाव पड़ा है.
सियासत ने संपादकीय में लिखा कि उनकी टिप्पणियों का गाज़ा में इज़राइल के अभियान पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसे बड़े पैमाने पर बाइडन प्रशासन द्वारा समर्थित किया गया है. फिर भी, “जब युद्ध समाप्त करने की बात आती है, तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उनके मन में क्या योजनाएं हैं.”
उसी दिन, सहारा ने अपने संपादकीय में कहा कि डोनाल्ड ट्रंप की जीत वैश्विक स्तर पर एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत है. अखबार ने कहा कि चुनाव के नतीजे कई देशों के मामलों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेंगे.
इसने कहा कि घरेलू स्तर पर, उनका अभियान नारा “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” विविधता से दूर और श्वेत ईसाई पहचान के वर्चस्व की ओर बदलाव का प्रतीक है.
इंकलाब के संपादकीय में कहा गया है कि डेमोक्रेटिक उम्मीदवार और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की हार अमेरिका के लिए अपनी पहली महिला राष्ट्रपति पाने का एक खोया हुआ मौका है.
इसमें कहा गया है कि 2020 के चुनाव के नतीजों को स्वीकार करने से ट्रंप का इनकार इस बात का संकेत है कि वे सत्ता के लिए तैयार नहीं हैं और हार को शालीनता से स्वीकार करने की गरिमा उनमें नहीं है. हैरिस पर उनके हमले, उन्हें “पागल” और “मानसिक रूप से अक्षम”कहना, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए अनुचित था. हालांकि, परिणाम दिखाते हैं कि अमेरिकी लोगों को उनका आचरण विशेष रूप से आपत्तिजनक नहीं लगा.
‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मदरसों पर हमलों पर लगे रोक’
सियासत के 6 नवंबर के संपादकीय में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया गया है, जिसमें मदरसों को अपनी सेवाएं जारी रखने की अनुमति दी गई है. इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया गया है, जिसमें यूपी कानून को असंवैधानिक करार दिया गया था.
इसमें कहा गया है कि जब से भाजपा केंद्र में सत्ता में लौटी है और उसने कई राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश और असम में जीत हासिल की है, तब से इस्लामिक मदरसों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है और उन्हें बदनाम करने की कोशिशें की जा रही है.
इसमें कहा गया है कि यह मुसलमानों के प्रति जारी दुश्मनी का हिस्सा है और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मदरसों और उनके विद्वानों की महत्वपूर्ण भूमिका को नज़रअंदाज करता है. आज भी, ये संस्थान शिक्षा प्रदान करते हैं, अनुशासन सिखाते हैं और कुल मिलाकर युवा नागरिकों को आकार देते हैं — जिनमें से कई आगे चलकर विभिन्न क्षेत्रों में देश की सेवा करते हैं.
इसमें आगे कहा गया है, “किसी भी सरकार द्वारा बनाया गया कानून असंवैधानिक नहीं हो सकता, क्योंकि इसे पारित होने से पहले विधानसभा और कैबिनेट में चर्चा की जाती है. धार्मिक मदरसों को निशाना बनाने की कोशिश करके, भाजपा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह मुस्लिम विरोधी और अल्पसंख्यकों के खिलाफ है.”
6 नवंबर को सहारा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उत्तर प्रदेश के मदरसों के लिए मील का पत्थर है, जिसने इस कानून को संवैधानिक दर्जा दिया है और राज्य सरकारों को कानूनी ढांचे के तहत धार्मिक संस्थानों में सुधार करने का अधिकार दिया है. यह फैसला मदरसा छात्रों के लिए उम्मीद जगाता है और दिखाता है कि संवैधानिक सीमाओं के भीतर शैक्षिक सुधार किए जा सकते हैं.
इसके अलावा, इंकलाब के संपादकीय ने यूपी के मदरसों को महत्वपूर्ण राहत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की प्रशंसा की और कहा कि इस फैसले से उनके खिलाफ निराधार आरोपों पर विराम लगना चाहिए.
संपादकीय में यह भी कहा गया कि मदरसा प्रणाली देश का एक पुराना हिस्सा रही है और इसके ग्रेजुएट्स देश के लिए एक मूल्यवान संपत्ति हैं.
इसने एक ही कानून और इसकी व्याख्याओं पर सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसलों के बीच विसंगतियों को नोट किया.
इंकलाब ने कानूनी व्याख्याओं पर भी सवाल उठाए. इसने पूछा कि एक ही कानून पर दो फैसले इतने व्यापक रूप से कैसे भिन्न हो सकते हैं। इस मुद्दे की गहन जांच की जानी चाहिए.
संपादकीय में कहा गया कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट को इन अदालतों से स्पष्टीकरण मांगकर ऐसे विरोधाभासों को दूर करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए.
‘जम्मू-कश्मीर को कानून-व्यवस्था योजना की दरकार’
4 नवंबर को सियासत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों और प्रवासी श्रमिकों दोनों को निशाना बनाकर की जा रही हिंसा केंद्र सरकार के इस दावे का खंडन करती है कि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में आतंकवाद और हिंसा में कमी आई है.
इसमें यह भी कहा गया कि उम्मीद थी कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के गठन से कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार हो सकता है, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
संपादकीय में कहा गया है कि अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें कानून-व्यवस्था को बहाल करने और लोगों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार करें. अगर हिंसा जारी रहती है, तो इससे आर्थिक गतिविधियों, खासकर पर्यटन को नुकसान पहुंचेगा, जो क्षेत्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है.
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