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Sunday, 22 December, 2024
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आजादी मिलने की रात पंडित नेहरू ने देश का नियति से मिलन कराया

जब पंडित नेहरू ने भारत का तिरंगा फहराया तो बैंड राष्ट्रगान बजा रहा था और सलामी देने के लिए तोपें गरज रही थीं.

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14 अगस्त की रात को मैं भी लोगों के उस प्रवाह में शामिल हो गया जो संसद-भवन की तरफ जा रहा था. मेरे साथ मेरी बीवी का रिश्ते का भाई हरजी मलिक था. हम जैसे-तैसे रात के 11 बजे संसद-भवन पहुंच गए. ठसाठस भीड़ थी पर अनुशासित और उत्साह से भरी हुई. बीच-बीच में बड़े जोर से नारे फूट पड़ते थे, ‘महात्मा गांधी की जय’ और
‘इनकलाब जिन्दाबाद’. रात के बारह बजने से एक मिनट पहले भीड़ पर पूरी तरह सन्नाटा छा गया. ‘वंदे मातरम्’ के सुरों में गाती हुई लाउडस्पीकरों से सुचेता कृपलानी की आवाज सुनाई पड़ी. इसके ठीक बाद पंडित नेहरू ने अपना स्मरणीय भाषण दिया, ‘बहुत साल पहले हमने नियति से मुलाकात की थी…अब उस धरोहर को वापस लेने का वक्त आ गया है…’ वगैरह-वगैरह.

खुशवंत सिंह की किताब सच प्यार और थोड़ी सी शरारत.
खुशवंत सिंह की किताब सच प्यार और थोड़ी सी शरारत. फोटो – अमेजॉन

जैसे ही उनका भाषण समाप्त हुआ, भीड़ खुशी से पागल हो गई और चिल्ला-चिल्लाकर नारे लगाने लगे हम अजनबियों से गले मिले और स्वाधीनता पाने के उपलक्ष्य में एक-दूसरे को बधाई दी. हम लोग दो बजे तक ही घर लौट पाए. मैं सुबह जल्दी उठ गया ताकि लाल किले जाकर यूनियन जैक का उतरना और भारत तिरंगे झंडे का फहराया जाना देख सके. एक बार फिर रास्तों पर पैदल जानेवालों की भारी भीड़ थी. लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन छह घोड़े वाली वायसराय की बग्गी पर चढकर आए थे. बहुत-से अंग्रेज अफसरों को भीड़ अपने कन्धों पर उठाए लिये जा रही थी. एक रात ही में मानो वे अंग्रेज, जो बेहद नफरत के पात्र थे, अब भारतीयों के लिए सबसे अधिक प्रिय विदेशी हो गए थे.

मैं लाल किले की फसीलों से लगभग पचास गज दूर खड़ा था. जब लॉर्ड माउंटबैटन ने यूनियन जैक को उतारा तो मैंने आखिरी बिगुल की आवाज सुनी. जब पंडित नेहरू ने भारत का तिरंगा फहराया तो बैंड राष्ट्रगान बजा रहा था और सलामी देने के लिए तोपें गरज रही थीं. मैंने सब सुना, लेकिन देख बहुत कम पाया क्योंकि खुशी के आँसुओं ने
मेरी दृष्टि को धुंधला दिया था. मेरा दिल गर्व की भावना से भरा था. यह सब तो बहुत अच्छा था. लेकिन मैं अपनी आजीविका कमाने के लिए क्या करूँगा ? स्वाधीनता और विभाजन के साथ फैली आपसी नफरत का जो परिणाम हुआ था हम उसके कारण वापस लाहौर तो जा नहीं सकते थे.

(किताब -सच प्यार और थोड़ी सी शरारत / लेखक – खुशवंत सिंह / प्रकाशन – राजकमल प्रकाशन)

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