प्रेम न वह स्त्री है न वह पुरुष
वह उनके बीच की दूरी है कांपती हुई
जहां वे दोनों दौड़े-दौड़े आते हैं
और उसे तय नहीं कर पाते
स्त्री-पुरूष के प्रेम पर लिखी मंगलेश डबराल की ये कविता कई अर्थ समेटे हुए है. आपसी प्रेम की टकराहट हो या उस प्यार को तय न कर पाना. कई तरह से इन पंक्तियों की व्याख्या की जा सकती है.
फरवरी का महीना है. यानी कि बसंत है. फ़िज़ा में एक अलग महक, प्रकृति प्रेमियों का सबसे प्यारा महीना और प्रेमियों के इज़हार का असल वक़्त. काफी कुछ है इस महीने में करने को. प्रेम की मुकम्मल यात्रा का खूबसूरत पड़ाव है बसंत.
ज़िंदगी एक शब्द के इर्द-गिर्द ही घूमती है. उस एक शब्द को पाने और जीने के लिए हम क्या कुछ नहीं करते. मिल जाये तो उसे अच्छे से जीने के लिए खपा देते हैं और न मिले तो उसे पाने के लिए. ऐसा ही शब्द है- प्रेम.
समाज के ताने-बाने में हर कोई एक सवाल से ज़रूर गुज़रा होगा. वो सवाल है- क्या आपने किसी से प्यार किया है? सवाल ठीक ये न हो तो इसी भाव के साथ कुछ और पूछा होगा किसी ने.
लेकिन इस सरल से सवाल और आसान सा इसका जवाब …कितना कुछ कराता है हमसे. जो सरल होकर भी सरल नहीं होता. जवाब होते हुए भी उत्तर की तलाश में रहते हैं हम. आखिर क्यों? एक सरल से सवाल का उत्तर हम नहीं दे पाते?
इसके कारणों की तरफ देखें तो प्रेम के लिए हमारा समाज जितना असहज है…वही इसकी मूल वजह है. प्रेम जो इंसान को आजाद बनाता है, निडर बनाता है, एक खूबसूरत और बेहतर इंसान बनाता है…समाज की जकड़न ने उसे अपनी कैद में ले लिया है. निडरता को एक भयानक डर में बदल दिया है. प्रेम करना आसान तो है लेकिन उसके मुकम्मल होने का जो सफर है वो बेहद ही दुर्गम जान पड़ता है.
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फिल्मी इश्क़ से परे एक अलग दुनिया होती है जो हमें हकीकत के भयावह संसार से रूबरू कराती है. सिनेमाई दुनिया से विपरीत असल जिंदगी में हम प्रेम की चुनौतियों को अलग रूप में देखते है. जो वर्तमान समय में कोई भारी-भरकम शब्दों का रूप ले चुकी हैं. जैसे लव जिहाद, ऑनर किलिंग, एन्टी-रोमियो स्क्वाड….
प्रेम एकांत का सफ़र है. जहां प्रेमी और प्रेमिका एक दुनिया और उसके भीतर के संसार को बनाते चलते हैं. नए रास्ते बनाते चलते हैं बिना परवाह किये की इस सफ़र के दौरान उन्हें हासिल क्या होगा. प्रेम बे-हासिल यात्रा है. यात्रा ही बस एकमात्र हासिल है.
यात्रा के दौरान होने वाला संवाद बेहिचक कई स्मृतियां बनाती चलती हैं. एक दूसरे के हो जाने के कई कारणों पर बात होती है. पहली बार मिलने की बात होती है और कभी अलग न होने के दावे भी किए जाते हैं.
भारतीय समाज इस कदर अपनी पुरानी मान्यताओं को लेकर बैठा हुआ है कि वो यूरोपियन और अमेरिकी देशों जैसी जिंदगी तो अपने लिए पाना चाहता है लेकिन अपने समाज मे उनके जैसी प्रेम की संस्कृति का घोर विरोधी है. प्रेम के लिए असहजता इतनी ज्यादा है कि बात खून कर देने तक भी पहुंच जाती है. ऐसे कई उदाहरण पिछले ही कुछ सालों में हमारे आसपास ही मिल जाएंगे.
हमारा समाज प्रेम को सांस्कृतिक द्वंदों के बीच पाता है जहां उसकी प्रतिष्ठा व्यक्ति की अपनी पसंद से ऊपर हो उठती है. वो प्रेम तो करना चाहता है और ये भी चाहता है कि कोई उससे प्रेम करें लेकिन वो बनी बनाई समाज के संस्कारों के जकड़न में बंधा होता है. इसी जकड़न से कई ऐसी विशुद्धियां पैदा होती हैं जो काफी खतरनाक साबित होती जाती हैं.
फरवरी के महीने में कई खबरें आती हैं कि बजरंग दल के लोगों ने पार्क या सार्वजनिक जगहों पर बैठे प्रेमियों को मारा है. इस तरह की घटनाएं हर साल होती है. इन लोगों को आखिर बल कहां से मिलता है कि ये प्रेमी जोड़ो को मारने लगते हैं. बता दें कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद वहां एंटी-रोमियो स्कवाड बनाया गया. जिसे महिलाओं की सुरक्षा करने के लिए बनाया गया था. लेकिन ऐसी कई घटनाएं सामने आई कि इस समूह ने प्रेमियों पर हमले करने शुरू कर दिए. जिसके बाद इसकी खूब आलोचना भी की गई.
इस तरह की घटनाएं इस बात का सुबूत देती हैं कि हम खुद तो किसी से प्यार करने की चाहत रखते हैं लेकिन किसी के प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर पाते. ये घटनाएं बताती हैं कि समाज को अभी भी प्रगतिशीलता की तरफ बढ़ना है. जो पूरा होने का दंभ भरता है लेकिन है अधूरा.
असल में इन लोगों का तर्क ये होता है कि उन्हें प्यार से कोई दिक्कत नहीं है बल्कि जिस प्रकार इसे सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित किया जाता है, समस्या वहां है. लेकिन आधुनिक समाज में ऐसी बातों का कोई मतलब नहीं है. ये बातें पुरानी हो चली हैं. प्रेमी अपनी अपनी कहानियां खुद लिख रहे हैं.
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प्लेटो ने कहा है- ‘प्रेम के स्पर्श से हर व्यक्ति कवि बन जाता है‘. मेरा मानना है कि कवि से उनका अर्थ कल्पनाओं से होगा. प्रेम में हम कितनी ही कल्पनाएं करते हैं. एक दूसरे के लिए. यादों में बनती दुनिया को हकीकत में उतारने के लिए कितनी ही जद्दोजहद करते हैं.
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है- ‘प्रेम रूपी उपहार दिया नहीं जा सकता, यह स्वीकार किए जाने की प्रतीक्षा करता है.’
प्रेम में कभी कठोर हुआ ही नहीं जा सकता. इस शब्द में ही कोमलता है. एहसास में एक सूफ़ीपन. जो किसी से नफरत करना नहीं सिखा सकता, किसी जाति-धर्म की बेड़ियों में नहीं बांध सकता..ये तो बस आजाद है. जो हर प्रेमी को एक आजाद दुनिया बनाने की और ले जाता है.
31 जुलाई 2018 को लोकसभा में ऑनर किलिंग पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा गया कि राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2014 में 28, 2015 में 251 और 2016 में 77 मामले ऑनर किलिंग के सामने आए. इस तरह के मामले सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में हुए हैं.
1 फरवरी 2018 को दिल्ली के रघुवीर नगर में 23 वर्षीय अंकित सक्सेना को मार दिया गया था. उसकी प्रेमिका के घरवालों ने अंकित की हत्या कर दी थी. गला काट दिया था. अंकित हिन्दू था और उसकी प्रेमिका मुसलमान. ऐसी भी कई सच्चाई हैं हमारे आसपास. हमारे घर ही असल में प्रेम के दुश्मन हैं. धर्म-जाति की नींव इतनी मजबूत हो चली है कि झूठी प्रतिष्ठा के दंभ तले बात हत्या तक भी पहुंच जाती है.
ऑनर किलिंग झूठी प्रतिष्ठा पर खड़ी की गई एक मीनार हैं जहां से आदमी खुद को इतना ऊंचा समझने लगता है कि वो नीचे नहीं आना चाहता. झुकना नहीं चाहता. परिवार और प्रतिष्ठा के नाम पर प्रेमियों को मार दिया जाता है. धर्म और जाति का सहारा लेकर.
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भारत के प्रेमियों के हिस्से में प्रेम से ज्यादा नफरत है. इसके बावजूद भी वे प्रेम कर गुज़रते हैं.
अक्सर प्रेमियों की एक शिकायत रही है कि प्रेम करने का कोई स्पेस ही नहीं बचा है. जहां भी होते हैं वहां घूरे जाते हैं, भद्दी बातों का शिकार होते हैं. एक डर में होते हैं कि कोई आकर कुछ कहे न, मारने न लग जाये. जिस प्रेम को निडर होना चाहिए वो डर के बीच पल रहा है. जो बे-रोकटोक होना चाहिए उसपर कई तरह के पहरे हैं. शुरुआती पहरा तो घर से ही लगा दिया जाता है. बाकी बची-खुची समाज खुद तय कर लेता है. इसी द्वंद में न जाने कितना समय बीत जाता है. कितने ही प्रेमियों का प्रेम दम तोड़ देता है.