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Friday, 22 November, 2024
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‘72 हूरें’ पर विवाद-कितना जायज, टीजर आने के बाद से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी

‘72 हूरें’ का यह टीजर बताता है कि किस तरह से कट्टरपंथी नौजवानों को यह कह कर बरगलाते हैं कि जिहाद का रास्ता उन्हें सीधा जन्नत में लेकर जाएगा जहां 72 कुंवारी हूरें उनकी सेवा में होंगी.

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जैसी उम्मीद थी, ठीक वही हुआ. निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ‘72 हूरें’ का एक छोटा-सा टीजर आते ही विवादों से बाजार गर्मा गया. कुछ लोगों ने इस फिल्म के खिलाफ आवाजें उठानी शुरू कर दीं है कि यह फिल्म इस्लाम को बदनाम करने के लिए बनाई गई है. कुछ का मानना है कि इससे समाज में नफरतें बढ़ेंगी. कुछ लोग इसे 2022 में आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ और पिछले दिनों आई ‘द केरल स्टोरी’ की कतार में खड़ा करते हुए एक ‘प्रोपोगेंडा फिल्म’ का दर्जा दे रहे हैं और कह रहे हैं कि यह फिल्म भी इन दो फिल्मों की तरह एकतरफा बात करने जा रही है. ऐसा ही विवाद ‘अजमेर 92’ नाम की फिल्म को लेकर भी चल रहा है. कुछ मुस्लिम संगठनों ने इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की पुरजोर मांग की है. वैसे इन फिल्मों के पीछे-पीछे ‘गोधरा’ भी आ रही है और उस पर भी विवाद खड़े होने की पूरी आशंका है.

क्या कहती हैं ये फिल्में

‘72 हूरें’ का यह टीजर बताता है कि किस तरह से कट्टरपंथी नौजवानों को यह कह कर बरगलाते हैं कि जिहाद का रास्ता उन्हें सीधा जन्नत में लेकर जाएगा जहां 72 कुंवारी हूरें उनकी सेवा में होंगी. ‘अजमेर 92’ तो सीधे-सीधे राजस्थान के अजमेर में 90 के दशक में हुए उस कुख्यात ‘अजमेर सैक्स स्कैंडल’ की कहानी बयान करने की बात कर रही है जिसमें वहां की बहुत सारी बच्चियों को कुछ लोगों ने ब्लैकमेल करके उनका यौन-शोषण किया था. उनमें से बहुतों ने आत्महत्या और बहुत सारे परिवारों ने उस शहर से पलायन का रास्ता अपनाया था. बाद में जब मामला खुला तो आरोपियों में से अधिकांश एक खास राजनीतिक पार्टी और एक धर्म विशेष के लोग थे. उनमें से भी बहुत सारे अजमेर की दरगाह के खादिमों के परिवारों से ताल्लुक रखते थे. ‘गोधरा’ फिल्म का पूरा नाम ‘एक्सीडैंट और कांस्पिरेसी-गोधरा’ ही अपने-आप में पूरी बात कह रहा है. दरअसल गुजरात में 2002 में हुए दंगों के लिए अक्सर हिन्दू समुदाय को कटघरे में खड़ा किया जाता है लेकिन इन दंगों से ठीक पहले 27 फरवरी, 2022 को अयोध्या से लौट रहे कई कार-सेवक साबरमती एक्सप्रैस ट्रेन में गोधरा स्टेशन पर लगी आग में जल कर मर गए थे. पहले इसे हादसा बताया गया लेकिन बाद में सच सामने आया कि वह एक साजिश थी. जाहिर है कि यह फिल्म जब उस पर बात करेगी तो कुछ लोगों को वह हजम नहीं होगी.

‘72 हूरें’ का एक दृश्य | फोटो: Youtube

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हमेशा से हुए विवाद

अपने यहां फिल्मों को लेकर विवादों का उपजना कोई नया नहीं है. खासतौर से ऐसी फिल्में जो किसी एक राजनीतिक या धार्मिक पक्ष के पाले में या दूसरे के विरोध में खड़ी हुईं, उन्हें विवादों-प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. ‘किस्सा कुर्सी का’ का बहुचर्चित उदाहरण तो है ही जिसके निगेटिव तक संजय गांधी ने जलवा दिए थे क्योंकि उस फिल्म में उन पर, उनकी मां तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर और उनके कुछ सहयोगियों व उनकी नीतियों पर व्यंग्य किए गए थे. गुलजार की ‘आंधी’ को भी विवाद झेलने पड़े थे क्योंकि फिल्म की नायिका एक राजनेता थीं. 1973 में आई एम.एस सत्यु की मास्टरपीस ‘गर्म हवा’ को भी सेंसर बोर्ड ने लगभग आठ महीने बाद हरी झंडी दिखाई थी. डर था कि 1947 के भारत-पाक विभाजन की पृष्ठभूमि पर बुनी गई इसकी कहानी कहीं हिन्दू-मुस्लिमों के बीच तनातनी का कारण न बन जाए. 2013 में कमल हासन की फिल्म ‘विश्वरूपम’ के साथ अनोखा विवाद हुआ. सेंसर बोर्ड ने इसे पास कर दिया लेकिन तमिलनाडु सरकार ने इसे राज्य में रिलीज करने पर रोक लगा दी. तब बिफराए कमल ने कहा था, ‘‘फिल्म की कहानी अफगानिस्तान पर आधारित है. मैं हैरान हूं कि भारतीय मुस्लिमों को किस चीज ने आहत किया? मुझे इस बात से आश्चर्य होता है कि सिर्फ एक फिल्म पूरे देश की एकता को कैसे विखंडित कर सकती है?’

विवादों की ताज़ा झड़ी

पिछले साल ‘द कश्मीर फाइल्स’ के आने के बाद विवादों की ताजा झड़ी लगी है. उस फिल्म ने 90 के दशक की शुरुआत में कश्मीर घाटी में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों को दिखाया था कि किस तरह से मुस्लिम कट्टरपंथियों और आतंकियों के दबावों के सामने कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन करना पड़ा था. जाहिर है कि जब दबे हुए सच सामने आए तो उन पर कुछ लोगों को दिक्कत हुई और इस फिल्म को प्रोपेगेंडा, एकतरफा, नफरती आदि साबित करने की कोशिशें भी हुईं. फिर इस साल आई ‘द केरल स्टोरी’ से भी कुछ लोगों को तकलीफ हुई जो यह दिखा रही थी कि किस तरह से केरल में गैर-मुस्लिम लड़कियों को बरगलाने का काम किया जा रहा है. इस फिल्म के विरोधियों का जब फिल्म में दिखाई गई बातों पर बस नहीं चला तो उन्होंने इसे तीन बनाम 32 हजार के आंकड़ों में उलझाने की भी कोशिशें कीं लेकिन इस फिल्म ने भी ‘द कश्मीर फाइल्स’ की राह पर चलते हुए कामयाबी के कीर्तिमान बनाए. अब जिस ‘72 हूरें’ को लेकर विवाद गर्म है वह 2019 में गोआ में हुए ‘भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह’ के पैनोरमा खंड में दिखाई गई थी जहां इसे काफी सराहा गया था. इस फिल्म के लिए निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है. संजय कहते हैं, ‘‘इस फिल्म को किसी धर्म के नहीं बल्कि आतंकवाद के नजरिए से देखने की जरूरत है कि किस तरह से कई बाद कुछ नौजवान भटक कर ऐसे रास्ते पर चल पड़ते हैं, जो उन्हें कहीं लेकर नहीं जाता.’’

गौरतलब यह भी है कि इस टीजर के आने के बाद पड़ोसी पाकिस्तान में भी अच्छी-खासी बहस छिड़ी हुई है. बहरहाल, फिल्म सचमुच क्या कहना चाहती है और उसे किस तरह से कहती है, यह सच तो 7 जुलाई को दर्शकों के सामने आ ही जाएगा.

(दीपक दुआ 1993 से फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं. विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं.)

(संपादन: ऋषभ राज)


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