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Saturday, 16 November, 2024
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क्लब सिंगर उषा सामी अय्यर और फिर उत्थुप..आसान नहीं था ये सफर

उषा की जिंदगी से जुड़ी कई अनकही अनसुनी कहानी इस किताब में पढ़ने को मिलेगी..साथ ही जान पाएंगे कि कैसे जिंदगी करवट लेती रही उषा और मजबूत होती रहीं.

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नई दिल्ली: कांजीवरम की साड़ी, लंबे बालों में लगा गजरा, भर-भर हाथ चूड़ियां, कोलकाता की ‘क’ लिखी अठन्नी आकार की बिंदी.. मुस्कुराता चेहरा और बिंदास आवाज़.. रंभा हो…रंभा हो.. यह पहचान काफी है..अगर आपसे पूछें कि यह किसके बारे में कहा जा रहा है तो सभी एक साथ बोलेंगे उषा उत्थुप..

आपको किसी भारतीय महिला के बारे में ये बता कर पूछा जाए कि बताओ कि यह सारी चीजें अगर जोड़ें तो आपके जेहन में किसका नाम आता है तो क्या बूढ़े और क्या जवान, हर किसी की जुबां पर बस एक ही नाम आएगा और वो है क्वीन ऑफ पॉप उषा उत्थुप.

जिसकी जीवन की गहराइयों में आप झांकेंगे तो आपको पता चलेगा की देश दुनिया में म्यूजिक के दीवानों के दिलों में गहरे तक छाने वाली (महिलाओं के दिलों में गहरे तक उतरने वाली) इस पॉप गायिका ने यह बताने की बार बार कोशिश की है कि आधुनिक से आधुनिक विचार रखें लेकिन अपनी मौलिकता व परम्परा को न छोड़ें. जिसने यह भी बताने की कोशिश की है कि भौतिक आधुनिकता से ज्यादा महत्वपूर्ण है मानसिक आधुनिकता. वैसे सेलीब्रिटीज़ के बारे में यह पढ़ सुन कर बहुत आश्चर्य होता है कि वह खाना बनाने से लेकर सिलाई कढ़ाई और घर की सफाई तक खुद करते हैं.और उषा इन सबमें पारंगत हैं.

उषा हमेशा खुशदिल नजर आती हैं लेकिन उन्होंने भी अपनी जिंदगी में उतने ही दुख दर्द झेले हैं जितने आपने और हमने झेले हैं. लेकिन मदमस्त आवाज़ से देश-दुनिया को झुमाने वाली इस वीर बाला ने अपने दिल के दर्द को कभी अपनी आवाज़ और चेहरे पर छलकने नहीं दिया. अपने दर्द को दिल के किसी कोने में दबा वह हर शाम-रात लोगों को अपनी आवाज़ से मदहोश करती रहीं..

सफर

मुंबई पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी के घर में जन्मीं उषा पांचवे नंबर की संतान थीं, और दुलारी संतान थीं. वैसे तो उषा की परवरिष बिलकुल बेटों की तरह ही हुई थी. पतंग उड़ाने से लेकर, घर के बाहर क्रिकेट, गिली डंडा खेलने से लेकर चोर पुलिस खेलने में उनका मन खूब रमता था. लेकिन गुड़िया गुड्डे की शादी से लेकर सिलाई बिनाई और कढ़ाई में भी पारंगत है. वैसे जब भी किसी सेलीब्रिटी की बात होती है तो अकसर यह लगता है कि पैसे वाले हैं इन्हें कुछ सोचना नहीं पड़ता होगा लेकिन सच इसके बिलकुल विपरीत है.

दुख-दर्द पीड़ा सबकुछ इन्हें भी उतना ही तड़पाता है जितना किसी आम इंसान को उषा उत्थुप 70 के दशक में जब ऊंचाइयों को छू रहीं थीं तब उनकी जिंदगी में उतनी ही तेज़ी से भूचाल आ रहा था. तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई उषा सामी अचानक क्रिश्चियन कैसे बन गई.

जबकि उनकी शादी उनकी बड़ी बहन इंद्रू के देवर रामू अय्यर से हुई थी..वह वर्षों तक उषा अय्यर के नाम से जानी जाती रहीं फिर अचानक उत्थुप कैसे हो गईं.ऐसे कई सवालों के राज खोलती है विकास कुमार झा की उषा उत्थुप पर लिखी किताब उल्लास की नाव. उनके परिवार, दोस्त, पड़ोसी से लेकर हर किसी के बारे में बताती है जो उनकी जिंदगी में आए..क्या देशी विदेशी सितारे रहे हो या फिर देश के बड़े बड़े राजनीति के दिग्गज उषा हर किसी से उतनी ही उत्सुकता से मिलती हैं जैसे कोई बच्चा अपने सपने से मिलता है.

उषा की जिंदगी से जुड़ी कई अनकही अनसुनी कहानी इस किताब में पढ़ने को मिलेगी..साथ ही जान पाएंगे कि कैसे जिंदगी करवट लेती रही उषा और मजबूत होती रहीं. ऐसा नहीं था कि वह चूंकि सेलीब्रिटी थीं, अच्छा कमा रहीं थीं तो उनपर समाज और परिवार का कोई दवाब नहीं था, या फिर वो पारिवारिक नहीं थीं.उन्हें समाज की चिंता नहीं थी..बड़े फैसले लेते हुए उनके हाथ-पैर नहीं कांपते थे.लेकिन उषा डिगी नहीं, जिंदगी में हर फैसला उन्होंने सोच-समझ कर लिया और इसमें परिवार वालों की रजामंदी भी शामिल रही.

जिंदगी में उतार-चढ़ाव आए लेकिन हार नहीं मानीं

पद्मश्री उषा उत्थुप के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते रहे हैं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी..चाहें वो रामू अय्यर से तलाक की बात हो या भाई की मौत य़ा फिर बात करें बेटे की किडनी फेल होने की.. कोलकाता के मंत्री के द्वारा सरकारी ऑडिटोरियम में लगाया गया प्रतिबंध हो या फिर एक रात अचानक आधे शरीर में पक्षाघात..बिंदास बाला ने जिंदगी में आई हर मुसीबत को सिर्फ जिया ही नहीं बल्कि अपनी मेहनत से हर परेशानी को खुशियों में बदला..जब जानी उत्थुप उषा की जिंदगी में आए तब तक उन्हें नहीं पता कि उनकी जिंदगी पूरी 360 डिग्री घूमने वाली है. घूमी भी.

उत्थुप ने जब उषा से प्यार करने की बात को स्वीकारा तब उन दोनों के बीच बामुशिक्ल ही बात हुई थी..यही नहीं उत्थुप ने एक लंच मीटिंग में उषा से प्यार करने की बात उनके पति रामू अय्यर से की थी.और फिर बचपन की दोस्ती और पांच साल का प्यार खत्म हुआ और उषा सामी अय्यर–उत्थुप बन गईं.

ट्रिंकास क्लब में जब उनका बायां पैर सुन्न हो गया तो उन्होंने हार नहीं मानी क्लीपर के साथ घंटों खड़ी होकर अपने श्रोताओं को वैसे ही गाना सुनातीं जैसे पहले सुनाया करती थीं..न आवाज़ में फर्क आया और न ही उनके प्रशंसकों को कभी यह पता चल पाया कि उन्हें कुछ ऐसा हुआ भी है.

जब सायरन बज उठा

पहले बार करें कि सत्ता के यादगार उन मुखड़ों की जब इस बिंदास बाला ने पश्चिम बंगाल के वामपंथी मंत्री जतिन चक्रवर्ती से टकराईं..और इस टकराहट में कोर्ट से जीतने के बाद मंत्री जी के तीखेपन को उन्होंने एक प्यारे रिश्ते में तब्दील कर दिया. हुआं यूं कि उषा एक पॉप सिंगर थीं और वह वही गाती भी थीं तब ज्योति बासू सरकार में मंत्री रहे चक्रवर्ती ने किसी भी सरकारी ऑडिटोरियम में उषा की गायकी पर प्रतिबंध लगा दिया..उषा चुप नहीं बैठीं वह यह मामला कोर्ट में ले गईं और जीत कर ही दम लिया.

उषा एक बार विदेश कार्यक्रम के लिए गईं.उन्होंने तांत की साड़ी पहनी थी..सुरक्षा जांच के दौरान अधिकारियों ने उनके कान के बूंदे, गले का हार, चूंड़ियां सहित हर मेटल की चीजें उतरवा लीं लेकिन सायरन बजता ही रहा.पता चला उषा से तांत की साड़ी पहन रखी थी उसी दौरान शशि थरूर भी वहां थे.

मोची से लेकर टेलर तक

बचपन में अपनी जरूरतों के लिए पुलिस अधिकारी अप्पा का जूता चमकाने वाली उषा ने अपने साथ कइयों की जिंदगी बदली. जिसे मोची से वह अपने स्पेशल जूते डिजाइन कराती थीं उसे न केवल अपने जान पहचान वालों से भी काम दिलवाया बल्कि कोलकाता के मोची समाज के उद्धार के लिए राष्ट्रपति तक को खत लिख डाला..ये तो बानगी भर है विकास कुमार झा द्वारा लिखित भारतीय पॉप संगीत की महारानी की बायोग्राफी में ऐसे कई मौकों का जिक्र किया है. लेकिन इस किताब को और अच्छा लिखा जा सकता था..राजकमल प्रकाशन से छपी 260 पन्नों वाली उल्लास की नाव में शुरुआती 60 पन्ने लिखा जाना समझ नहीं आता है. उषा की जिंदगी उनके अपने परिवार वालों से प्यार-दुलार से लेकर कई बातों को बार-बार लिखा गया है लेकिन उषा ने संगीत की कोई पारंपरिक शिक्षा दीक्षा नहीं ली यह बात आपको 200 पन्ने के बाद पता चलती है.. वैसे तो उनकी जिंदगी के हर पहलू को बखूबी बताया है लेकिन इस किताब को और रोचक बना सकते थे..

(उल्लास की नाव किताब को राजकमल प्रकाशन ने छापा है. विकास कुमार झा इस किताब के लेखक हैं.)

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