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Friday, 22 November, 2024
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चीन है दुनिया के लिए चुनौती, क्या उसके खिलाफ लामबंद हो रहीं बड़ी ताकतें

ऐसा नहीं है कि चीन की धौंस से बाकी दुनिया डर गई है, लेकिन चीन को काबू में करने के लिए अकेले किसी बड़े ताकतवर देश के बूते की बात नहीं रह गई है.

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चीन के ऊहान शहर से दुनिया भर में कोरोना महामारी फैलने के बाद दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के अलावा ताइवान, हांगकांग, दक्षिण चीन सागर और भारत से लगे पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में चीन ने जो दादागीरी दिखाई, उससे पूरा विश्व सहम गया है. जैसे किसी मुहल्ले में किसी ताकतवर की मनमानी रोकने के लिए मोहल्ले के अन्य प्रभावशाली लोगों को एकजुट होकर उसका मुकाबला करना होता है, उसी तरह चीन के खिलाफ भी दुनिया के बड़े देशों को इकट्ठा होना पड़ रहा है.

ऐसा नहीं है कि चीन की धौंस से बाकी दुनिया डर गई है, लेकिन चीन को काबू में करने के लिए अकेले किसी बड़े ताकतवर देश के बूते की बात नहीं रह गई है. चीन के विस्तारवादी मंसूबों को काबू में करने के लिए उस पर चौतरफा वार करना होगा.

कोविड-19 महामारी चीन के ऊहान शहर से 2019 के अंत से फैलनी शुरू हुई और पूरी दुनिया को चपेट में लेने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को जिम्मेदार ठहराने की हिम्मत दिखाई; लेकिन जैसे किसी एक आतंकवादी का मुकाबला करने के लिए बीसियों सुरक्षा बल तैनात करने होते हैं, उसी तरह चीन का मुकाबला करने के लिए भी दुनिया में जनतांत्रिक ताकतों को कई मंचों और संगठनों के जरिए एकजुट होकर चीन के कारनामों और मंसूबों पर चोट करनी होगी.

अधिनायकवादी चीन की विस्तारवादी नीतियों और कदमों को आगे बढ़ने से रोकने के इरादे से ही जनतांत्रिक देशों को विभिन्न संगठनों के जरिए सक्रिय होना पड़ रहा है. चाहे वह क्वाड, यानी चतुर्पक्षीय गुट हो या फिर ‘फाइव आईज’, यानी पाँच जनतांत्रिक देशों का संगठन, जो दुनिया में जनतांत्रिक मान्यताओं पर नजर रखने और इसके संरक्षण के लिए बना है, जिसे ‘एंग्लो-अमेरिकन एलायंस’ भी कहते हैं (इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं), को सक्रिय किया गया है.

6 अक्तूबर, 2020 को तोक्यो में जब क्वाड के विदेश मंत्रियों की तीसरी बैठक हुई थी, तब ‘फाइव आईज’, यानी इसके पाँच साझेदार देशों की भी बैठक हुई थी. इस बैठक में पहली बार भारत को भी आमंत्रित किया गया, जिसमें विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत की अगुवाई की. ‘फाइव आइज’ का उद्देश्य आपस में खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान कर अपने सामूहिक हितों पर नजर रखना और रक्षा करना है. तोक्यो में क्वाड की बैठक का लाभ उठाकर ‘फाइव आईज’ की भी बैठक करना और उसमें भारत को शामिल करना भारत के लिए विशेष अहमियत रखता है.

क्वाड के विदेश मंत्रियों की तीसरी बैठक 18 फरवरी, 2021 को हुई, तब भी भारत के संदर्भ में चीन की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि प्रादेशिक अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए. चारों देश अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए क्वाड के दायरे का विस्तार करने पर भी विचार कर रहे हैं; हालाँकि क्वाड को मौजूदा स्वरूप में ही रखने का विचार है, लेकिन इससे समान विचारवाले देशों को जोड़ने के लिए भी पहल की गई है और ‘क्वाड प्लस डायलाॅग’ की शुरुआत की गई है. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की पहल पर आयोजित क्वाड के विदेश मंत्रियों की दूसरी वार्त्ता में ब्राजील, इजराइल, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को भी सलाह-मशविरा के लिए बुलाया गया था.


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लीग ऑफ डेमोक्रेसीज

2021 जनवरी में अमेरिका में डेमोक्रेट नेता जो बाइडन के सत्तारूढ़ होने के बाद चीन के खिलाफ एक और गुट ‘लीग ऑफ डेमोक्रेसीज’ का उद्भव भी हो सकता है. इस लीग के जरिए साझा जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा, व्यापार, कराधान, पर्यावरण बदलाव और डिजिटल गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग को गहरा किया जा सकता है. ब्रिटेन भी दस जनतांत्रिक देशों का गठजोड़ या समूह बनाने का प्रस्ताव कर चुका है, जिसमें भारत को भी शामिल किया गया है.

इस जनतांत्रिक गुट का इरादा दूरसंचार के 5-जी नेटवर्क में चीन की दादागीरी को रोकने के लिए और चीन पर निर्भरता कम करने के लिए सामूहिक योजना पर विचार करना है. इसके अलावा फ्रांस और कनाडा ने ‘ग्लोबल पार्टनरशिप फाॅर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ का गठन किया है, जिसमें भारत को आमंत्रित किया गया है. इसमें 15 देश शामिल हो चुके हैं.

इस तरह कोविड के बाद की दुनिया एक पूर्णतः नए सामरिक समीकरण में दिखनेवाली है. चीन की महत्त्वाकांक्षाओं पर लगाम कसने के लिए कई तरह के सामरिक और जनतांत्रिक गठजोड़ उभरने की पहल हो चुकी है. चीन ने जिस तरह विश्व व्यापार व्यवस्था के मौजूदा स्वरूप को अपने लाभ के लिए तोड़-मरोड़कर इस्तेमाल किया है, उसमें भी बदलाव और सुधार लाने के बारे में दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकतें विचार कर रही हैं.

वास्तव में चीन ने विश्व अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण का जिस तरह दुरुपयोग कर अपनी अर्थव्यवस्था चमकाई है और छोटे से लेकर बड़े देशों तक के निर्माण उद्योग को अस्त-व्यस्त कर तबाह किया है, उससे विश्व आर्थिक रिश्तों को नए सिरे से ढालने की बातें होने लगी हैं. इसी के मद्देनजर दुनिया के सात ताकतवर आर्थिक देशों के संगठन ‘जी-7’ से भारत को जोड़ने की पहल भारत के लिए अहमियत रखती है.

मालाबारः सैनिक गठजोड़?

चीन के खिलाफ गहराती लामबंदी की इसी पृष्ठभूमि में बंगाल की खाड़ी में मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित कर इसे क्वाड के सैनिक गठजोड़ के तौर पर विकसित करने की संभावनाएँ देखी जा रही हैं. हिंद प्रशांत की भू-राजनीति में यह एक नया आयाम जुड़ गया है. जिस तरह क्वाड के अस्तित्व को मजबूत करने के लिए इसके साझेदार चारों देशों की संस्थागत प्रतिबद्धता दिखाई देती है, उससे लगता है कि चीन विरोधी एकजुटता राजनयिक मंचों और संगठनों के अलावा सैनिक स्तर पर भी मजबूत करने की नई नींव रखी गई है.

चीन के साथ चल रही सैन्य तनातनी के बीच बंगाल की खाड़ी में भारत की मेजबानी में नवंबर 2020 में दो चरणों में आयोजित चार देशों के साझा नौसैनिक अभ्यास ‘मालाबार’ ने सामरिक हलकों का ध्यान खींचा. यह दुनिया में एक नए सामरिक समीकरण और सैन्य गठजोड़ का बीजारोपण है या महज दिखावटी शक्ति प्रदर्शक आयोजन और मेल-जोल है, यह आनेवाला वक्त बताएगा.

यह काफी कुछ चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता पर निर्भर करेगा, लेकिन यह भी देखना होगा कि चीन अपनी आर्थिक ताकत के बल पर इस गठजोड़ के उभरने के पहले ही इसमें दरार पैदा करने में कामयाब न हो जाए! खासकर ऑस्ट्रेलिया और जापान की अर्थव्यवस्थाओं की नकेल चीन के हाथों में है, जिसे चीन जब भी कसकर खींचने लगेगा, दोनों देश अपने पर लगाम कस सकते हैं, लेकिन जिस तरह अप्रैल 2021 के मध्य में ऑस्ट्रेलिया ने चीन के साथ बेल्ट ऐंड रोड के तहत जिन दो बड़े प्रोजेक्टों का समझौता रद्द कर दिया है, उससे लगता है कि चीन के खिलाफ एकजुटता ठोस आकार लेगी.

पिछली बार 2007 में जब बंगाल की खाड़ी में ही सिंगापुर के अलावा उक्त चार देशों को साथ लेकर पाँच देशों का साझा बहुपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यास हुआ था, तब चीन ने ऑस्ट्रेलिया को ऐसी घुट्टी पिलाई थी कि ऑस्ट्रेलिया ने मालाबार से अपने हाथ खींच लिये, लेकिन करीब डेढ़ दशक बाद ऑस्ट्रेलिया ने चीनी धौंस का पलटकर जवाब दिया है. क्वाड में फूट डालने के लिए, हालाँकि चीन ने जापान पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं, लेकिन जापान चीन की चाल बेहतर समझता है.

क्वाड का भविष्य और इसकी एकजुटता निश्चय ही काफी कुछ अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति पर भी निर्भर करती है. डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडन सत्ता सँभालने के बाद चीन के साथ सख्ती से पेश आते दिख रहे हैं, लेकिन देखना होगा कि वह चीन विरोध को किस हद तक आगे ले जाते हैं? क्या जो बाइडन चीन विरोध को अमेरिकी हितों के संरक्षण तक ही सीमित रखेंगे या फिर भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान की सुरक्षा और आर्थिक चिंताओं के अनुरूप समग्रता में अपनी सामरिक नीति की दिशा तय करेंगे?

अमेरिका ने जिस तरह अप्रैल 2021 में भारत के विशेष समुद्री आर्थिक क्षेत्र में अपने युद्धपोत बिना अनुमति भेजने का ऐलान कर भारत को उसकी हैसियत बताने की कोशिश की है, उससे भारतीय सुरक्षा कर्णधारों को सावधान होना चाहिए कि अमेरिका क्वाड जैसे बहुपक्षीय सुरक्षा मंच का इस्तेमाल केवल अपने राष्ट्रीय हितों का संवर्धन करने के लिए भारत के कंधे पर हाथ रखकर करने की कोशिश न करे. भारतीय सुरक्षा कर्णधारों को यह भी देखना होगा कि अमेरिका ऐसी किसी साझेदारी में अपने हितों को ही सर्वोपरि रखकर भारत सहित बाकी साझेदार देशों का इस्तेमाल करने की कोशिश तो नहीं कर रहा है?

नए सामरिक समीकरण की नींव

मालाबार के चारों साझेदार देशों के विदेश मंत्री चतुर्पक्षीय गुट या क्वाड के तहत 6 अक्तूबर, 2020 को तोक्यो में इकट्ठा हुए थे, जिसके बाद चारों देशों की नौसेनाओं का मालाबार के झंडे तले साथ होने का फैसला कोविड बाद की दुनिया में नए सैन्य समीकरण की ओर बढ़ता-सा लगता है. वास्तव में हिंद महासागर में चार देशों का यह सैन्य मिलन एक नए सैन्य गठजोड़ की संभावनाएँ पैदा करता है, लेकिन इसके भागीदार देश ऐसा होने से इनकार करते हैं.

फिर भी मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास के 3 नवंबर, 2020 से शुरू होने के साथ ही खासकर चीन के सामरिक हलकों में इसे लेकर तीखी टिप्पणियाँ की गईं, जो चीनी हलकों में इसे लेकर पैदा चिंता की सूचक है. चीन को समझ में आ रहा है कि उसकी बढ़ती सैन्य विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ चारों देश कमर कसकर एकजुट हो रहे हैं. इसलिए चीनी विदेश मंत्रालय ने ‘मालाबार’ के शुरू होने पर यह उम्मीद जाहिर की कि ‘मालाबार अभ्यास’ क्षेत्रीय शांति के अनुकूल होगा, न कि इसके खिलाफ. चीन ने यह कहकर अप्रत्यक्ष चेतावनी दी कि चारों देश चीन को सागरीय चुनौती देकर शांति भंग न करें.

चीन ने हाल में जिस तरह दक्षिण चीन सागर में अपनी समर नीति को धारदार बनाया है, उसकी वजह से न केवल अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत परेशान हैं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे देश भी चिंतित हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक चीन से जुड़ी है, लेकिन वियतनाम, सिंगापुर को छोड़कर दक्षिण-पूर्व एशिया के देश चीन के खिलाफ खुलकर खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है, हालाँकि इंडोनेशिया, फिलीपींस के इस गठजोड़ का साथी बनने की संभावना है.

(‘भारत-चीन रिश्ते, ड्रैगन ने हाथी को क्यों डसा’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब हार्ड कवर में ₹500 की है.)


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