छपाक को सिर्फ एक दिल दहला देने वाली फिल्म कहना काफी नहीं होगा. ये फिल्म आपको भावुक करते हुए असहज कर देती है. एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के साथ हुई सच्ची घटना पर आधारित दीपिका पादुकोण अभिनीत ये फिल्म दिखाती है कि मेघना गुलज़ार क्यों इस समय की एक महत्वपूर्ण फिल्मकार है.
खास बात ये है कि फिल्म बिना किसी रोने धोने के भी दर्शकों को बहुत भावुक कर देती है. मेघना बड़ी काबिलियत के साथ फिल्म का केंद्र बिंदु आरोपी से दूर ले जाती हैं. जितना ज़रूरी है, सिर्फ उतना बताया जाता है. ये कहानी इस पर भी फोकस नहीं करती कि आरोपी बब्बू उर्फ़ बशीर खान ने मालती (दीपिका) पर एसिड क्यों फेंका था. मेघना जानती हैं, और दर्शको को भी याद दिलाना चाहती हैं कि ये मालती की कहानी है जो अपने जले कान के कारण अब झुमके नहीं पहन सकती है. और जो एसिड की खुलेआम बिक्री पर रोक लगवाने के लिए संघर्ष कर रही है.
यह भी पढ़ें: दीपिका पादुकोण को उठाना पड़ा जेएनयू जाने का खामियाज़ा, स्किल इंडिया ने ‘ड्रॉप’ किया प्रमोशनल वीडियो
फिल्म के ज़रिये हम मालती की ज़िन्दगी के अलग-अलग पहलुओं से रूबरू होते हैं. ये कहानी एक सिर्फ एक सफलता की गाथा नहीं गाती है. यहां उतार चढ़ाव और संघर्ष भी एक अहम् हिस्सा है जो इसे बाकी बायोपिक फिल्मों से अलग करता है. एसिड विक्टिम्स को बस बेचारगी की श्रेणी में खड़ा कर देने से अलग ये फिल्म बहुत कुछ करती है. फिर चाहे वो मालती का नौकरी ढूंढने के लिए भटकना हो या एक आम लड़की की तरह पार्टी में जाने की इच्छा.
इस फिल्म के केंद्र में एक बड़ा सवाल है- भला क्यों लड़कियों को ‘उनकी औकात’ दिखाई जाती है अगर वो समाज के ढांचों में ढलने से इंकार कर दें? एसिड फेंकने वाले के लिए भी कोई अन्य कम नुकसानदायक गर्म पदार्थ फेंकने वाले के बराबर सज़ा क्यों? कैसे मर्दों में औरतों के चेहरे मिटा देने की इच्छा प्रबल होती है- ये भी बड़ी संवेदनशील गंभीरता से दिखाया है. एक बार जब मालती के चेहरे पर एसिड फेकने का दृश्य देखेंगे, छपाक शब्द की गूंज देर तक कानों में गूंजती रहेगी.
दीपिका आसानी से मालती के किरदार में ढल जाती हैं. वहीं विक्रांत मैसी ने भी पत्रकार से एक्टिविस्ट बने अमोल के किरदार में सटीक गुस्से और संघर्ष के भाव दिखाए हैं. शुक्र है, अमोल के किरदार में वो ‘करता -धर्ता ‘ वाला भाव नहीं है.
अन्य किरदारों में से मालती की वकील का किरदार भी महत्त्वपूर्ण है जो मुश्किल वक़्त में उसे हौसला देती है.
यह भी पढ़ें: सोशल मीडिया पर दीपिका पादुकोण के जेएनयू जाने को लेकर छिड़ा विवाद, जावड़ेकर बोले- यह लोकतंत्र है
नितिन बेद की एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी. भूतकाल और भविष्य के बीच कहानी थोड़ी उलझी नजर आती है. पर शंकर एहसान लोय का संगीत बेहतरीन है और कहानी में फिट बैठता है. प्रोस्थेटिक मेकअप भी असली लगता है.
छपाक उस मजबूत महिला की कहानी है जिसे जीवन में जो वो चाहती है वो भले ही न मिलो हो, पर वो उस पाने के इर्द गिर्द एक रास्ता ज़रूर ढूंढ लेती है. ये फिल्म आपकी अंतरात्मा को झकझोर कर रख देगी. इसीलिए इसे देखा जाना ज़रूरी है.
(इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)