scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमसमाज-संस्कृतिहम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहां कल वहां चले

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहां कल वहां चले

Text Size:

चित्रलेखा मानव जीवन पर आधारित था. जिसमें पाप और पुण्य पर गंभीर किस्म की बहस है जो न सिर्फ सोचने पर मजबूर करती हैं.

‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है. वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है… हम न पाप करते हैं, न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है.’ यह पंक्तियां हिंदी के सर्वाधिक चर्चित उपन्यासों में एक चित्रलेखा की हैं. यह उपन्यास इतिहास पर आधारित एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखने वाले भगवती चरण वर्मा का है जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपने किस्म का कमाल किया है.

भगवती चरण वर्मा हिंदी के ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे जिन्होंने उपन्यास लिखे, कहानियां लिखीं, कविताएं लिखीं, संस्मरण लिखे, नाटक लिखे, आलोचना लिखी, बाल साहित्य लिखा, काव्य नाटक लिखे. किसी एक व्यक्ति में इतना विस्तार विरले ही देखने को मिलता है.

भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले वर्मा की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं. लेकिन साहित्य जगत में आज के दौर में लगभग बिसर से गए हैं. उनका जन्म एक कायस्थ परिवार में 30 अगस्त, 1903 को शफीपुर गांव, जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने कहानी ,कविता, नाटक निबंध लिखकर राष्ट्रीय एव अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख़्याति प्राप्त की.

प्रारंभिक जीवन

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए, एलएलबी की परीक्षा पास की. भगवती चरण वर्मा ने शिक्षा समाप्त करने के बाद वकालत की लेकिन बाद में फ़िल्म, आकाशवाणी और सम्पादन कार्य से जुड़ गए.

प्रारम्भ में कविता-लेखन फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात भगवती बाबू 1933 के करीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे. 1936 में फिल्म कारपोरेशन कलकत्ता में कार्य किया. उसके बाद विचार नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन संपादन किया. इसके बाद बम्बई में फिल्म कथा लेखन तथा दैनिक नवजीवन का संपादन. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों में कार्य किया. 1956 से स्वतंत्र लेखन करना शुरू कर दिया था. 1961 ईo में उनको ‘भूले बिसरे चित्र’ महाकाव्य के लिए ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला.

उन्हें 1969 में साहित्यिक वाचस्पिति की उपाधि से नवाजा गया.

साथ ही, 1971 में भारत के सर्वोच्च सम्मान में से एक ‘पद्म-भूषण’ भी उनको मिला और 1978 में वे राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए. उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर दो बार फिल्म निर्माण और भूले बिसरे चित्र पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

चित्रलेखा मानव जीवन पर आधारित था. जिसमें पाप और पुण्य पर गंभीर किस्म की बहस है जो न सिर्फ सोचने पर मजबूर करती हैं बल्कि पाठकों को चमत्कृत भी करती है. भगवती चरण वर्मा का निधन 5 अक्टूबर 1981 को हुआ था.

भगवती चरण वर्मा के लेखन को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रभात रंजन ने से दिप्रिंट से कहा, ‘भगवतीचरण वर्मा बहुत लोकप्रिय भी थे और बहुत गंभीर भी थे.उस तरह के लेखन को बहुत कम लोग फॉलो करते हैं. उनके उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर दो बार फिल्म बनी, दोनों फिल्में हिट रहीं. पहली बार केदार शर्मा ने बनायी थी. वे बॉम्बे टॉकीज में लिखा करते थे और बॉम्बे टॉकीज ने बहुत से बड़े-बड़े कलाकारों को पैदा किया है. फिल्मों में भी बहुत अच्छा लिखा. पत्रकारिता भी की. राज्यसभा के लिए नामित होने वाले अंतिम हिंदी लेखक यही थे. उसके बाद हिंदी का कोई लेखक नामित नहीं किया गया.’

साहित्य की दुनिया की एक खास बात यह है कि यहां पर व्यवसायिकता को हेय दृष्टि से देखा जाता है. इसी तरह अगर कोई लेखक फिल्मों में चला जाता है उसको भी हेय दृष्टि से देखा जाता है. भगवती चरण वर्मा भी उन लेखकों में हैं जिन्हें फिल्मों के कारण साहित्य में वैसा सम्मानजनक स्थान नहीं मिला.

प्रभात रंजन कहते हैं, ‘फिल्मों में चले जाने के बाद उनको साहित्य जगत से बाहर दिया गया. हालांकि इनसब चीजों के बावजूद वो बहुत चर्चित थे. उनके चित्रलेखा जैसे उपन्यास की प्रासंगिकता हमेशा रहेगी क्योंकि वह पाप और पुण्य जैसे दो प्रश्न को लेकर लिखा गया है जिससे समाज कभी मुक्त नहीं हो पायेगा और इन प्रश्नों से समाज रहेगा तो ये सवाल भी बने रहेंगे.’

उनकी कविताएं भी काफी लोकप्रिय हुईं, जिनमें से एक मशहूर कविता है:

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहां कल वहां चले
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहां चले

share & View comments