यह मुगल शिविर है.
यह पहली बार नहीं है, जब संभाजी मुगल शिविर में प्रवेश कर रहे हैं. उन्हें सात वर्ष की आयु में मिर्जा के शिविर में जमानत के रूप में भेजा गया था. वे मुगल मनसबदार के रूप में औरंगाबाद के पास उनकी सैन्य छावनी में भी गए हैं. आबा साहिब को परेशान होने की जरूरत नहीं है; उन्होंने ही सबसे पहले अपने बेटे को मुगल मनसबदार बनाया था. अगर वह देशद्रोह नहीं था तो यह भी नहीं है. अगर वह एक राजनीतिक फैसला था तो यह भी है. ‘पुरंदर शांति संधि’ के दौरान आबा साहिब ने संभाजी के नाम का प्रस्ताव देकर मुगल मनसबदार बनने से परहेज किया था. अगर वह स्वीकार्य था तो यह भी होना चाहिए. अगर आबा साहिब उन्हें नौ साल की उम्र में अकेले मुगल क्षेत्र में छोड़ सकते हैं, अगर यही एकमात्र विकल्प था तो संभाजी के पास भी अब कोई विकल्प नहीं बचा है. संधि के बाद आबा साहिब ने भी मुगल साम्राज्यवादियों को बीजापुर पर हमला करने में मदद की थी. संभाजी ने निष्कर्ष निकाला कि मुगल-मराठा राजनीति में उनका मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया था.
वे शिविर में जाते हुए भी औचित्य की तलाश करने की कोशिश करते हैं. उन्होंने देखा कि जहाँ से उन्होंने प्रवेश किया, वहाँ घोड़े और हाथी के अस्तबल हैं और वहाँ उन जानवरों के मूत्र और मल की गंध आ रही है. देखभाल करनेवाले जानवरों की देखभाल करने में व्यस्त हैं, कुछ जानवर शाम के चारे के लिए चिंघाड़ रहे हैं और विरोध प्रकट कर रहे हैं. वे शिविर में और अंदर जाते हैं, जहाँ बड़े-बड़े चूल्हों पर मांस पकाने की विशेष खुशबू है. मुगल शिविरों की विशेषता के अनुरूप हथियारों की भिट्ठयाँ चारों ओर बिखरी हुई हैं, जो अब बुझ गई हैं. लंबी शेरवानी और चूड़ीदार पहने लंबे-चौड़े सैनिक अपने चेलों को आदेश देते हुए घूम रहे हैं; छोटे सूती अँगरखे और घुटने की लंबाई तक के पाजामे पहने भाड़े के दास भेड़ के बच्चों की तरह अपने मालिकों के पीछे घूम रहे हैं. ऐसा लगता है कि सैनिक दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए हैं—समरकंद, काबुल, पेशावर, राजस्थान और यहाँ तक कि मराठा भूमि से भी. अनेक महिलाओं को अपने काम के लिए जाते हुए देखा गया; कुछ तंबुओं में कलाकारों द्वारा गाने गाए जा रहे हैं. एक स्थान पर कुछ महिलाएँ सैकड़ों मशालों की रोशनी में नृत्य कर रही हैं, जबकि उनके चारों ओर नशे में डूबे लोग अपने शराब के गिलासों को खनकाकर उनका उत्साह बढ़ा रहे हैं. फिर वे मुगल और राजपूत मनसबदारों के भव्य हरे और भगवा तंबुओं को पार करते हैं. संभाजी ने इसे पहले भी देखा है, लेकिन तब भी वे इससे चौंक गए थे. उन्हें मराठा सैन्य शिविरों की सादगी याद आती है—कोई तंबू नहीं, कोई महिला नहीं, कोई परिवार नहीं.
संभाजी को पहले एक भव्य तंबू में ले जाया गया, जिसमें एक कार्यालय कक्ष है, एक शयनकक्ष और एक निजी खुला स्नानागार. एक गुलाम धुले कपड़ों का एक सेट लेकर आता है. गरम पानी से भरा बड़ा पीतल का एक बरतन है, साथ में सुगंधित तेल का पात्र और मोटे सूत से बना एक तौलिया है. संभाजी मानसिक और शारीरिक रूप से थके हुए हैं और वे बस गरम पानी से स्नान करना चाहते हैं. जब उन्होंने अपने सिर पर पानी डाला तो उनके दिमाग में बिजली की तरह एक विचार कौंधता है. उनके साथ क्या होना है? दिलेर खान के पास उनके लिए क्या पेशकश है? यह कुछ भी हो सकता है—यहाँ तक कि मृत्यु भी.
कहीं पास की मसजिद में मुअज्जिन दिन की आखिरी नमाज के लिए अपनी पुकार शुरू करते हैं.
संभाजी सूबेदार दिलेर खान से मिलने के लिए तैयार हैं. वे तंबू से बाहर आते हैं, यह सोचते हुए कि उस समय येसु क्या कर रही होगी? कम कपड़े पहने हुए एक दास जब उन्हें नीचे एक रास्ते की ओर ले जाता है तो वे सिहर उठते हैं.
यह क्षेत्र शिविर की हलचल से दूर है. इस रास्ते पर छोटी-छोटी कंकड़ियाँ बिछी हुई हैं और किनारे-किनारे फूलों की झाड़ियों से बनी बाड़ लगी हुई है.
वे मोतियों से जड़े हरे तख्तों से बने एक महलनुमा तंबू तक पहुँचते हैं. मेहँदी रंग की दाढ़ी और पन्ने से जड़ी किमौश पगड़ी पहने हुए एक लंबा आदमी तंबू से बाहर निकलता है, उसके पीछे कुछ और लोग आते हैं, जो भाड़े के गुलामों की तरह दिखते हैं. वह हाथ फैलाकर कहता है, “सलाम, शेर के बच्चे! मैं आपका तहेदिल से स्वागत करता हूँ. अल्लाह हम सबका भला करे.”
संभाजी मुसकराए. उन्हें ‘शेर का बच्चा’ कहलाना पसंद है. आखिर दिलेर खान नहीं भूले हैं.
“खान साहब!” संभाजी दिलेर खान को गले लगाते हैं.
वे दिलेर खान के तंबू में कदम रखते हैं, जो महँगे कालीनों से ढका हुआ है. दिलेर संभाजी को सोने का पानी चढ़े दो दीवानों में से एक के पास ले जाता है. संभाजी देखते हैं कि दिलेर बूढ़ा हो गया है—उसके चेहरे पर अब झुर्रियाँ पड़ गई हैं और चेहरा लंबा हो गया है, जिससे वह लोमड़ी जैसा दिखता है.
“माशाअल्लाह!” दिलेर ने पहली बार संभाजी को ठीक से देखते हुए कहा, “तुम कितने सुंदर हो गए हो!”
संभाजी इस तरह की तारीफ के आदी हैं.
“अब आप सात हजार घोड़े और सात हजार धात के साथ हमारे मनसबदार हैं.” दिलेर ने दूसरे दीवान पर बैठने से पहले ही शुद्ध हिंदुस्तानी में यह घोषणा की. एक गुलाम शरबत के गिलास लाता है और प्यासे संभाजी मिनटों में दो गिलास पी जाते हैं. धात का आँकड़ा वेतन और सवार की संख्या निर्धारित करता है और घुड़सवार सेना के रखरखाव के लिए भुगतान किया जानेवाला धन तय होता है. सात हजार धात उनके लिए बहुत बड़ी रकम होगी. वे अब एक बहुत ही उच्च पदस्थ मुगल मनसबदार हैं—एक अमीर की तरह!
“आज रात हम दावत कर इसका जश्न मनाएँगे. आज रात हम आपको आपका पहला उपहार देना चाहते हैं, चाँदी के हौदे वाला एक पूर्ण विकसित युद्ध हाथी.” दिलेर जोर से घोषणा करता है.
संभाजी मुसकराते हैं, लेकिन थका हुआ महसूस करते हैं.
दिलेर खान मुसकराता है—मराठा राजकुमार उसकी अब तक की सबसे बड़ी ट्रॉफी है.
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