नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के दमोह जिले में तीन दलितों की हत्या की घटना के सिलसिले में इस हफ्ते उर्दू प्रेस ने जातिगत अपराधों की कड़ी आलोचना की. साथ ही संपादकीय में लिखा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासनकाल में ‘दलितों के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों और अपराधों पर गंभीरता से ध्यान देने’ का समय आ गया है.
26 अक्टूबर को इंकलाब ने अपने पहले पेज पर दमोह में इस हत्याकांड के बाद तनाव फैलने की खबर प्रकाशित की.
गौरतलब है कि 25 अक्टूबर को दमोह में छह लोगों ने एक दंपति और उनके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी थी. हमले में उनके दो अन्य बेटे घायल हो गए थे.
सियासत ने अपने 27 अक्टूबर के अंक में ‘एक और दलित परिवार की हत्या’ शीर्षक से एक संपादकीय में लिखा कि ये घटना सवर्णों और दलितों के बीच जातिगत संघर्ष का नतीजा हो सकती है. संपादकीय में आगे लिखा गया कि बात यह नहीं है कि समस्या क्या है, किसी भी नागरिक को कानून अपने हाथ में लेने और खुद ही फैसले करने का अधिकार नहीं है. संपादकीय में आगे कहा गया कि जरूरत इस बात की है कि देश के लोग भाजपा सरकारों के तहत दलितों के खिलाफ अत्याचार और अपराध की बढ़ती घटनाओं पर गंभीरता से ध्यान दें.
अन्य खबरों के अलावा ऋषि सुनक का 10 डाउनिंग स्ट्रीट पहुंचना, और मल्लिकार्जुन खड़गे का 24 वर्षों में कांग्रेस के पहले गैर-गांधी अध्यक्ष के तौर पर पदभार संभालना, उर्दू अखबारों में सुर्खियों में रहा.
दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि इस सप्ताह उर्दू प्रेस में कौन-कौन सी खबरें पहले पन्ने में सुर्खियां में रहीं.
ऋषि सुनक
एक इन्वेस्टमेंट बैंकर से राजनेता बने सुनक के ब्रिटेन में भारतीय मूल के पहले प्रधानमंत्री बनने की खबर निश्चित तौर पर काफी उत्साहजनक थी और उर्दू प्रेस में पहले पन्नों पर सुर्खियों में रही. साथ ही इस पर संपादकीय भी लिखे गए.
सियासत ने 25 अक्टूबर को अपने संपादकीय में सुनक को कुछ सलाह भी दी. इसमें कहा गया है कि नए प्रधानमंत्री को देश की स्थिति समझनी होगी और उन्हें बाजार की मौजूदा स्थितियों के साथ-साथ लोगों की चिंताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए.
संपादकीय में आगे लिखा गया है कि हालांकि, उनके पास बहुत अधिक समय नहीं है लेकिन उन्हें कोई फैसला करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए. साथ ही यह भी कहा गया कि उनकी पूर्ववर्ती जल्दबाजी में टैक्स कटौती के फैसले के कारण ही लंबे समय तक कुर्सी पर नहीं टिक पाईं.
26 अक्टूबर को इंकलाब के पहले पन्ने पर सुनक की नियुक्ति ही मेन स्टोरी थी. इस खबर के साथ वह तस्वीर लगाई गई जिसमें सुनक अपने शपथ ग्रहण समारोह से पहले किंग चार्ल्स तृतीय के साथ हाथ मिलाते नजर आ रहे हैं.
अखबार ने एक इनसेट में इंफोसिस के सह-संस्थापक और सुनक के ससुर एन.आर. नारायण मूर्ति का अपनी खुशी और गर्व जताने वाला बयान छापा. इंकलाब ने पहले पन्ने पर ब्रिटेन में अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के शीर्ष पद पर पहुंचने की संभावनाओं को लेकर छिड़ी बहस पर भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की.
गौरतलब है कि सुनक की नियुक्ति ने भारत में एक अलग ही तरह की बहस छेड़ दी थी, जब शशि थरूर और पी. चिदंबरम जैसे कांग्रेस नेताओं ने सवाल उठाया कि क्या भारत में कभी, खासकर मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए, अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति पीएम बन सकता है.
इसके जवाब में भाजपा, निश्चित तौर पर जिस पर निशाना साधा गया था, ने विपक्ष को खुद उसकी तरफ से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पीएम बनाए जाने की याद दिलाई.
उसी दिन सियासत ने नया पद संभालने वाले सुनक के इस बयान को अपना शीर्षक बनाया कि ब्रिटेन एक आर्थिक संकट की चपेट में है.
वहीं, रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि सुनक ने इतिहास रच दिया है. इसी के साथ एक इनसेट के तौर पर अखबार ने देश में अल्पसंख्यक मुद्दे को लेकर छिड़ी बहस पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव जयराम रमेश की प्रतिक्रिया भी छापी. इसमें उन्होंने कहा था कि भारत को किसी और देश से समावेशिता सीखने की जरूरत नहीं है.
28 अक्टूबर को, सियासत ने अपने पहले पन्ने पर सुनक की नियुक्ति के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी पहली बातचीत की खबर छापी. रिपोर्ट में कहा गया कि दोनों नेताओं के बीच भारत-ब्रिटेन ट्रेड डील पर चर्चा हुई.
27 अक्टूबर को इंकलाब ने संपादकीय में सुनक और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच समानताओं पर रिपोर्ट प्रकाशित की, जिनकी भारतीय-अमेरिकी मां श्यामला गोपालन हैरिस 1950 के दशक के अंत में अमेरिका जाकर बस गई थीं.
संपादकीय में बताया गया कि पुर्तगाल, नीदरलैंड, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसे देशों की एक लंबी सूची है, जहां भारतीय मूल के लोगों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. हालांकि, सुनक इस सूची में सबसे ऊपर स्थान रखते हैं.
अखबार ने आगे लिखा कि भारतीयों को इस तथ्य पर गर्व करना चाहिए कि सुनक ने ऐसे समय पर यह जिम्मेदारी संभालने की हिम्मत की है जब उनका देश एक कठिन दौर से गुजर रहा है और उनकी पूर्ववर्ती लिज ट्रस को महज 44 दिनों में पद छोड़ना पड़ा है.
28 अक्टूबर को एक अन्य संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि सुनक अपने देश की वास्तविक स्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. शायद यही वजह है कि उन्होंने पहले ही कहा था कि ट्रस का टैक्स कटौती का अपना चुनावी वादा करना घातक हो सकता है. संपादकीय में कहा गया है कि सुनक के लिए यह अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश का समय है, और अगर वह सफल रहे तो ब्रिटेन के साथ-साथ पूरी दुनिया की राजनीति में उनकी स्थिति मजबूत होगी.
शाह फैसल का ट्वीट, और हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
27 अक्टूबर को, रोजनामा सहारा ने जम्मू-कश्मीर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शाह फैसल के उस ट्वीट को प्रमुखता से छापा कि भारत में मुसलमानों को कुछ इस्लामी देशों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता हासिल है. अखबार ने फैसल को यह कहते उद्धृत किया कि भारत में सभी के लिए शीर्ष स्थान तक पहुंचने के अवसर उपलब्ध हैं.
फैसल ने जनवरी 2019 में अपनी पार्टी जम्मू और कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) के गठन के लिए सिविल सर्विस छोड़ दी थी. लेकिन फिर अगस्त 2020 में इसे भी छोड़ दिया. वह उसी साल अप्रैल में सिविल सेवाओं में लौट आए, इसके बाद अगस्त में उन्हें केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय में डिप्टी सेक्रेटरी पद पर नियुक्ति मिली.
22 अक्टूबर को, तीनों अखबारों ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हेट स्पीच पर स्वत: संज्ञान लेने और उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड सरकारों को निर्देश देने की खबर को प्रमुखता दी.
भारत के एक धर्मनिरपेक्ष देश होने पर जोर देते हुए शीर्ष कोर्ट ने तीनों राज्यों की पुलिस को शिकायतें आने का इंतजार किए बिना मामले दर्ज करने का निर्देश दिया और साथ ही चेताया कि इसमें किसी भी देरी को अदालत की अवमानना माना जाएगा.
उसी दिन सहारा ने अपने संपादकीय में लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने तो निर्देश दिया है कि भड़काऊ बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, लेकिन यह देखना बाकी है कि प्रशासन और पुलिस इस मोर्चे पर कितनी मुस्तैद नजर आती है और राजनीतिक नेताओं के ‘जहरीले बयानों’ पर क्या कार्रवाई करती है.
संपादकीय में लिखा गया कि उनकी निष्क्रियता मानवाधिकारों के संरक्षण—खासकर अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े मामलों में—पर भारत के रिकॉर्ड को लेकर दुनिया की धारणा को बिगाड़ सकती है, जो शर्मिंदगी का भी सबब हो सकता है.
केजरीवाल की अपील और बैंकनोट विवाद
27 अक्टूबर को सियासत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का वो बयान सुर्खियों में रहा जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बैंक नोट पर गणेश-लक्ष्मी की तस्वीरें छापने का अनुरोध किया.
इसके साथ ही अखबार ने एक अलग कॉलम में कांग्रेस नेता सलमान अनीस सोज की तरफ से केजरीवाल के बयान की आलोचना की खबर छापी. सोज ने कहा कि फिर तो अल्लाह और जीसस को भी बैंक नोटों पर अंकित किया जाना चाहिए.
सियासत ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है.
सहारा ने 27 अक्टूबर के संपादकीय में लिखा कि आम आदमी पार्टी (आप) के लिए मोदी के गृह राज्य गुजरात में भाजपा से मुकाबला करना चुनौतीपूर्ण है. यही वजह है कि केजरीवाल हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए हर पैंतरा आजमाना चाहते हैं और भाजपा को उसकी ही भाषा में जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही आप पौराणिक गाथाओं को अपना चुनावी हथियार भी बना रही है. दिलचस्प बात यह है कि संपादकीय में आगे कहा गया है कि ‘इस तरह की रणनीति के जरिये जिन लोगों को साधने की कोशिश’ की जा रही है, वे अच्छी तरह यह बात समझते हैं.
खड़गे ने संभाली जिम्मेदारी
मल्लिकार्जुन खड़गे के 24 वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले गैर-गांधी अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालने की खबर भी उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर सुर्खियों में रही.
26 अक्टूबर को, सहारा रोजनामा ने लिखा कि आज सोनिया गांधी की जगह खड़गे यह पद संभाल लेंगे और इसके साथ ही ‘चुनौतियों का एक पहाड़’ उनके सामने होगा.
27 अक्टूबर को पहले पन्ने की लीड में इंकलाब ने बताया कि खड़गे ने पदभार ग्रहण कर लिया है. अखबार में हाथ जोड़कर कुर्सी पर बैठे उनकी एक तस्वीर छपी थी, जबकि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई कांग्रेस नेता उनका स्वागत करते नजर आ रहे थे.
सियासत ने भी अपने पहले पन्ने पर वही तस्वीर छापी और खबर दी कि खड़गे के भाजपा से मुकाबले के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने का वादा किया है.
22 अक्टूबर को इंकलाब ने अपने संपादकीय में लिखा कि यह एक सोचा-समझा गया दूरदर्शितापूर्ण कदम हो सकता है कि खड़गे ऐसे समय में कांग्रेस की कमान संभालें जब भारत जोड़ो यात्रा चल रही है. संपादकीय में यह भी बताया गया कि डेढ़ महीने से जारी यात्रा ने न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बल्कि आम लोगों में भी काफी उत्साह भरा है.
संपादकीय में यह भी लिखा गया है कि खड़गे को चुनौती देने वाले शशि थरूर की ‘मैसेजिंग’ भी बहुत अच्छी रही है.
28 अक्टूबर को इंकलाब ने घाटी से कश्मीरी पंडितों के ‘पलायन’ की आलोचना करने संबंधी राहुल गांधी के बयान को प्रमुखता से छापा.
अखबार के पहले पन्ने पर छपी रिपोर्ट में गांधी के हवाले से कहा गया कि भाजपा सरकार ने पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के किए गए ‘अच्छे कामों’ को फिर से पहले की स्थिति में पहुंचा दिया है.
उसी दिन, सहारा रोजनामा ने अपने पहले पन्ने पर राहुल गांधी का भावनात्मक ट्वीट छापा जो उन्होंने अपनी मां को संबोधित किया था. उन्होंने इस ट्वीट में लिखा था, ‘मां, मुझे आपका बेटा होने पर गर्व है.’
साथ में वह तस्वीर भी छापी गई जो इसी महीने के शुरुआत की थी जब वह तुमकुर में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई थीं. इसमें राहुल गांधी अपनी मां के जूतों के फीते बांधते नजर आ रहे हैं.
दिवाली प्रदूषण
दिल्ली एनसीआर में बढ़ता प्रदूषण—आंशिक रूप से दिवाली पर पटाखे छोड़े जाने के कारण—एक बड़ी चिंता का विषय रहा.
26 अक्टूबर यानी दिवाली के दो दिन बाद इंकबाल ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि प्रतिबंधों के बावजूद दिल्ली में बड़ी संख्या में पटाखे चलाए गए.
वहीं सहारा ने दिवाली बाद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ा, वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) त्योहार के एक दिन बाद 353 के गंभीर स्तर पर पहुंचा, को अपनी सुर्खी बनाया.
हालांकि, अखबार ने दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के हवाले से यह जानकारी भी दी कि इस साल दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर पिछले पांच साल में सबसे कम रहा है.
इंकलाब और सियासत दोनों ही अखबारों ने दिवाली के दिन गुजरात के वडोदरा में सांप्रदायिक तनाव की खबरें भी छापीं. सियासत ने अपने पहले पन्ने की रिपोर्ट में बताया कि जब ‘पूरा देश त्योहार मना रहा था’ तब यहां तनाव का माहौल था.
इंकलाब ने बताया कि इस सिलसिले में 20 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
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