नई दिल्ली: बाली में हो रहा जी-20 शिखर सम्मेलन, उपासना स्थल अधिनियम की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई और धर्मांतरण कानून पर इसकी टिप्पणी जैसे विषय इस सप्ताह के अधिकांश समय में उर्दू अख़बारों की चर्चा का केंद्र बने रहे.
सभी तीन प्रमुख उर्दू अख़बारों – रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, इंकलाब, और सियासत – ने जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बैठक के बारे में विस्तार से छापा.
प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट (उपासना स्थल अधिनियम) पर सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई और जबरन धर्मांतरण पर उसकी टिप्पणी भी इनमें प्रमुखता से दिखाई दी और इसी तरह से उत्तराखंड सरकार द्वारा अपने धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम (फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट) में संशोधन करते हुए जबरन धर्मांतरण को संज्ञेय अपराध बनाने के फैसले को भी काफी प्रमुखता से लिया गया. कुछ संपादकीयों में हर बार चुनाव सामने होने पर धर्मांतरण के विषय को उठाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कड़ी मजम्मत भी की गई.
इस सप्ताह जिन अन्य ख़बरों को प्रमुखता के साथ छापा गया, वे हैं ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर कानूनी विवाद, न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के बारे में उठा हालिया विवाद और गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा की जा रही मोरबी पुल हादसे की सुनवाई.
दिप्रिंट इस सप्ताह आपके लिए उर्दू प्रेस में छपी सुर्खियों और संपादकीय का एक संक्षिप्त विवरण लेकर आया है.
धर्मांतरण कानून और उपासना स्थल अधिनियम
15 नवंबर को उर्दू के तीनों अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर यह खबर छापी कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 12 दिसंबर तक का समय दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1991 के कानून को चुनौती देने वाली ऐसी कई याचिकाएं अपने पास बुला ली हैं, जो उपासना स्थलों के धार्मिक चरित्र को उसी प्रकार बनाये रखने का प्रावधान करती हैं जैसे कि वह भारत की आजादी से पहले अस्तित्व में था.
साथ ही 15 नवंबर को, जबरन धर्मांतरण के मामले पर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई भी पहले पन्ने की खबर बन गई. ‘इंकलाब’ और ‘सहारा’ ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह कहे जाने की खबर दी कि ‘जबरन’ धर्मन्तरण न सिर्फ ‘बहुत गंभीर’ है मामला, बल्कि इसने इसे कुछ ऐसा मामला बताया जो न केवल किसी व्यक्ति के धर्म और विवेक के अधिकार को खतरे में डालता है बल्कि संभावित रूप से ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित’ कर सकता है.
अदालत ने ‘जबरन धर्मांतरण’ को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 21 नवंबर तक का समय दिया है.
‘सियासत’ ने 15 नवंबर को छपे अपने संपादकीय में लिखा कि भारत एक ‘धर्मनिरपेक्ष देश’ है. यहां लोगों को किसी भी धर्म को अपनाने और उसका पालन करने का अधिकार है. संपादकीय में कहा गया है कि हर धर्म को समान सम्मान दिया जाता है तथा सभी नागरिकों को, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, समान अधिकार और जिम्मेदारियां प्राप्त हैं और कोई भी संविधान एवं देश के कानून का उल्लंघन नहीं कर सकता है.
हालांकि, संपादकीय में यह भी कहा गया है कि यह सच है कि देश के दूर-दराज इलाकों में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं हो रही हैं. इसके लिए नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे है. इसमें कहा गया है कि ऐसे उदाहरण भी मिले हैं जिनमें मदद के नाम पर लोगों को अपना धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
फिर 17 नवंबर को, ‘इंकलाब’ ने खबर दी कि उत्तराखंड कैबिनेट ने राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून – उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम – में संशोधन को मंजूरी दे दी है. नया संशोधन 10 साल के कठोर कारावास के प्रावधान के साथ-साथ जबरन धर्मांतरण को एक संज्ञेय अपराध भी बनाता है.
उसी दिन छापे गए अपने संपादकीय में ‘सहारा’ ने लिखा कि अगले महीने होने वाले गुजरात चुनाव के मद्देनजर जबरन धर्मांतरण के विषय को एक बार फिर से सामने लाया गया है.
संपादकीय में कहा गया है कि यह विषय भाजपा का ‘पसंदीदा’ विषय है और जब भी जरूरत होती है तो इसे विभिन्न प्लेटफार्मों पर उठाया जाता है. संपादकीय में कहा गया है कि जहां तक धर्मांतरण वाले विषय की बात है तो इसे संविधान के तहत संरक्षित किया गया है.
इसमें कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों में से एक है.
संपादकीय में आगे कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां धर्मांतरण कानूनी कृत्य है और न केवल कोई भी शख्स बिना किसी रोक-टोक के अपने धर्म का पालन कर सकता है बल्कि स्वतंत्र रूप से इसका प्रचार भी कर सकता है.
इसके बाद, 18 नवम्बर, को ‘इंकलाब’ ने अपने पहले पन्ने पर खबर चलाई कि एक ऐतिहासिक आदेश के रूप में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 की धारा 10 के तहत स्वैच्छिक तौर पर धर्मान्तरित लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक दिया है.
यह अदालत मध्य प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 (मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट, 2021) को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस अधिनियम ने अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन किया गया है.
अपने अंतरिम आदेश में, उच्च न्यायालय ने उस प्रावधान को प्रथम दृष्टया तौर पर ‘असंवैधानिक’ घोषित कर दिया जो धर्मांतरण के इच्छुक व्यक्ति के लिए जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष इस संबंध में एक घोषणापत्र देना अनिवार्य बनाता है.
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बाली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन
इस सप्ताह की शुरुआत में इंडोनेशिया के बाली में आयोजित जी -20 शिखर सम्मेलन की ख़बरों को भी उर्दू अखबारों में विस्तार से जगह मिली.
15 नवंबर को उर्दू अखबारों ने जी-20 शिखर सम्मेलन के उस दिन से शुरू होने की खबरें छापीं. ‘इंकलाब’, जिसने उस दिन इस शिखर सम्मेलन को अपनी प्रमुख खबर के रूप में छापा, ने बताया कि इस सम्मेलन के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 10 देशों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय बैठकें करेंगे और भारत सितंबर 2023 में नई दिल्ली में अगले शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा.
इसमें कहा गया है कि मोदी अगले साल के शिखर सम्मेलन में उन्हें आमंत्रित करने के लिए अधिक से अधिक नेताओं से मिलेंगे.
अगले दिन, ‘सहारा’ और ‘इंकलाब’ ने अपने-अपने पहले पन्ने पर यह खबर दी कि मोदी ने जी-20 देशों से वैश्विक खाद्य संकट से निपटने के लिए खाद की आपूर्ति में बढ़ोत्तरी के उपाय करने को कहा है. खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा पर अपने संबोधन में, मोदी ने सभी देशों से वैश्विक आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के मकसद से ऊर्जा की आपूर्ति पर लगे सभी प्रतिबंध हटाने को कहा.
उर्दू अखबारों ने इस शिखर सम्मेलन के दौरान बाइडेन और शी के साथ पीएम मोदी की मुलाकात की खबरें भी छापीं.
उसी दिन छपी अपनी एक अन्य खबर में, ‘इंकलाब’ ने कहा कि मोदी ने सभी राष्ट्रों से यूक्रेन में संघर्ष विराम करवाने के लिए कूटनीति के जरिए कोई रास्ता खोजने का आग्रह किया.
यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि जी-20 शिखर सम्मेलन वैश्विक खाद्य और ऊर्जा संकट के ऐसे विषम समय काल में हो रहा है, जो रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष के कारण आया है.
17 नवंबर को तीनों अखबारों ने अपने-अपने पहले पन्ने पर यह खबर दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022-23 के लिए शक्तिशाली जी-20 समूह की अध्यक्षता संभाल ली है. इन ख़बरों में मोदी के हवाले से कहा गया था कि भारत का अध्यक्षता पद ‘समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और कार्रवाई उन्मुख’ होगा.
कॉलेजियम प्रणाली पर उठा विवाद
न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली इस हफ्ते एक बार फिर से सुर्खियां में रही. कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा इस प्रणाली को ‘अस्पष्ट’ और ‘गैर-पारदर्शी’ कहे जाने के कुछ दिनों बाद, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित ने इस प्रणाली का बचाव किया.
14 नवंबर को ‘इंकलाब’ ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि उच्चतम न्यायलय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ललित ने एक न्यूज चैनल के साथ अपनी बातचीत में कहा कि कॉलेजियम सिस्टम न्यायाधीशों की नियुक्ति का ‘बिल्कुल सही’ और संतुलित तरीका है.
‘सहारा’ ने उसी दिन छपे अपने संपादकीय में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को एक शिखर सम्मेलन यह कहते हुए उद्दृत किया कि कानून न्याय के साथ-साथ उत्पीड़न का भी एक साधन हो सकता है. इसके अनुसार, चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘न केवल न्यायाधीशों बल्कि सभी निर्णयकर्ताओं’ की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करने की है कि कानून उत्पीड़न का साधन न बने.
‘सहारा’ ने अपने संपादकीय में इसी विषय पर लिखते हुए कहा कि सब कुछ न्यायपालिका पर ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए और न्याय देने के लिए लोग और सरकारें भी उतनी ही जिम्मेदार हैं.
संपादकीय में कहा गया है कि एक ऐसे सभ्य समाज का निर्माण करना महत्वपूर्ण है जहां किसी के अधिकार का हनन न हो, किसी के साथ अन्याय या भेदभाव न हो, किसी को भी दूसरे व्यक्ति पर हावी होने की अनुमति न हो और हर कोई समान हो. इसमें कहा गया है कि किसी भी समस्या को हल किया जाना चाहिए, किसी भी दोष को कानून के इस्तेमाल से दूर किया जाना चाहिए और सभी को न्याय मिलना चाहिए. संपादकीय में आगे कहा गया है कि ऐसा समाज सभी के लिए अच्छा होता है. इसमें कहा गया है कि इससे शांति और व्यवस्था स्थापित होगी, लोग कम समस्याओं के साथ शांति से रह सकेंगे और देश का विकास होगा.
मोरबी पुल का ध्वस्त होना
17 नवंबर को, इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर खबर दी कि गुजरात उच्च न्यायालय, जिसने मोरबी में एक पैदल यात्री पुल के ढहने पर स्वत: संज्ञान लिया था, ने शहर के नागरिक निकाय की तीखी आलोचना की है.
उससे पिछले दिन हुई अदालत की सुनवाई के बारे में अपनी खबर में अखबार ने लिखा कि गुजरात उच्च न्यायालय उस नगर निगम पर बरस पड़ा जिसने पुल की स्थिति के बारे में पूरी तरह से जानने के बावजूद लोगों को इसका उपयोग करने की अनुमति दी.
इस खबर में कहा गया है,’गुजरात उच्च न्यायालय के सख्त रवैये के कारण मोरबी प्रशासन को यह स्वीकार करना पड़ा कि पुल के जर्जर स्थिति में होने के बावजूद (मानवीय) यातायात के लिए अनुमति दी गई थी.’
अदालत ने नगर निकाय से यह भी कहा कि उसे अगले कुछ घंटों में अपना हलफनामा दाखिल करना होगा अन्यथा एक लाख रुपये का जुर्माना देना होगा.
कांग्रेस की गतिविधियां
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ समेत कांग्रेस पार्टी से जुडी खबरें भी उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर रहीं.
14 नवंबर को ‘इंकलाब’ के पहले पन्ने पर कांग्रेस के संचार मामलों के प्रभारी जयराम रमेश द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की खबर थी.
अपने द्वारा पोस्ट किये गए एक ट्वीट में रमेश ने मोदी को न केवल ‘फेंकू मास्टर बल्कि एक यू-टर्न उस्ताद’ कहा. रमेश की आलोचना मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम – एक ऐसा कानून जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दिमाग की उपज था – के फायदों पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए एक हलफनामे के कुछ ही दिनों बाद आई थी.
रमेश एक ट्विटर यूजर के उस ट्वीट पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की आलोचना करते हुए एक पुराना वीडियो साझा किया था.
‘सियासत’ ने 18 नवंबर को छापे गए अपने संपादकीय में राहुल गांधी द्वारा वी.डी. सावरकर की आलोचना किये जाने और उसके बाद जो विवाद हुआ उसके बारे में बातें की. इसने कहा कि जिस तरह से भाजपा इस मुद्दे पर शिवसेना को निशाना बना रही है और उसके तथा कांग्रेस के बीच दरार डालने की कोशिश कर रही है, वह कायरता दर्शाता है.
इस संपादकीय में कहा गया है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए शिवसेना पर सवाल उठा रही भाजपा को पहले इस बात का जवाब देना चाहिए कि उसने पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी – जिसकी विचारधारा भाजपा के एकदम विपरीत ध्रुव वाली है – के साथ गठबंधन करने और उसके साथ मिलकर सरकार बनाने का विकल्प क्यों चुना?
संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा का असल उद्देश्य, ‘बहुत सफल हो रही’ भारत जोड़ो यात्रा के बारे में गलतफहमी पैदा करना है, यह संभव नहीं भी हो सकता है.
ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद
उर्दू अखबारों में हर हफ्ते सुर्खियां बटोरने वाला ज्ञानवापी मामला इस हफ्ते भी पहले पन्नों पर नजर आया.
18 नवंबर को, तीनों अखबारों ने वाराणसी की एक अदालत द्वारा मस्जिद परिसर में पाए गए एक कथित शिवलिंग की पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले एक मुकदमे को कायम रखने के निर्णय को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की अर्जी को खारिज किये जाने की खबर छापी.
17 नवंबर को, वाराणसी की एक अदालत ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा उस याचिका के खिलाफ दायर अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें न केवल पूजा के अधिकार की मांग की गई थी, बल्कि यह भी कहा गया था कि मस्जिद को हिंदुओं को सौंप दिया जाए.
(अनुवादः रामलाल खन्ना)
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