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Sunday, 22 December, 2024
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सोनम कपूर का बदला नाम – ऐच्छिक फेमिनिज्म या प्रबल पैतृक व्यवस्था ?

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सोनम कपूर, जो अब सोनम कपूर-आहूजा हैं, अपने पति का उपनाम जोड़ने के कारण नारीवादियों के निशाने पर आ गयी हैं।

दिप्रिंट का सवाल :सोनम कपूर का बदला नाम–चुना हुआ नारीवाद या प्रबल पित्रसत्ता


 

जो नारीवादी नहीं है वो एक महिला की पसंद को उससे दूर ले जा रहा है, जो वह अपनी जिंदगी के साथ करना चाहती है।

नीरा मजूमदार
पत्रकार, दिप्रिंट
क्या अपने पति का उपनाम जोड़ना पितृसत्तात्मक है? हाँ।

क्या अपना खुद का उपनाम जोड़े रखना पित्रसत्तात्मक है? हाँ। क्योंकि ये आपके पिता का उपनाम है।

क्या अपनी माता का उपनाम जोड़ना पित्रसत्तात्मक है? हाँ। क्योंकि ये उनके पिता का उपनाम है।

बात ये है कि किसी का उपनाम पहले से ही एक जातिवादी और पित्रसत्तात्मक समाज का परिणाम है, चाहे आप विवाहित हों या नहीं।

नारीवादियों को एक बड़े समूह के रूप में देखना आसान है जिसे एक समान सोच रखनी चाहिए, एक सा अहसास होना चाहिए और एक दूसरे से सवाल नहीं करने चाहिए। लेकिन दरअसल, हम हर समय अपने आप से सवाल पूछते हैं। यहाँ सामाजिक नारीवादी, मार्क्सवादी नारीवादी, कट्टरपंथी नारीवादी और अन्य हर प्रकार के मिश्रित नारीवादी हैं, जो सभी एक दूसरे के साथ बहुत बहस करते हैं। नारीवाद दोहरे रवैये में नहीं रहता –आप एक नारीवादी हो सकते हैं और अपना नाम बदल सकते हैं। आप नारीवादी हो सकते हैं और बच्चे पैदा कर सकते हैं। आप नारीवादी हो सकते हैं और गुलाबी रंग पसंद कर सकते हैं।

आज के नारीवादी विभिन्न पहचानों और परिस्थितियों में मौजूद हैं। हम में से किसी ने भी अपक्षपाती शुरुआत नहीं की जहाँ पित्रसत्ता, जाति, वर्ग मौजूद न हों (यहाँ तक कि स्त्री योद्धा भी नहीं)। इसलिए यहाँ हमारी पहचानों को तय करने, हमारे विशेषाधिकारों को स्वीकार करने और दूसरों को सशक्त बनाने की जरूरत है। हम एक ही बार में हमारे पूरे समाज की स्थिति और ताने-बाने को बदलने में सक्षम नहीं होंगे, यह एक आजीवन प्रक्रिया है। हमें रोज अपनी लड़ाई का चुनाव करना है।

यदि सोनम कपूर शादी के बाद अपना उपनाम बदलना चाहती हैं,बदलें। जो नारीवादी नहीं है वो एक महिला की पसंदको उससे दूर ले जा रहा है, जो वह अपनी जिंदगी के साथ करना चाहती है। यही वो सब है जो पित्रसत्ता एक लम्बे समय से करती आ रही है।


 

कार्यवाही से भी अधिक निराशाजनक रही रफ़्तार

संध्या रमेश
वरिष्ठ सहायक संपादक, विज्ञान, दिप्रिंट

हम सभी में स्वयं के नारीवाद का संस्करण हैं। हम अपने दूरतम रूपों के बीच संतुलन खोजने के लिए संघर्ष करते हैं – उस प्रत्येकसंकेतया छोटी सी जड़ कोभी हटाने का प्रयास करते है जो पितृसत्ता से उत्पन्न होती है और स्थायी रूप से बनी रहती है – हम कानूनी रूप से पुरुषों के समान अधिकार रखने पर मौन हो जाते है। अधिकांश ज्ञानी लोगों की जो राय होती है वह बीच में कहीं भी असत्य हो जाती है।

पारिवारिक नाम को प्रकट करने के लिए किसी का अंतिम नाम बदलना एक ऐसा कार्य है जो पीढ़ियों से विकसित हुआ है और व्यापक रूप से आसान है। यदि एक सुधार की आवश्यकता हैतो इसके लिए एक बहस की जरूरत है।

सोनम कपूर कीपसंद उनकाआखिरी नाम बदलना था।शादी के 24 घंटों से भी कम समय की तेजी से सोनम ने यह किया, और वह स्थान जहां उसने पहली बार ऐसा किया था वह थी Instagram प्रोफ़ाइल जहाँ लाखों किशोर और युवा वयस्क सोनम के प्रसंशक है, व्यक्तिगत रूप से ये मुझे पसंद नहीं है। आज के ऑनलाइन युग में यह सिर्फ एक साधारण नाम-परिवर्तन नहीं है। चूंकि किसी भी सोशल नेटवर्क पर कोई भी सहमत हो सकता है। व्यक्ति का नाम उस व्यक्ति की मूल पहचान का प्रतीकात्मक वर्णन है।

स्वयं पर कार्य करने के मुकाबले, तत्काल इन्हें बदलने का इरादा बजाय मौजूदा मानदंडों का पालन करना मेरे लिये निराशाजनक था।

आज की दुनिया में, जहां महिलाएं तेजी से नई ऊंचाइयों को छू रही हैं और लिंगवाद के बंधनों से बाहर निकलने के लिए दांत और नाखून से लड़ रही हैं, कई युवा वयस्क के लिए सोनम कपूर एक आइकन है। युवा महिलाओं को अपनी पहचान स्थापित करने के लिए लड़ना पड़ता है , उनका यह निर्णय एक आदर्शके रूप मेंएक व्यक्ति के लिए उनकी अनूठी पहचान बनाने का फैसला है।शायद मेरे लिए क्या बुरा था उसके सुंदर केक की बेस्वाद शादी। जो महिला अपनी शैली के लिए हर किसी के पक्ष में खडी हुई उसने एक घिसे पिटे और रूढ़िवादी तरीके को अपनाते हुए उस केक पे बनी मूर्तिके साथ जाना पसंद किया, जिसमें वह अपने पति को खींच रहीं है, उस वस्तु से जिससे वह बहुत प्यार करता है (बास्केटबाल)।
सोनम कपूर जैसे सितारे शायद युवा पुरुषों और महिलाओं के लिए नारीवादी भूमिका के रूप में अच्छी तरह से काम कर सकते हैं। लेकिन हां, बॉलीवुड बार-बार बड़े कार्यों के माध्यम से हमारे साथ मजबूती से जुड़ जाता है (लगातार # शांतिपूर्ण वार्ता के बावजूद #MeToo की आवाजें)लिंग समानता और नारीवाद की धारणाएं जो अभी भी मध्यम श्रेणी की भावनाओ तक पहुंचने में सक्षम नहीं है।


 

मैं श्रीमती कपूर-आहूजा से हमारे पुरुष प्रधान समाज के शीशे के घरों को तोड़ने की अब और उम्मीद नहीं कर सकता, जब वो खुद ही उस समाज की पैतृकता का पालन करती हैं

निखिल रामपाल
पत्रकार, दिप्रिंट

महिलाओं के बीच दिखाई देने वाला ‘चुना हुआ नारीवाद’ उनके लिए अनूठा है। कारण? मैं इसके लिए “महिलाएं सारा त्याग करें” की संस्कृति को और उन त्योहारों को दोष दूंगा जो पुरुषों की प्रमुखता और प्रधानता को बढ़ावा देते हैं।

दुनिया भर में नारीवादी समान अधिकार, समान वेतन, समान प्रतिनिधित्व और निश्चित रूप से पसंद की आजादी के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन भारतीय नारीवादी असमान रहने की प्रार्थना कर रहे हैं।भारत में ‘चॉइस फेमिनिस्ट’ कुछ-कुछ जेनिफर लोपेज़ के ‘Ain’tYo Mama’(मैं तुम्हारी माँ नहीं हूँ) की तरह हैं; महिलाएं अपनी पसंद को बहुत सावधानी से और के हिसाब से चुनती हैं जबकि वो अभी भी नारीवाद के घूंघट में हैं। यह ऐसा है जैसे अंडा खाकर या मटन ग्रेवी चखकर अपने आप के शाकाहारी होने का ढिंढोरा पीटना।

मुझे याद है मेरे स्कूल में कुछ लड़कियों का उपनाम ही नहीं था क्योंकि उनका कहना था कि शादी के बाद ये एक समस्या बन जाती है। मैं उस समय 10 साल का था, समझ नहीं सका, लेकिन अब जाकर मुझे ये अहसास हुआ कि बचपन से ही उन लड़कियों को समाज को खुश करने के लिए अच्छी पत्नी और अच्छी बहू बनने की ट्रेनिंग दी जाती है। बेशक, उन महिलाओं के लिए ‘नारीवाद’ सिर्फ 8 मार्च को सेलिब्रेट करने, धूम्रपान करने, शराब पीने और घर से बाहर काम करने तक ही सीमित है।

सोनम कपूर के नाम में बदलाव निश्चित रूप से भारत के असल नारीवादियों की भावनाओं को आहत करेगा। मैं कल्पना कर सकता हूँ कि कुछ घरों में जहाँ महिलाओं ने अपना नाम बदलने से मना कर दिया होगा, कैसे पति अपनी पत्नियों को जरूर कह रहे होंगे : “सोनम कपूर ने भी कर लिया, तुमको पता नहीं क्या दिक्कत है।”

ये इन महिलाओं को दुःख का अहसास कराएगा और उनके इस यकीन को तोड़ेगा कि बदलाव एक व्यक्ति से शुरू होता है।

अब से, मैं श्रीमती कपूर-आहूजा से हमारे पुरुष प्रधान समाज के शीशे के घरों को तोड़ने की उम्मीद नहीं कर सकता, जब वो खुद वो खुद ही उस समाज की पैतृकता का पालन करती हैं


 

सोनम कपूर के लिए एक सवाल है – वे अपना नाम बदलने के लिए अपने पति से ही क्यों नहीं पूछ लेतीं?

दीक्षा भारद्वाज
पत्रकार, दिप्रिंट

“हम घमंडी और पश्चातापहीन नारीवादी के रूप में तथा अस्थिरता एवं घोर परिवर्तन द्वारा चिन्हित समय में रहते हैं, मैं उस प्रत्येक दिन की आभारी हूं, क्योंकि स्थिरता का मतलब होगा पीछे की ओर लौट आना, जब ‘महिलाओं का स्थान’, परिवार में, कार्यस्थल में और विश्व में, समाज के संकीर्ण पक्षपाती विचारों और उन लोगों द्वारा निर्धारित किया गया था जो इसके अग्रदल होने का दावा करते थे।”

यह वही है जिसे सोनम कपूर ने 8 मार्च 2017 को लिखा था। एक साल के ही अन्दर, ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी राय बदल ली है। शादियाँ एक संरचना के रूप में पित्रसत्ता में समायी हुई हैं। ‘मंगल सूत्र’,‘सिन्दूर’ की पूरी अवधारणा और संपत्ति के रूप में महिलाओं की ब्रांडिंग और चिन्हांकन पर्याप्त रूप से बुरा है|

लेकिन किसी एक का नाम बदलने के लिए? यह न केवल एक पुरातन और पितृसत्तात्मक, बल्कि अव्यवहारिक प्रथा भी है। नाम किसी की पहचान का पहला चिन्ह होता है। नाम बदलना, क्योंकि आप किसी व्यक्ति के साथ शादी के बंधन में बंधती हैं, एक महिला के व्यक्तित्व का खंडन है। यह एक बयान है कि पुरुषों से साथ उनके आमने-सामने के संबंधों के अलावा उन महिलाओं की अपनी कोई अलग पहचान नहीं होती।

यहाँ तक कि नौकरशाही प्रक्रिया, जो नाम-परिवर्तन में साथ देती है, जैसे पासपोर्ट, बैंक विवरण इत्यादि में, भी इस तर्क में नहीं जाना चाहती। वैसे भी जब पितृसत्ता की बात आती है, तो इसमें तर्कसंगतता के लिए कोई जगह नहीं बचती।
किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो समान अवसर दिए जाने में विश्वास करने का दावा करता हो, मेरे पास सोनम कपूर के लिए एक सवाल है कि वो अपना नाम बदलने के लिए अपने पति से ही क्यों नहीं पूछ लेतीं? केवल सोनम के ही नाम बदलने लेने से लैंगिक समानता कहां है। एक महिला जो गैर-अनुसारक होने का दावा करती है वह सामाजिक दबाव में क्यों पड़ गई, वह भी इतनी जल्दी?

वास्तव में यह सुनिश्चित करने के लिए नारीवादियों की हमारी पीढ़ी पर निर्भर करता है कि हम महिलाओं के अपने पिता के घर से अपने पति के घर जाने के इस बुरे कालचक्र को तोड़ सकते हैं।

सोनम कपूर कुछ बॉलीवुड हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने हमेशा एक सटीक निर्णय लेने की वकालत की है। उनका नाम किसी के नाम के साथ सम्बद्ध हो सकता है और शायद इसे बदलने का निर्णय उन्हीं का है। जेन ऑस्टेन के उपन्यासों की विक्टोरियन नायिकाओं की तरह, किसी भी तरह से, उन्होंने इस नजरिये को बदले बिना “समाज के उन्हीं संकीर्ण पक्षपाती विचारों और उन लोगों को जो खुद को अग्रदल होने का दावा करते हैं” को अनिवार्य रूप से रास्ता दे दिया है।


सोनम कपूर से नारीवादी का तमगा छिन जाना उन्हीं की अदूरदर्शिता के कारण है

नंदिता सिंह
पत्रकार, दिप्रिंट

अगर सोनम कपूर दूर के पितृसत्तात्मक संबंधों में कुछ भी करने से बचना चाहती, तो वह अपने पहले घर पर शादी नहीं कर पाती।
पूरा समाज एक महिला की कामुकता को नियंत्रित करने के लिए एक व्यक्ति की जरूरत से विकसित हुआ है ताकि वह अपने ‘सही’ पुरुष उत्तराधिकारी की पहचान करके अपनी निजी संपत्ति का अधिकार उसे सौंप सके।

फिर निर्णय लेने की भयानक पहेली है ये मानते हुए कि आप एक माध्यम हैं, चाहें आप माँ बनना चाहें या नहीं। मेरा मतलब है कि आप फलफूल रहे रूढ़िवाद के अनुकूल क्यों चलना चाहेंगे और उसी समय अपने शरीर के साथ ऐसा क्यों करेंगे।

इसे इस तरह से देखिएः क्या सोनम कपूर का वजन कम करने और सुंदरता के पारंपरिक मानकों पर सहमति व्यक्त करने का निर्णय, समान रूप से पुरुष प्रधानवाला काम नहीं था?उपनाम में क्या है, जब आप अपनी उम्मीदों के आस-पास अपने पूरे जीवन और पहचान को पहले ही गुजार चुके हैं? जब उसका हर निर्णय पहले से ही नारी द्वेषी के अनुकूलन द्वारा निर्देशित किया जा रहा हो, इसलिए संभवतः वह नारीवादी नहीं हो सकती है।

यह पूरा मुद्दा है- वह हो सकती हैं। चूंकि आप कामी भूमिकाओं को स्वीकार करने के बावजूद नारीवादी हो सकती है। चूंकि आप एक नारीवादी हो सकती हैं भले ही आपके पास गाड़ी-बंगला और शादी के बाद वाले सपने के अनुसार दो छोटे-छोटे बच्चे हों। कोई भी निर्णय हमारे अन्दर पूर्ण सिद्धांतों को पैदा नहीं करता हैः- हम असंख्य कारकों से अलग-अलग दिशाओं में खींचे जा रहे हैं और खींचे जाते रहेंगे।

यदि ‘पसंद’ स्वयं पितृसत्तात्मक ढांचे के अनतर्गत निर्धारित होती है, जो हमारे अन्तर्भाग को अवस्थापित करता है (जैसे हडिया के पिता ने तर्क दिया कि वह संभवतः कोई भी बेहतर तरीका नहीं जानती , क्योंकि उनका मत परिवर्तन जबर्दस्ती किया गया है), तो हम में से कोई भी, तकनीकी रूप सेनारीवादी नहीं हो सकता है।

पंक्ति जो दोनों को विभाजित करती है वह है कि आप क्या कर रहे हैं और आप वह क्यों कर रहे हैं, अपने स्वयं के विचारों का निर्माण करोऔर फिर ईमानदारी से आगे बढ़ो। सोनम कपूर उन युवा लड़कियों द्वारा इसे अधिक प्रभावित कर सकती है, जो फिल्मे उन्होंने चुनी, अपने स्वयं के उचे और रईस घराने के होते हुए भी जो भी निर्णय उन्होंने लिये और अन्याय के विरोध में आवाज उठाई उचित निर्णय लेती हैं और अन्याय के खिलाफ बोलती है। इंस्टाग्राम पर अपना नाम बदलने के फैसला लेती हैं। नारीवादीसे उसे अलग करना एक तुच्छ सोच है – वह लड़ाई के लिए जिम्मेदार है ना कि युद्ध के लिए ।


विवाह के बाद महिलाओं को अपना उपनाम बनाए रखना अभी भी पूरी तरीके से उनके लिये दुर्लभ काम है

शारान्या मुन्सी
वेब संपादक, दिप्रिंट

बॉलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर की शादी सोशल मीडिया पर चुंबक की तरह चिपकी हुई थी। ड्रेस से शादी के केक तक, सोनम कपूर को अपनी नई जीवन की यात्रा के लिये उनके चाहने वालो के दिल से उनको आशीर्वाद मिला।लेकिन कुछ नकचढे संदेही अभी भी विचार विमर्श कर रहे है कि सोनम कपूर की उस इच्छा पर जिसमें वह अपने नाम को बदल कर अपने पति के उपनाम को अपना रही है। सोनम कपूर जो “पूर्ण नारीवादी” होने का दावा करती है, उनसे उम्मीद थी पितृसत्तात्मक परंपराओं को तोड़ने की और अपने स्वयं के नाम को ना बदलने की ।

लेकिन सवाल अभी भी यह है: क्या आपके पति का नाम नहीं अपनाना आपको परिवर्तनशील बनाता है? शायद भारत जैसे एकनियंत्रित पितृसत्तात्मक समाज के लिएनारीवादी लोग हां में जवाब देंगे। यही कारण है कि सोनम ने भी ऐसा ही किया। लेकिन सोनम ने बीच का रास्ता अपनाया, ग्रे रंग की रेखा का अनुसरण करते हुए न तो सोनम ने रूढ़िवादिता को बढावा दिया और न ही नारीवादियों को हतोत्साहित किया।36 वर्षीय इस अभिनेत्री ने बॉलीवुड में नेतृत्व कर रहीं अभिनेत्रियों, करीना कपूर-खान, ऐश्वर्या राय-बच्चन और शिल्पा शेट्टी-कुंद्रा का अनुसरण करते हुए सोनम कपूर से – सोनम कपूरअहुजा बन गईं।

विवाह के बाद महिलाओं को अपना उपनाम बनाए रखना अभी भी पूरी तरीके से एक असाधारण काम है। अन्य अभिनेत्रियों के बीचबॉलीवुड में केवल कुछ ही ऐसे उदाहरणहै जैसे किरण राव, शबाना आज़मी, विद्या बालन, और कल्कि कोचलिन, इनका यह निर्णय कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि ये ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने करियर से भी समझौता किया है।

अगर सोनम कपूर अपने पहले नाम को अपनाए, तो उन्हे नारीवादी होने के अपने दावे का श्रेय मिल जायेगा। हालांकि, अभी के लिए, उनका दावा कमज़ोर होते हुए दिखै ।

Read in English: Sonam Kapoor’s name change – choice feminism or blatant patriarchy?

 


 

 

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