नई दिल्ली: मोदी सरकार ने पिछले बजट में घोषित तीन प्रमुख ढांचागत और रक्षा-संबंधी घोषणाओं में उनकी जरूरतों के मुताबिक कम या ज्यादा पैसा खर्च किया और इससे कुछ के पूरे होने की राह खुली और कुछ अन्य में 2023-24 के बजट में और प्रगति होने की उम्मीद है.
दिप्रिंट की तरफ से किए गए एक विश्लेषण से पता चलता है कि सरकार पिछले साल नल का साफ पानी उपलब्ध कराने, सस्ते आवास बनाने और चीन के साथ सीमा पर बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने संबंधी योजनाओं के मामले में पूरी तरह पटरी पर रही. और बजट 2023 में इनमें से कुछ के पूरे होने के आसार नजर आ रहे हैं.
बजट 2022 पेश करने के दौरान अपने भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नल का पानी उपलब्ध कराने के लिए हर घर, नल से जल कार्यक्रम के तहत अतिरिक्त 3.8 करोड़ घरों को कवर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की थी.
सस्ते आवास के लिए पीएम आवास योजना के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष के अंत तक पात्र लाभार्थियों के लिए 80 लाख घरों को पूरा करने के लिए 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
उन्होंने उत्तरी सीमा के साथ लगती कम आबादी वाली बस्तियां विकसित करने के लिए नए वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की भी घोषणा की, जो ‘अक्सर विकास संबंधी लाभों से वंचित रह जाते हैं.’
यद्यपि सीतारमण ने इस संबंध में कुछ स्पष्ट नहीं किया कुल कितना बजटीय आवंटन किया गया है, लेकिन कहा कि गांवों में बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी और अन्य सुविधाओं के निर्माण के लिए ‘अतिरिक्त धन’ मुहैया कराया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘मौजूदा योजनाएं साथ में चलती रहेंगी. हम उनके नतीजों को देखते और नियमित तौर पर उनकी निगरानी करेंगे.’
वित्त मंत्री की बजट 2022 की घोषणाओं के करीब एक साल बीतने के बीच इन तीनों योजनाओं में हुई प्रगति पर एक नजर….
‘2024 के लक्ष्य’ में कहां तक पहुंची ग्रामीण नल जल योजना
सभी ग्रामीण घरों को निजी कनेक्शन के माध्यम से पीने योग्य साफ पानी मुहैया कराने के लिए सरकार का हर घर, नल से जल मिशन अपने अंतिम चरण में है. 2019 में लॉन्च इस मिशन की समयसीमा अगस्त 2024 में यानी मोदी सरकार का मौजूदा कार्यकाल खत्म होने के बाद पूरी होनी है.
जल शक्ति मंत्रालय के तहत पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) 2022-23 के बजट में योजना के लिए आवंटित 60,000 करोड़ रुपये में से लगभग 60 प्रतिशत खर्च कर चुका है.
जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष 19 जनवरी तक भारत में 19.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 56.62 प्रतिशत को नल जल कनेक्शन मुहैया कराया जा चुका है. मंत्रालय के समक्ष अब अगस्त 2024 तक शेष 43.38 फीसदी ग्रामीण परिवारों को कवर करने का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है.
जल शक्ति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि 2024 की समयसीमा में योजना पूरी हो जाने की पूरी उम्मीद है. उन्होंने कहा, ‘कोविड महामारी के कारण 2020-21 में गति धीमी पड़ गई थी लेकिन राज्यों में अब इस दिशा में कार्यों में तेजी आई है. योजना के लिए फंड की कोई समस्या नहीं है.’
अब तक, सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों—गोवा, हरियाणा, तेलंगाना, गुजरात, पुडुचेरी, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह—ने 100 प्रतिशत नल जल कनेक्शन प्राप्त करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है.
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‘सबके लिए आवास’ अभी लक्ष्य से दूर
देशभर में पात्र परिवारों को कम लागत वाले पक्के घर उपलब्ध कराने से जुड़ी एक प्रमुख योजना प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) शहरी और ग्रामीण को दो अलग-अलग चरणों में चलाया जा रहा है, जिन्हें क्रमशः 2015 और 2016 में लॉन्च किया गया था.
पीएमएवाई (शहरी) को आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की निगरानी में चलाया जा रहा है, जबकि पीएमएवाई (ग्रामीण) ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आती है.
पिछले बजट में योजना के लिए आवंटित कुल 48,000 करोड़ रुपये में से 28,000 रुपये पीएमएवाई (शहरी) और 20,000 करोड़ रुपये पीएमएवाई (ग्रामीण) के लिए थे. कार्यक्रम के तहत दोनों चरणों को आगे बढ़ाया जा चुका है क्योंकि स्वीकृत आवासों के लिए निर्धारित समयसीमा तक काम पूरा नहीं किया जा सका है.
पीएमएवाई (शहरी) को अगस्त 2022 तक पूरा किया जाना था, लेकिन पिछले साल इसकी डेडलाइन बढ़ाकर 31 दिसंबर 2024 कर दी गई.
आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय 31 मार्च, 2022 तक स्वीकृत 122.69 लाख घरों को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया करा रहा है. इनमें से 65.50 लाख घरों को पिछले साल 12 दिसंबर तक पूरा कर लिया गया. यह जानकारी आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री कौशल किशोर ने पिछले महीने लोकसभा में दी थी.
2022-23 के बजट में पीएमएवाई (शहरी) के लिए 28,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए मंत्रालय अधिक धन की मांग कर रहा है.
मंत्रालय ने आवास एवं शहरी मामलों की स्थायी समिति को सौंपी गई एक कार्रवाई रिपोर्ट में बताया था कि 2022-23 और 2023-24 के लिए ‘लगभग 82,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त’ आवश्यकता होगी.
पिछले साल मार्च में संसद में पेश एक रिपोर्ट में स्थायी समिति ने कहा कि वित्त मंत्रालय ‘फिलहाल केवल 28,000 करोड़ रुपये आवंटित करने पर तैयार हुआ है और उसने आश्वास्त किया है कि बाद के वर्षों में शेष धनराशि धीरे-धीरे आवंटित की जाएगी.’
पीएमएवाई (ग्रामीण) के मामले में 2.92 करोड़ घरों को पूरा करने की समयसीमा मार्च 2022 थी. लेकिन अब इसे सीमा मार्च 2024 तक बढ़ा दिया गया है. दिसंबर 2022 के अंत तक कुल 2.10 करोड़ घरों का निर्माण पूरा हो चुका है.
सीमावर्ती गांवों को मजबूत करने की जरूरत
वित्त मंत्री ने पिछले बजट के दौरान उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की घोषणा ऐसे समय पर की थी जब पूर्वी लद्दाख में गतिरोध चल रहा था और इसके अलावा चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब ‘आदर्श गांव’ विकसित करने में जुटा था.
सीतारमण ने अपने भाषण में रेखांकित किया कि इस कार्यक्रम के तहत ‘गांव में बुनियादी ढांचे का निर्माण, आवास, पर्यटन केंद्र, सड़क संपर्क, विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा के इंतजाम, दूरदर्शन और शैक्षिक चैनलों की डीटीएच सुविधा और आजीविका सृजन के लिए समर्थन देना शामिल होगा.’
यद्यपि योजना के लिए कोई स्पष्ट आवंटन निर्धारित नहीं किया गया था, लेकिन गृह मंत्रालय को आवंटित सीमा प्रबंधन निधि को 2021 में 1921.39 करोड़ रुपये से करीब 42 प्रतिशत बढ़ाकर 2,517.02 करोड़ रुपये कर दिया गया.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने कहा कि यूनिट लेवल पर यह सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं कि सीमावर्ती गांवों को बुनियादी ढांचा और सेवाएं उपलब्ध हों.
एक सूत्र ने बताया, ‘बतौर सेना हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि जब गांवों को हमारी जरूरत हो तो हम वहां मौजूद हों. इंसानों और जानवरों दोनों के लिए मेडिकल कैंप लगाने से लेकर, उन्हें आसानी से आने-जाने के लिए सड़क उपलब्ध कराने और उनकी शिक्षा पर ध्यान देने तक सेना हर सुविधा मुहैया कराने की कोशिश करती है.’
सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण में तेजी लाने के लिए रक्षा मंत्रालय अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर काम कर रहा है क्योंकि इससे न केवल स्थानीय आबादी को लाभ होता है बल्कि सशस्त्र बलों को भी आसानी से आवाजाही की सुविधा मिलती है.
पिछले साल, रक्षा मंत्रालय ने 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सड़कों के विभिन्न वर्गों में 75 स्थानों पर सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को सड़क किनारे सुविधाएं स्थापित करने को मंजूरी दी थी.
बीआरओ कैफे के रूप में जाने जाने वाले इन सुविधाओं का निर्माण लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के दूरदराज के इलाकों सहित सीमावर्ती गांवों में पर्यटकों को आकर्षित करने और स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से किया गया है.
सेना के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सीमावर्ती गांवों से पलायन को रोकना देश के सुरक्षा हित में है, जो यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे सरकार के साथ कई स्तरों पर उठाया जा चुका है.
सूत्रों ने कहा कि सीमावर्ती गांवों की बात करें तो नागरिक आबादी रक्षा की पहली पंक्ति है क्योंकि स्थानीय लोग ही सबसे पहले चीन की तरफ से घुसपैठ के प्रयासों को देखते-जानते हैं. इसके अलावा, क्षेत्र पर दावा जताने के लिए भी नागरिक बस्तियां महत्वपूर्ण हैं, यही वजह है कि चीन एलएसी के साथ लगते इलाकों में गांव बसा रहा है.
चीन के सीमावर्ती डिफेंस विलेज—जिन्हें जियाओकांग (मध्यम समृद्ध) कहा जाता है—अच्छी सड़कों, बिजली और इंटरनेट सुविधाओं से लैस हैं. यहां सैन्य और नागरिक दोनों ही उद्देश्यों से लगभग 1,000 लोगों को आसानी से समायोजित किया जा सकता है. अकेले अरुणाचल प्रदेश से चीन के कब्जे वाले तिब्बत के साथ लगती 1,046 किलोमीटर लंबी एलएसी के 10 किमी के दायरे में करीब 600 गांव हैं.
रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि इधर भारतीय हिस्से में लोग इस दुर्गम इलाके में बुनियादी ढांचे के अभाव के कारण एलएसी के आसपास के गांवों से लोग शहरों की ओर चले गए हैं, एक मुद्दा 2013 में ही पूरे जोर-शोर से उठाया गया था.
भारतीय पक्ष के गांवों में मोबाइल फोन कनेक्टिविटी जैसी अन्य आवश्यकताओं के अलावा चिकित्सा और स्वच्छ पेयजल आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. यही नहीं उनके मोबाइल फोन सीमावर्ती क्षेत्रों का चीनी नेटवर्क पकड़ते हैं.
2021 में पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास चुशुल के ग्रामीणों ने बुनियादी ढांचे के विकास, 4जी कनेक्टिविटी और खानाबदोशों को हॉट स्प्रिंग्स से पैंगोंग त्सो तक पारंपरिक चारागाह पर अपने पशुओं को चराने की अनुमति देने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष गुहार लगाई थी.
ग्रामीणों ने फाइबर ऑप्टिक केबल के अलावा चुशूल के नौ गांवों में से प्रत्येक के लिए 4जी टावर की मांग की थी.
गौरतलब है कि 2020 में पूर्वी लद्दाख में तनातनी बढ़ने बाद चीन ने जो पहला काम किया, वो सुचारू संचार संपर्क सुनिश्चित करने के लिए अपनी तरफ फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाना ही था.
ग्रामीणों ने बेहतर चिकित्सा और शिक्षा सुविधाओं के साथ बिजली आपूर्ति भी व्यवस्थित करने की मांग की थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लेह की ओर पलायन न करें.
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