नई दिल्ली: विभिन्न सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र सरकार को अपनी प्रोडक्शन लिंक्ड इंटेसिव (पीएलआई) स्कीम का विस्तार चमड़ा, खिलौने और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे नए क्षेत्रों में करना चाहिए.
यद्यपि सामान्यत: योजना के असर सकारात्मक रहने पर आम सहमति के बीच व्यवसायों और विशेषज्ञों का मानना है कि योजना अवधि बढ़ाने, प्रशासनिक अक्षमताओं और अनुपालन बोझ घटाने और व्यावसायिक आकस्मिकताओं के मामले में आगे बढ़ने का रास्ता प्रदान किए जाने से इस प्रोग्राम की प्रभावकारिता में और ज्यादा सुधार होगा.
2020 में केंद्र सरकार ने 14 सेक्टरों के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये (यानी करीब 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के कुल इंटेसिव आउटले के साथ पीएलआई यानी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शुरू की थी. पहली पीएलआई योजना की घोषणा दो चरणों में की गई थी—मार्च 2020 में तीन क्षेत्रों के लिए और फिर बाद नवंबर 2020 में अन्य दस क्षेत्रों को इससे जोड़ा गया. सितंबर 2021 में पीएलआई योजना को ड्रोन और ड्रोन कंपोनेट के सेक्टर तक विस्तारित किया गया.
पीएलआई से जुड़े 14 क्षेत्रों में मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का निर्माण, ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट, फार्मास्यूटिकल्स, दवाएं, स्पेशिएलटी स्टील, दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, व्हाइट गुड्से (एसी और एलईडी आदि), खाद्य उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, एडवांस्ड केमेस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी, और ड्रोन और ड्रोन कंपोनेंट शामिल हैं.
पीएलआई योजनाओं का मुख्य उद्देश्य उभरते (नए व्यवसायों) और रणनीतिक क्षेत्रों की मौजूदा मैन्यूफैक्चरिंग क्षमताएं बढ़ाकर घरेलू विनिर्माण को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है, विनिर्माण में वैश्विक चैंपियन बनाना और सस्ते आयात पर अंकुश लगाना है. साथ ही आयात बिल कम करना, निर्यात क्षमता में वृद्धि करना और रोजगार पैदा करना भी इस योजना का लक्ष्य है.
मार्च 2022 में लोकसभा में एक लिखित जवाब में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री ने बताया था, ‘अब तक, 11 योजनाओं के तहत 1.89 लाख करोड़ रुपये से अधिक के अनुमानित निवेश वाले 489 आवेदनों को मंजूरी दी गई है.’ उन्होंने यह भी कहा कि 14 क्षेत्रों में लागू पीएलआई योजनाओं से अगले पांच वर्षों में लगभग 60 लाख नए रोजगार सृजित किए जा सकते हैं.
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बजट से उम्मीदें
एक टैक्स, ऑडिट और सलाहकार फर्म केपीएमजी इंडिया में पार्टनर इनडायरेक्ट टैक्स अभिषेक जैन ने कहा कि पीएलआई योजनाओं ने भारत को आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने में मदद करने के साथ उसे दुनियाभर के अन्य विनिर्माण स्थानों के साथ लागत-प्रतिस्पर्धी बनने का मौका दिया है, और ग्लोबल प्लेयर्स को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया है.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से प्रदान किए जा रहे अन्य निवेश-संचालित प्रोत्साहनों जैसे बॉन्डेड मैन्युफैक्चरिंग (स्कीम) और एफटीपी (विदेश व्यापार नीति) से जुड़े प्रोत्साहनों और राज्य प्रोत्साहनों के साथ पीएलआई ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद की है.
जैन ने दिप्रिंट को बताया, ‘अब तक कुछ क्षेत्रों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) (योजना) की दो किस्तों को लॉन्च किया गया है, जो घरेलू और विदेशी दोनों मैन्युफैक्चरर को निवेश प्रतिबद्धताओं के लिए आकृष्ट करने में सफल रही हैं, और इससे भारत मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के अपने उद्देश्यों को हासिल करने के करीब पहुंचा है.’
पहले दौर में मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और इलेक्ट्रिक कंपोनेंट, फार्मास्युटिकल्स (क्रिटिकल की स्टार्टिंग मैटेरियल्स/एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स), और मेडिकल डिवाइस मैन्युफैक्चरिंग के लिए लागू पीएलआई योजना इन क्षेत्रों में भारत की उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने, निर्यात-उन्मुख उत्पादन को प्रोत्साहित करने और आयात पर निर्भरता को घटाने में काफी हद तक सक्षम रही है.
साथ ही जैन ने यह भी कहा कि आगे चलकर सरकार ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं और जैव ईंधन के लिए आवश्यक उपकरणों के निर्माण जैसे नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े क्षेत्रों के समर्थन के लिए पीएलआई योजना के विस्तार पर विचार कर सकती है. उन्होंने कहा, ‘यह कुछ हद तक कच्चे तेल के आयात पर भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता घटाने में मददगार होगा. इसके अलावा, खिलौने और फर्नीचर क्षेत्रों के लिए भी पीएलआई योजना लाई जा सकती है, खासकर यह देखते हुए कि इन क्षेत्रों के लिए बाजार मुख्यत: आयात पर निर्भर है.’
कुछ इसी तरह की राय जताते हुए भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने आगामी बजट में नए मेगावाट आकार के टर्बाइनों (3 से 5 मेगावाट) के विकास के लिए पवन टरबाइन निर्माताओं और कंपोनेंट मैन्यूफैक्चरर के लिए भी पीएलआई के विस्तार की मांग की है.
उद्योग निकाय ने सरकार से कंपोनेट सेक्टर के आधुनिकीकरण और इसे और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए 5 प्रतिशत के ब्याज सबवेंशन पर विचार करने के लिए भी कहा है.
बजट पूर्व वित्त मंत्रालय को भेजी अपनी सिफारिशों में सीआईआई ने कहा है, ‘यह कपड़ा उद्योग के लिए टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड (टीयूएफ) के तहत कपड़ा उद्योग को प्रदान किए जाने वाले 5 प्रतिशत के इंटरेस्ट सबवेंशन की तरह होगा, जिसका उपयोग क्षेत्र में आधुनिकीकरण और पूंजी निवेश के लिए किया जाता है.’
इस बारे में पूछे जाने पर पीएलआई योजनाओं को सफल बनाने के लिए इसमें और क्या सुधार किए जा सकते हैं, जैन ने कहा कि पीएलआई नीति ढांचे को इंडस्ट्री प्लेयर ने काफी अच्छी तरह स्वीकारा है, अधिकांश पीएलआई योजनाएं निवेश योजना और प्रोडक्ट-मिक्स रेशियो में बदलाव जैसी व्यावसायिक आकस्मिकताओं के मामले में आगे का रास्ता नहीं दिखाती हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह कंपनियों के लिए बहुत भ्रम पैदा करता है कि पीएलआई आवेदन के हिस्से के तौर पर प्रतिबद्धता में किसी तरह के बदलाव के मामले में उनका पीएलआई भुगतान कैसे प्रभावित होगा. सरकार इन क्षेत्रों के बारे में सुस्पष्टता पर विचार कर सकती है, और आगामी पीएलआई योजनाओं को अधिक लचीला बनाने पर भी विचार कर सकती है.’
डेलॉयट टच तोमास्तू इंडिया के एक हालिया सर्वेक्षण—जिसमें भारत में 10 उद्योगों से जुड़े 181 सीएक्सओ (लीडरशिप पोजिशन वाले कॉरपोरेशन एक्जीक्यूटिव) की भागीदारी रही—के मुताबिक 70 प्रतिशत सीएक्सओ ने महसूस किया कि सरकार की पीएलआई स्कीम सीधे लाभकारी साबित हुई हैं. वहीं 25 प्रतिशत की राय में इनकी भूमिका तटस्ट रही है, जबकि मात्र 5 फीसदी का मानना है कि उनका कोई असर नहीं हुआ है.
इसके अलावा, 60 उत्तरदाताओं ने वकालत की कि आने वाले सालों में इन प्रोत्साहनों को बढ़ाना उनकी उत्पादन क्षमता को और बढ़ाएगा.
डेलॉयट ने अपने सर्वेक्षण में कहा, ‘उत्तरदाताओं ने इस बात के भी संकेत दिए कि सप्लाई चेन को मजबूत करने और प्रशासनिक अक्षमताओं और अनुपालन बोझ को घटाने से यह प्रोग्राम और प्रभावकारी साबित हो सकता है.’
योजना में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं, इस पर 59 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इस पर जोर दिया कि पीएलआई को अतिरिक्त सालों के लिए बढ़ाने से उनकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी. खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े 71 प्रतिशत और दूरसंचार और प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़े 70 प्रतिशत लीडर्स इससे सहमत नजर आए.
फिलहाल, अधिकांश पीएलआई योजनाओं के लिए समयावधि पांच साल है.
सर्वे के मुताबिक, ‘बढ़ी पीएलआई कवरेज को 56 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने औद्योगिक निर्यात को बढ़ावा देने की एक सबसे प्रभावी रणनीति माना. रासायनिक क्षेत्र से जुड़े 72 प्रतिशत और कपड़ा उद्योग से जुड़े 80 प्रतिशत बिजनेस लीडर्स ने भी इसका समर्थन किया.’
साथ ही इसमें यह बात भी सामने आई, ‘सभी क्षेत्रों में अधिकांश उत्तरदाताओं ने…अन्य क्षेत्रों को शामिल करने के लिए पीएलआई प्रोग्राम के दायरे को और ज्यादा बढ़ाने की सलाह दी…लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर उत्तरदाताओं ने योजना के तहत कौशल के मुद्दे पर गौर करने और आरएंडडी को प्रोत्साहित करने को इसके दायरे में लाने की उम्मीद नहीं की.’
लगभग 39 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि पीएलआई योजना को अतिरिक्त रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करना चाहिए और 43 प्रतिशत ने कहा कि इसे रिसर्च एंड डेवलपमेंट का समर्थन करना चाहिए.
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)
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