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Friday, 22 November, 2024
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विरोध से आहत बीएचयू के संस्कृत के प्रोफेसर फिरोज खान गए छुट्टी पर, नहीं मान रहे छात्र

विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि वह हालात सामान्य होते ही वापस आएंगे. फिरोज खान ने जयपुर के पास बगरू अपने घर जाने के लिए छुट्टी ली है.

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लखनऊ : संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के साहित्य विभाग में हाल ही में नियुक्त किए गए असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान बढ़ते विवाद के कारण छुट्टी पर चले गए हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि वह हालात सामान्य होते ही वापस आएंगे. बता दें कि इस विभाग में पिछले 14 दिनों से तमाम छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं और फिरोज खान की नियुक्ति पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

फैकल्टी के डीन प्रो. विंदेश्वरी मिश्र ने दि प्रिंट को बताया कि फिरोज खान एचओडी को जानकारी देकर छुट्टी पर गए हैं और जल्द ही वापस आएंगे. उन्होंने घर जाने के लिए छुट्टी ली है. वह जयपुर के पास बगरू के रहने वाले हैं. डीन ने बताया कि विरोध कर रहे छात्रों से संवाद चल रहा है. जल्द ही समाधान निकलने की उम्मीद है.

बता दें कि धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में संकाय के छात्र कई दिनों से धरने पर बैठे हैं. 7 नंवबर को शुरू हुए इस धरने पर छात्रों का कहना है फिरोज खान की नियुक्ति में धांधली हुई है.


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उनका इंटरव्यू और पूरा प्रॉसेस फिरोज खान के हिसाब से तय किया गया है. दूसरा आरोप ये है कि जब बीएचयू के शिलालेख पर लिखा है कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में गैर हिंदू न ही अध्ययन कर सकता है और न ही अध्यापन तो एक मुस्लिम की नियुक्ति क्यों की गई.

विरोध कर रहे छात्रों का तर्क

धरना दे रहे छात्र कृष्ण कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि फिरोज खान की नियुक्ति अधिनियमों के खिलाफ है और ये धरना तब तक चलेगा जब तक उनकी नियुक्ति पर जांच नहीं हो जाती है. कृष्ण के मुताबिक, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में धर्म को जिया जाता है. इसमें शास्त्री, पुरोहित, आचार्य से जुड़ी पढ़ाई होती है. बाहर के लोगों में बड़ा कन्फ्यूजन है कि इस विभाग में केवल संस्कृत भाषा की पढ़ाई होती है. जबकि ऐसा नहीं है. इसमें हिंदू धर्म से जुड़े रीति-रिवाज बताए जाते हैं. ऐसे में दूसरे धर्म के व्यक्ति को इसकी कैसे जानकारी होगी और क्या वह इन संस्कारों को अपनाएगा.

बीएचयू के प्राॅक्टर ओपी राय का कहना है कि ये विवाद जल्द सुलझने की उम्मीद है. उन्होंने प्रदर्शन कर रहे छात्रों को काफी समझाने की कोशिश की है. उन्हें बताया गया है कि फिरोज खान की नियुक्ति नियमानुसार ही हुई है.

यूनिवर्सिटी की ओर से फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए साफ कहा गया था, ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि यह विश्वविद्यालय जाति, धर्म, लिंग और संप्रदाय आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण हेतु सभी को अध्ययन व अध्यापन के समान अवसर देगा.’ लेकिन इसके बावजूद छात्र अपनी मांग पर अड़े हुए हैं. गौरतलब है कि प्राचीन शास्त्रों, ज्योतिष और वेदों व संस्कृत साहित्य को पढ़ाने वाले इस संकाय की स्थापना 1918 में हुई थी.

एबीवीपी ने लगाए आरोप

एबीवीपी से जुड़े छात्रों का कहना है कि डॉ. फिरोज खान के साथ 8 और छात्र इस पद के लिए साक्षात्कार देने आए थे. लेकिन डॉ. फिरोज खान को जान पहचान का लाभ देकर उन्हें ही योग्य ठहराया गया. दूसरे छात्रों को जहां, 10 में से 0-2 तक नंबर दिए गए वहीं डॉ. फिरोज खान को 10 में से 10 नंबर. संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के विभागाध्यक्ष उमाकांत चतुर्वेदी इससे पहल ‘राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान’ के जयपुर कैंपस में थे. यहीं से डॉ. फिरोज खान ने भी संस्कृत की पढ़ाई पूरी की है. खान उनके बेहद प्रिय शिष्यों में शुमार हैं. नियुक्ति को लेकर साक्षात्कार के लिए जो पैनल बुलाया जाता है उस पैनल के लिए विशेषज्ञों के नाम विभागाध्यक्ष को ही तय करने होते हैं. जाहिर है, संस्कृत विद्या धर्म विभाग संकाय के विभागाध्यक्ष उमाकांत चतुर्वेदी ने ही साक्षात्कार के लिए पैनल को तय किया होगा. छात्र सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह संभव है कि किसी विषय में डॉक्टरेट करने वाला छात्र प्रोफेसरशिप के लिए दिए जाने वाले साक्षात्कार में महज ‘जीरो’ नंबर पाए? और क्या यह भी संभव है कि एक छात्र को 10 में से 10 नंबर मिल जाएं.


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फिरोज खान ने बंद किया फोन

फिलहाल फिरोज खान ने अपना फोन बंद कर रखा है और मीडिया से दूरी भी बना ली है. इससे पहले मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि उनकी नियुक्ति पूरे प्रॉसेस के तहत हुई है. उन्हें अंदाजा नहीं था कि इतना बड़ा बवाल खड़ा हो जाएगा. बीते 13 नवंबर को दिप्रिंट से बातचीत में प्रोफेसर खान ने बताया था कि, ‘जब मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में दाखिला लिया था, तब मैं अपने बैच में इकलौता मुसलमान था. मुझे कभी मुसलमान टाइप का फील नहीं हुआ. लेकिन बीचएयू में नियुक्ति होने पर मुझे महसूस कराया जा रहा है कि मुसलमान होने के नाते मैं एक खास विषय नहीं पढ़ा सकता. मेरे माता-पिता को जब ये खबर पता चली तो रातभर रोते रहे. मुझे अपमान महसूस हुआ है.’

बता दें कि जयपुर से 32 किलोमीटर दूर बगरू गांव के रहने वाले फिरोज के पिता गौशालाओं के लिए भजन गाते हैं. उनके पिता ने भी संस्कृत की पढ़ाई की है और उनके छोटे भाई ने भी 12वीं तक संस्कृत ही पढ़ी है. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर में वो तीन साल गेस्ट फैकल्टी के तौर भी पढ़ा चुके हैं. यहीं से उन्होंने पिछले साल संस्कृत में पीएचडी कंप्लीट की है लेकिन अब बीएचयू में हुए इस पूरे विवाद से वह और उनका परिवार डरा हुआ है.

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