नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) पर हस्ताक्षर नहीं करने का फैसला नये समझौते से होने वाले लाभ-हानि की सोच-समझकर की गई गणना के आधार पर लिया और खराब समझौते से अच्छा समझौता नहीं करना था.
भारत वर्षों तक वार्ता करने के बाद भी मूल चिंताएं दूर नहीं होने पर हाल ही में चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी से बाहर आ गया था. इस दौरान प्रधानमंत्री ने बैंकॉक में कहा था कि प्रस्तावित समझौता सभी भारतीयों के जीवन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.
EAM on RCEP: What we saw in Bangkok recently was clear-eyed calculation of the gains & costs of entering new arrangements. We negotiated till the very end. But knowing what was on offer we took a call & that call was that no agreement at this time is better than a bad agreement pic.twitter.com/TQJvXQSyUx
— ANI (@ANI) November 14, 2019
जयशंकर ने चौथे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने के भारत के फैसले का जिक्र किया और कहा कि भारत ने बहुत अंत तक बातचीत की और फिर, प्रस्ताव के बारे में सोचने समझने के बाद फैसला लिया.
उन्होंने कहा, ‘और तय हुआ कि इस समय खराब समझौते से अच्छा है कि कोई समझौता न किया जाए. यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि आरसीईपी पर फैसले का मतलब क्या है. इसका मतलब ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ से कदम वापस खींचना नहीं है, जोकि किसी भी मामले में दूर तक और समकालीन इतिहास में गहराई से निहित है.’
जयशंकर ने कहा, ‘हमारा सहयोग काफी दूर तक फैला हुआ है और यह एक फैसला हमारी बुनियादों को कमजोर नहीं करेगा. भारत का आरसीईपी के कुल 15 देशों में से 12 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता है. न ही इसका हमारी भारत-प्रशांत पहुंच से वास्तव में कोई संबंध है जोकि आरसीईपी की सदस्यता से काफी आगे है.’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमने बैंकॉक में जो देखा वह नये समझौते में प्रवेश से होने वाले लाभ-हानि की सोच-समझकर की गई गणना थी.’