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Friday, 22 November, 2024
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फ़ीस बढ़ने के बाद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सबसे महंगा होगा जेएनयू में रहना-खाना

हालांकि, जेएनयू ईसी ने हॉस्टल फ़ीस घटा दी है, लेकिन अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों से तुलना करें तो बढ़ी फ़ीस के बाद जेएनयू में रहना-खाना सबसे महंगा होगा.

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नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्रों द्वारा बढ़ाई गई हॉस्टल फ़ीस के ख़िलाफ़ हो रहा विरोध दो हफ्तों से जारी है. विरोध के बाद आंशिक तौर पर कम की गई हॉस्टल फ़ीस के बावजूद छात्रों का कहना है कि बढ़ी हुई फ़ीस की वजह से 40 प्रतिशत छात्रों को पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है. ज़ाहिर है, आंशिक तौर पर घटाई गई फ़ीस के फ़ैसले से छात्रा खुश नहीं हैं.

वर्तमान में हॉस्टल में रहने वाले छात्रों को सालाना 27,600 से 32,000 रुपए के बीच ख़र्च करने पड़ते है (इसमें 10/20 रुपए का रूम का किराया + 2,200 का प्रशासनिक चार्ज + 300 का सालाना चार्ज + 2,500 से 3000 हर महीने मेस का चार्ज शामिल होता है). रहने और खाने के लिए पहले जहां छात्रों को 27,600 से 32,000 रुपए के बीच ख़र्च करने पड़ते थे, फ़ीस बढ़ने के बाद वो 61,000 हो जाएगा (इसमें 300/600 रूम का किराया + 1700 हर महीने सर्विस चार्ज + 2200 प्रशासनिक चार्ज + 300 रुपए सालाना + 2500 से 3000 का मेस चार्ज इसमें शामिल होगा).

ऐसे में अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों से तुलना करने पर बढ़ी हुई फ़ीस के साथ जेएनयू सबसे महंगे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शामिल हो जाता है. बढ़ी फ़ीस में जो बात जेएनयू को सबसे महंगा बना रही है वो हर महीने लगने वाला 1700 रुपए का सर्विस चार्ज है. बाकी के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में या तो ये चार्ज नहीं लगता या इसे मामूली से हॉस्टल फ़ीस में शामिल कर लिया जाता है.


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अगर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू), उत्तर प्रदेश स्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू), पश्चिम बंगाल स्थित विश्वभारती यूनिवर्सिटी, दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया, दक्षिण भारत स्थित पुडुचेरी और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी और रायपुर स्थित घासीदास यूनिवर्सिटी जैसी केंद्रीय यूनिवर्सिटी से जेएनयू की तुलना करें तो बढ़ी हुई फ़ीस के बाद जेएनयू के छात्रों को इनसे बहुत ज़्यादा पैसे देने पड़ेंगे.

चित्रण : सोहम सेन के द्वारा/ दिप्रिंट

जैसे की आपको बताया जा चुका है कि अभी जेएनयू के छात्र सालाना 2,740 से 2,600 के बीच हॉस्टल फ़ीस भरते हैं, इसके अलावा 25,000 से 30,000 तक उनके मेस का ख़र्चा आता है. दोनों को मिला दें तो ये रकम 27,600 से 32,000 के बीच बैठती है. बढ़ी फ़ीस के बाद ये रकम 55,000 से 61,000 की हो जाएगी.

हॉस्टल फ़ीस में बदलावों के बाद जेएनयू लगभग दिल्ली यूनिवर्सिटी के जितना महंगा हो जाएगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी में कई हॉस्टल हैं जिनकी फ़ीस अलग-अलग है. यहां हॉस्टल और मेस का मिलाकर सालाना औसत ख़र्चा 40,000 से 55,000 रुपए के बीच बैठता है.

वहीं, पश्चिम बंगाल की विश्वभारती यूनिवर्सिटी अपने छात्रों से सालाना 30,400 से लेकर 21,600 तक वसूलती है. इसमें मेस और रहने का ख़र्च शामिल होता है.

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों को इसी के लिए सालाना लगभग 28,500 की रकम अदा करनी होती है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी बीएचयू से सस्ता है क्योंकि यहां रहने और खाने के लिए सालाना करीब 27,400 रुपए देने होते हैं. एएमयू तो और सस्ता है क्योंकि यहां सालाना महज़ 14,400 का ख़र्च लगता है. वहीं जामिया में एक साल रहने और खाने के लिए छात्रों को 35,000 रुपए देने होते हैं.

दक्षिण भारत की हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी पर ग़ौर करें तो ये और सस्ता है. इसमें हॉस्टल फ़ीस के तौर पर हर सेमेस्टर में 500 रुपए यानी सालाना 1000 रुपए लगते हैं. मेस चार्ज सालाना 12,000 रुपए का है और अगर दोनों को जोड़ दें तो ये रकम एक साल में करीब 13,000 के करीब बैठती है. पुडुचेरी यूनिवर्सिटी में एक साल में रहने और खाने के 15,200 से 12,000 तक लगते हैं.


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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित गुरू घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रहने खाने का सालाना 22,000 से 25,000 तक देना पड़ता है. इस बीच जेएनयू में 28 अक्टूबर से हॉस्टल मैन्युअल में हुए बदलावों का विरोध हो रहा है. यूनिवर्सिटी द्वारा 2016-17 और 2017-18 में जारी किए गए सालाना रिपोर्ट का हवाला देते हुए छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि अगर बढ़ी हुई फ़ीस वापस नहीं ली गई तो आर्थिक रूप से पिछड़े 40 प्रतिशत छात्रों को जेएनयू छोड़ना पड़ सकता है.

जेएनयू के छात्र क्यों विरोध कर रहे हैं

दरअसल, 2016-17 और 2017-18 की जेएनयू की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक जेएनयू में 40 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिनके परिवार की सालाना आया 12,000 रुपए के करीब है. इसी का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि ये छात्र इतने पैसे कहां से लाएंगे. ऐसे में जेएनयू एक्जिक्यूटिव काउंसिल ने अपनी मीटिंग के बाद हॉस्टल की जो फ़ीस घटाई है उसका फायदा गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) वाले छात्रों को ही होगा.

जो जूनियर रिसर्च फेलो या सीनियर रिसर्च फेलो नहीं हैं या जिन्हें कोई स्कॉलरशिप नहीं मिलती, उन्हें भी घटाई गई फ़ीस का फ़ायदा मिलेगा. हालांकि, सर्विस चार्ज वापस लिए जाने से लेकर हॉस्टल टाइमिंग और मेस में ड्रेस कोड जैसी कुछ और बाते हैं जिसे लेकर छात्रों का प्रदर्शन जारी रहने की आशंका है.

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