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Friday, 22 November, 2024
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खराब हवा में सांस लेते इंसान, डूबती नदियां और तैरते न्यायाधीश

एनजीटी ने सरकारों को या संस्था को डांटा यह बात सभी जानते हैं लेकिन अंतिम रूप से आदेश क्या दिया इस पर बात नहीं हो पाती, एनजीटी ने जुर्माना किया यह सभी जानते हैं लेकिन कितना जुर्माना वसूला गया इस पर बात नहीं हो पाती.

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अदालत का अपमान करने की नीयत नहीं है. बस इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि पर्यावरण के मामलों में ‘माई लार्ड’ को क्या हो जाता है? देश की शीर्ष अदालतें या तो नेताओं की तरह भाषण देती नजर आती हैं या फिर इतनी देरी से निर्णय देती है कि उसमें न्याय की भावना नजर ही नहीं आती.

बानगी देखिए – दिल्ली प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘कि हम लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते, हरियाणा और पंजाब को तुरंत ही पराली जलने से रोकना होगा’. अब सोच कर देखिए कि न्यायाधीश, केजरीवाल और मनोज तिवारी की बातों और भाषा में क्या फर्क है, सभी यही कह रहे हैं. जबकि दिल्ली की त्राहिमाम करती जनता अदालत से सख्त आदेश चाहती है, हरियाणा – पंजाब के मुख्य सचिवों को दो दिन के लिए सलाखों के पीछे डाल दीजिए फिर देखिए कैसे पराली नियंत्रण में आती है. वैसे यह अलग विवाद का विषय है कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली जिम्मेदार है या गाड़ियां या फिर लगातार चलता निर्माणकार्य.


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पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्यावरणीय मामलों पर दिए गए निर्णय यह आशंका पैदा करते हैं कि न्यायाधीशों पर कोई दबाव है.

चार धाम परियोजना

उत्तराखंड में चारधाम परियोजना बड़े जोर – शोर से चल रही हैं. तमाम हो–हल्ले के बावजूद ना सरकार ने काम रोका नाही अदालतों ने इस पर रोक लगाई. अब जब शिवालिक श्रेणी के कई पहाड़ों को काटकर सड़क चौड़ी कर दी गई. सैकड़ों टन मलबा नीचे बहती भागीरथी- अलकनंदा- मंदाकिनी में डाला जा चुका है तब सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावणविद् रवि चोपड़ा की अगुआई में एक समिति बना दी. यह समिति चारधाम परियोजना से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का आकलन करेगी. लेकिन नुकसान तो हो चुका है. यहीं समिति पिछले साल पहले बनाई जा सकती थी जब इस परियोजना पर काम शुरू हो रहा था.

दरअसल होता यह है कि पर्यावरण संबंधी किसी भी अपील को पहले एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अभिकरण के समक्ष ले जाना होता है. वहां मामला लंबा चलता है और एनजीटी पर्यावरणीय मुद्दों पर आदेश देने से ज्यादा बयान देने में दिलचस्पी रखता है. क्योंकि एनजीटी ने सरकारों को या संस्था को डांटा यह बात सभी जानते हैं लेकिन अंतिम रूप से आदेश क्या दिया इस पर बात नहीं हो पाती इसी तरह एनजीटी ने जुर्माना किया यह सभी जानते हैं लेकिन कितना जुर्माना वसूला गया इस पर बात नहीं हो पाती.

बहरहाल एनजीटी के चक्र से निकलने के बाद ही यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के सामने जाता है. चारधाम परियोजना के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने यह समिति बनाने के लिए राष्ट्रीय हरित अभिकरण के 26 सितंबर 2018 के आदेश में संशोधन किया. रवि चोपड़ा की अध्यक्षता वाली इस समिति में अहमदाबाद स्थित भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, देहरादून के भारतीय वन्य जीव संस्थान, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय एवं सीमा सड़क मामलों से सम्बंधित रक्षा मंत्रालय के निदेशक स्तर के प्रतिनिधि को शामिल हैं.

आरे जंगल और अदालती आदेश

मुंबई स्थित आरे जंगल के कटने पर कोर्ट का आदेश तब आया जब तयशुदा पेड़ काटे जा चुके थे. जबकि मामला पहले ही अदालत के पास था तो पेड़ कटने के बाद नख – दंत विहीन आदेश देने का क्या मतलब?


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मध्यप्रदेश के महेश्वर में नर्मदा की धारा में खड़े होकर आंदोलन कर रहे लोगों की निगाहें भी शीर्ष अदालत की ओर टिकी थी. लेकिन अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया, संभवत डैम भरने और कुछ बलिदानों के बाद अदालत का ध्यान इस ओर जाएगा. यह एक लंबी सूची है, टिहरी, दामोदर, सरदार सरोवर आदि बांधों के विस्थापित आज भी अदालतों की ओर ताक रहे हैं. इसमें खनन, जंगल, भूमि अधिग्रहण जैसे मामले जोड़ लिजिए तो यह सूची कभी ना खत्म होने वाली सूची बन जाती है.

बहरहाल दिल्ली की हवा ‘बेहद खराब’ से ’खराब’ की श्रेणी में आ गई है और दिल्ली के नेता जनता से खुश हो जाने की अपील कर रहे हैं. केजरीवाल और मनोज तिवारी को आने चुनाव में वोट चाहिए. लेकिन अदालतों का स्वार्थ समझ से परे है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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