करतारपुर कॉरिडोर से एक बार फिर से पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद के शुरू होने का खतरा है.
कॉरिडोर के शुरुआत से पहले पाकिस्तान द्वारा जारी किए गए आधिकारिक वीडियो में तीन खालिस्तानी अलगाववादी नेताओं को दिखाया गया था जिसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले भी था.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इसे पाकिस्तान का छिपा हुआ एजेंडा बताया तो वहीं मोदी सरकार में सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की सरकार की तुलना में बड़ी शक्तियां इस परियोजना को आगे बढ़ा रही हैं.
प्रो-खालिस्तानी संगठन द्वारा रेफ्रेंडम 2020 और पाकिस्तान द्वारा उनकी मदद करने के आरोप लगते आए हैं. आईएसआई करतारपुर कॉरिडोर के जरिए पंजाब में आतंकवादी भेज सकता है जिससे घुसपैठ, ड्रग सप्लाई और मनी लॉन्ड्रिंग बढ़ सकती है.
आतंक का कॉरिडोर?
शनिवार को शुरू हुआ कॉरिडोर पंजाब के गुरूदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक श्राइन को पाकिस्तान स्थित करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब (करतारपुर साहिब) को जोड़ेगी. लंबे समय के इंतजार के बाद लाखों सिख श्रद्धालुओं का सपना पूरा होगा.
यह भी पढ़ें : कैसे भारत-पाकिस्तान तनाव और कूटनीतिक गतिरोध के बावजूद करतारपुर कॉरिडोर वार्ता जारी रही
लेकिन अभी भी सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई है और इस्लामाबाद-रावलपिंडी में बैठी सत्ता इसका गलत फायदा उठा सकती है.
इस कॉरिडोर के पीछे पाकिस्तानी सेना के होने की बात इससे पता चलता है कि पिछले साल कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू जनरल बाजवा से गले मिले थे. जिसके बाद उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर को खोलने की दिशा में काम कर रहा है.
पाकिस्तान की राजनीतिक सत्ता को जहां नई दिल्ली से बात करनी थी वहीं रावलपिंडी में बैठी पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय से करतारपुर प्रोजेक्ट पर ज्यादा तेजी दिखी.
जब ये रास्ता बन चुका है तब भारतीय जांच एजेंसियों को खबर मिल रही है कि करतारपुर श्राइन के पास आतंकवादी कैंप चलने की खबर मिल रही है.
यह कहना कि पाकिस्तान शायद एक खतरनाक योजना की साजिश रच रहा है. पाकिस्तान सेना 1971 के अपमान को नहीं भूली है और भारत के साथ गलत तरीके से खेलने की कोई कोशिश नहीं करेगी.
इमरान खान ने श्रद्धालुओं से कहा है कि करतारपुर साहिब आने वालों को पासपोर्ट की जरूरत नहीं है. इस फैसले को पाकिस्तानी सेना ने पलट दिया. इन पासपोर्ट को देखकर आईएसआई डाटाबेस बना सकता है जो पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों और अन्य लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है.
करतारपुर कॉरिडोर को पूरा करने में पाकिस्तान की तेजी से यह भी समझा जा सकता है कि कुछ ही महीने के भीतर रेफ्रेंडम 2020 जो कि खालिस्तानी नेताओं ने चलाया हुआ है वो आने वाला है. इन संगठनों की मांग है कि रेफ्रेंडम कराया जाए और एक अलग देश बनाया जाए. इन संगठनों के सफल होने की संभावना बहुत ही कम है लेकिन नई दिल्ली इनके द्वारा पहुंचा सकने वाले खतरों को नजरअंदाज नहीं कर सकता है.
स्लीपर सेल लगातार सीमा क्षेत्रों के जरिए घुसकर आतंकवादी घटना को अंजाम देने की कोशिश करते हैं. 1970 और 1980 में चले खालिस्तानी आंदोलन ने न केवल पंजाब की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया बल्कि देश के सामाजिक तानेबाने को भी ठेस पहुंचाया जिसे ठीक होने में दशकों लग गए.
यह भी पढ़ें : करतारपुर कॉरिडोर पर पाकिस्तान की ओर से जारी वीडियो में भिंडरावाले का पोस्टर, विवाद शुरू
एक बार अगर और ऐसी गतिविधि हुई तो अर्थव्यवस्था दशकों पीछे चली जाएगी.
दो स्तरीय योजना की जरूरत
तथ्य यह है कि नई दिल्ली के पास कॉरिडोर के इस प्रोजेक्ट को मानने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. इस कॉरिडोर से भारत के सिख श्रद्धालुओं की श्रद्धा जुड़ी हुई है.
सरकार को जो अभी करना चाहिए वो ये कि वो उच्च स्तरीय स्ट्रैटेजिक ग्रुप बनाए और दो मुद्दों पर काम करें. पहला, इस ग्रुप को पाकिस्तान द्वारा खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिशों के खिलाफ कदम उठाएं. ये काम पाकिस्तान इस कॉरिडोर के जरिए आतंकवादी भेजकर कर सकता है.
दूसरा, यह ग्रुप लंबे समय के लिए और फुलप्रूफ प्लान पर काम कर के करतारपुर साहिब पर अपना नियंत्रण कर सकता है और इसे भारतीय पंजाब का हिस्सा बना सकता है जो 1947 में हुए बंटवारे के पहले की स्थिति थी.
नरेंद्र मोदी सरकार जानती है कि करतारपुर साहिब की उपलब्धि उन्हें तुरंत राजनीतिक फायदा दे सकती है और इसके साथ ही इतिहास में भी जगह दिला सकती है. लेकिन सुरक्षा में कोई भी चूक खालिस्तानी आंदलोन जैसी भयानक साबित हो सकती है.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखक ऑर्गनाइज़र के पूर्व संपादक हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)