हरियाणा चुनाव के बाद बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल बनाने की है. खट्टर सरकार के 10 में से आठ मंत्रियों के हारने के बाद इस बार नए चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह के लिए खींचतान शुरू हो चुकी है. दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक लॉबिंग भी शुरू हो गई है.
अमित शाह, जेपी नड्डा, हरियाणा के प्रभारी अनिल जैन और मनोहर लाल खट्टर चारों के सामने मंत्रिमंडल निर्माण में जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण का संतुलन बनाए रखना खासा चुनौती भरा है. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के चार कद्दावर नेता कैप्टन अभिमन्यु सिंह, रामविलास शर्मा, ओपी धनकड़, करण देव कंबोज के हारने के बाद से नई जातीय लीडरशिप और नये चेहरों पर दांव लगाना पड़ रहा है.
सभी 22 जिलों से प्रतिनिधत्व देने पर विचार
बीजेपी में मंत्रिमंडल निर्माण की चर्चाओं में यह बात निकल कर आई है कि राज्य के सभी 22 जिलों को किस प्रकार से सरकार के प्रमुख पदों, मंत्रिमंडल, विधानसभा स्पीकर, उप स्पीकर, संसदीय सचिव तथा बोर्ड तथा कमीशन के चेयरमैन में स्थान दिया जाए.
चुनावी नतीजों में इस बार बीजेपी का 6 जिलों में खाता नहीं खुल पाया है जिसमें सिरसा, नूंह, मेवात, रोहतक, झज्जर तथा दादरी हैं. इन 6 जिलों में 2014 में बीजेपी ने 5 सीटें जीती थी लेकिन इस बार जाट विरोध तथा स्थानीय मुद्दों के कारण बीजेपी की इन सीटों पर हार हुई.
स्पीकर पद के लिए संघ की पृष्ठिभूमि से तलाश
सबसे पहले स्पीकर पद की बात करें. इस पर अनुभवी, वरिष्ठ तथा संघ पृष्ठभूमि से हिसार के डॉ. कमल गुप्ता और पंचकूला से ज्ञान चंद गुप्ता का नाम प्रमुख तौर पर चल रहा है. गठबंधन सरकार में स्पीकर का पद हमेशा से महत्वपूर्ण होता है. हरियाणा तथा अन्य राज्यों में यह अहम भूमिका निभाता रहा है.
हरियाणा के इतिहास में जाएं तो 1987 में चौधरी देवीलाल ने निर्दलीय विधायक हरमोहिंदर सिंह को स्पीकर बनाया था. उनके द्वारा तीन विधायकों को अयोग्य घोषित करने के कारण उस समय की ओम प्रकाश चौटाला सरकार अल्पमत में आ गई थी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दूसरे कार्यकाल में भी हरमोहिंदर सिंह फिर विधानसभा स्पीकर बने तथा उनके द्वारा ही हरियाणा जनहित कांग्रेस के पांच विधायकों को कांग्रेस में विलय कराके सरकार को बहुमत में ले आए थे.
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हरियाणा के प्रभावशाली क्षेत्रों में से मंत्री पद के संदर्भ में बात करें तो इस समय भिवानी, फरीदाबाद और गुड़गांव क्षेत्रों से किस को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा इसको लेकर खींचतान चल रही है. हरियाणा बनने के बाद से भिवानी का प्रतिनिधि मंत्रिमंडल में हमेशा ही रहा है लेकिन खट्टर सरकार में अपवाद स्वरूप किसी को भी मंत्रिमंडल में पिछली बार शामिल नहीं किया गया था. केवल एक साल के लिए घनश्याम सर्राफा को स्वास्थ्य विभाग दिया गया था. इस बार भी इनका दावा मजबूत माना जा रहा है क्योंकि तीन बार से वो इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
दक्षिण हरियाणा के गुड़गांव तथा फरीदाबाद से सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर और राव इंद्रजीत सिंह की भूमिका अपने क्षेत्र मे से मंत्रियों को चुनने में रहेगी. अहीरवाल क्षेत्र के दूसरी बार नांगल चौधरी से चुनाव जीतने वाले डॉ अभय सिंह यादव मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं. हालांकि सूत्र बताते हैं कि राव इंद्रजीत सिंह अभय सिंह के नाम का पुरजोर विरोध भी कर रहे हैं.
कृष्ण पाल गुर्जर के प्रभाव क्षेत्र तथा गुर्जर बहुल क्षेत्र में भाजपा ने 2014 में तीन सीटों से बढ़कर 2019 में 7 सीटों पर जीत हासिल की है. इस जीत में प्रमुख भूमिका निभाने के कारण कृष्ण पाल गुर्जर का प्रभाव हरियाणा मंत्रिमंडल में रहेगा. सूत्रों के अनुसार पृथला से जीते बीजेपी बागी निर्दलीय मैनपाल रावत को मंत्री यदि नहीं बनाया गया तो फिर कृष्ण पाल गुर्जर अपनी पसंद से जगदीश नैयर या सीमा त्रिखा का नाम दे सकते हैं. कृष्ण पाल गुर्जर अपनी परंपरागत विधानसभा तिगांव क्षेत्र से राजेश नागर को मंत्री बनाने का विरोध भी कर रहे हैं.
जातीय समीकरण साधने की चुनौती
मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय समीकरणों के बाद जातीय समीकरण किस प्रकार से संतुलित किया जाए यह चुनौती हरियाणा बीजेपी तथा संघ के सामने सबसे बड़ी नजर आ रही है. बीजेपी ने 2019 विधानसभा चुनाव में 19 जाट उमीदवार को टिकट दिए थे जिसमें केवल चार जाट उमीदवार ही जीतने में कामयाब हो पाए. 2014 के मंत्रिमंडल में दो प्रमुख जाट लीडर को रखा गया था लेकिन कैप्टन अभिमन्यु सिंह और ओपी धनखड़ के चुनाव हारने के कारण इस बार चार जाट विधायक (महिपाल धन्डा, प्रवीण डागर, कमलेश धन्डा, जेपी दलाल) में से किस को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए, इस पर आम सहमति नहीं बन पा रही है. फिर भी जेपी दलाल मुख्यमंत्री के करीबी विधायकों में तथा दक्षिणी हरियाणा का प्रतिनिधित्व करने के कारण वह रेस में सबसे आगे चल रहे हैं. रंजीत सिंह जो कि देवीलाल परिवार तथा जाट समुदाय से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुए हैं उनका नाम भी मंत्रिमंडल में चल रहा है.
दलित समुदाय में बवानीखेड़ा से दूसरी बार विधायक बने विशंभर वाल्मीकि का नाम सबसे आगे चल रहा है. वाल्मीकि समुदाय हरियाणा में बीजेपी समर्थक माना जाता रहा है. घरौंडा से दूसरी बार चुनाव जीते रोड समुदाय के हरविंदर कल्याण भी दौड़ में बने हुए हैं. जेजेपी की तरफ से भी जिन दो मंत्रियों का नाम आगे आ रहा है उसमें एक दलित भी हो सकता है.
इस बार 7 विधायक वैश्य समुदाय से जीत हासिल कर के आए हैं. ऐस में पलवल के दीपक मंगला का नाम प्रमुख तौर पर चल रहा है. दीपक मंगला ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता करण सिंह दलाल को हराकर पलवल में बीजेपी का पहली बार खाता खोलने में कामयाबी हासिल की है.
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पिछड़ी जातियों को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व के लिए दावेदार के तौर पर चार प्रमुख पिछड़ी जातियों विशेषकर यादव, गुर्जर, सैनी, कुम्हार जातियों से जीत कर आए विधायकों का नाम आगे चल रहा है. जगाधरी से अच्छे वोटों से चुनाव जीतने वाले विधानसभा अध्यक्ष कंवरपाल गुर्जर की दावेदारी भी बनी हुई है. इसमें लोकसभा चुनाव 2019 से पहले आईएनएलडी छोड़कर आए पूर्व राज्यसभा सदस्य तथा कुम्हार समुदाय से संबंधित हिसार जिले के रणबीर गंगवा की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है. अति पिछड़े समुदाय के राम कुमार कश्यप की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है.
ब्राह्मण समुदाय से जेजेपी के राम कुमार गौतम का नाम भी आगे चल रहा है. बीजेपी की तरफ से बल्लभगढ़ से मूलचंद शर्मा तथा राई से मोहनलाल बडोली प्रमुख दावेदार के तौर पर बने हुए हैं. बीजेपी-जेजेपी गठबंधन में दूसरी पार्टियों से आए एमएलए को किस प्रकार से सरकार में भागीदारी मिलती है, आने वाले समय में उस पर सरकार की स्थिरता काफी निर्भर करेगी.
(डॉ. संजय कुमार जाकिर हुसैन इवनिंग कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विभाग में शिक्षक हैं. यह उनके निजी विचार हैं.)