नई दिल्ली : बिहार के कई जिले हर साल सूखे की चपेट में आते हैं. ऐसा ही एक जिला है बांका. जो लंबे समय से सूखे की चपेट में आता था. लेकिन एक बुजुर्ग के प्रयासों के बदौलत जिले के कई प्रखंडों में सूखे से मुक्ति मिली है. बुजुर्ग के प्रयासों से जिले के कटोरिया और चांदन प्रखंड के करीब 10 ग्राम पंचायत को सूखे से मुक्ति मिली है. ऐसा करने वाले बुजुर्ग की उम्र लगभग 70 वर्ष है. उनका प्रयास क्षेत्र में तालाब क्रांति का रूप ले लिया है.
बांका के कटोरिया और चांदन प्रखंड की मुख्य फसल धान और गन्ना है. इन दोनों फसलों में सिंचाई के लिए पानी की अधिक जरूरत होती है, जिस कारण कोई भी किसान एक साल में एक ही फसल उपजा पाता था. यहां की कृषि पूरी तरह मानूसन की बारिश पर निर्भर थी.
इस क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि कम बारिश होने के कारण यहां अक्सर सूखे की स्थिति बन जाती थी. ऐसे में एक दशक पूर्व 70 वर्षीय किसान अनिरुद्ध प्रसाद सिंह ने यहां के पुराने जलस्रोत- तालाबों, नालों और तटबंधों को पुनजीर्वित करने का बीड़ा उठाया और अब इस क्षेत्र में सूखा बीते दिनों की बात हो गई है.
पंजरपट्टा गांव के किसान द्वारिका यादव कहते हैं कि राज्य सरकार ने इस साल भी बांका के कुछ प्रखंड सहित कई जिलों में सूखे की घोषणा की है, लेकिन कटोरिया उस सूची में नहीं है. यहां लगभग 70 प्रतिशत धान की खेती हुई है.
वे बताते हैं कि अनिरुद्ध बाबू के प्रयास से आज इन दोनों प्रखंडों में 150 तालाब, चेकडैम और लिट सिंचाई आबाद हो गए हैं, जिससे पानी के सोते, जो नीचे चले गए थे वे काफी ऊपर आ गए हैं.
कटोरिया के डोमसरनी गांव के रहने वाले अनिरुद्ध प्रसाद सिंह ने कहा कि वे जेपी आंदोलन में भाग लेने के बाद वर्ष 1976 में अपने गांव लौट आए थे और उस आंदोलन को फैलाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे. इसके बाद 1983 में पांच एकड़ जमीन खरीदी और दो साल बाद ‘मुक्ति निकेतन’ की स्थापना की.
उन्होंने कहा, ‘मैंने 18 राज्यों में जल संरक्षण पर जागरूकता फैलाने के लिए एक स्वयंसेवक के रूप में काम किया था. मैंने कटोरिया और भागलपुर जिले में पानी की कमी के मुद्दे को भी उठाया, लेकिन किसी ने समाधान नहीं दिया.’
उन्होंने बताया कि पहली बार 2008 में काउंसिल फॉर एडवांसमेंट ऑफ पीपुल्स एक्शन एंड रूरल टेक्नोलॉजी (कपार्ट) की ओर से पहली बार इस क्षेत्र में पानी के लिए मदद मिली. कपार्ट एक नोडल एजेंसी है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में सतत विकास के लिए स्वैच्छिक समूहों और सरकार के बीच मध्यस्थ का काम करती है.
सिंह ने कहा, ‘उस समय शुरुआत में 30 पुराने जल निकायों को पुनजीर्वित करने, 20 कुओं और 35 फ्लिट सिंचाई मशीनों का निर्माण करने और 40 हैंडपंप स्थापित करने का बीड़ा उठाया था. इसके बाद नाबार्ड और अन्य संस्थानों द्वारा 30 तालाब, 25 चेकडैम और 10 लिट सिंचाई योजना का निर्माण कराया गया. इसके बाद तो यह सिलसिला चल पड़ा.
सिंह एक सड़क हादसे में पैरों में गंभीर चोट लगने से ज्यादा पैदल नहीं चल पाते, लेकिन उनकी मदद करने वाला एक दल उनके कामों को आगे बढ़ रहा है.
सिंह कहते भी हैं कि उन्हें इस बात की ज्यादा खुशी है कि जिस काम को उन्होंने शुरू किया, उसे आज के किसान कई गांवों तक ले गए हैं.
इधर, एक अन्य किसान नरेश सिंह कहते हैं कि सिंह के इस पहल से 30 गांवों के लगभग 1,000 किसानों को सीधे फायदा हुआ है, जबकि 200 गांवों के कम से कम 10,000 किसानों ने अपनी जमीन पर पानी के लिए इस मॉडल को अपनाया है. वे कहते हैं कि आज गांव के किसान दो फसलें धान और गेहूं उपजा रहे हैं, जबकि गेहूं की खेती यहां के किसानों के लिए कभी सपने जैसी थी.
किसान गंगेश्वर मांझी कहते हैं कि इन गांवों में ‘मोबाइल लिट सिंचाई’ का भी प्रयोग किया जा रहा है. जलस्रोतों से ‘फोल्डर’ पाइपों को जोड़कर 1,000 फीट तक खेतों में सिंचाई के लिए पानी पहुंचाया जा रहा है. इसका प्रयोग कथौन, कटोरिया, हरहड़, भिखुवासर, भैरोगंज, लालपुर और वर्नी की पंचायतों के किसान कर रहे हैं.
बांका जिला प्रशासन भी अनिरुद्ध सिंह के इस प्रयास की प्रशंसा करता है. बांका के जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा प्रसाद कहते हैं कि सरकार जल संरक्षण के उपाय कर रही है. कई योजनाएं हाल ही में शुरू हुई हैं. उन्होंने कहा सिंह का प्रयास लोगों के लिए उदाहरण है, इसके लाभ भी किसानों को मिल रहे हैं. प्रसाद कहते हैं कि प्रत्येक लोगों को जल संरक्षण का प्रयास करना होगा.