न्यूयॉर्क: अफगानिस्तान के वास्तविक शासक तालिबान भले ही अफीम और नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध बनाए रखने में कामयाब रहे हों, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मॉनिटरों की रिपोर्ट के मुताबिक, यह “कारोबार अब भी देश की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर हावी है.”
8 दिसंबर को आई यूएन की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “यह कारोबार तस्करों, आपराधिक संगठनों और यहां तक कि कुछ राज्य तत्वों के एक बड़े नेटवर्क को चलाता है, जिन्हें इससे आर्थिक फायदा मिलता है.”
तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को काबुल पर कब्ज़ा कर लिया था, जब अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए थे और अमेरिका व उसके सहयोगी देशों की सेनाएं दो दशकों की सैन्य मौजूदगी के बाद वहां से वापस लौट गई थीं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफीम की खेती और उत्पादन रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया है, लेकिन उद्योग के बड़े हिस्से सीमा पार चले गए हैं, “जहां अफगान मादक पदार्थ नेटवर्क किसानों और उपकरणों को दूसरी जगह ले जाकर अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं.” रिपोर्ट के अनुसार, जिन इलाकों में यह उद्योग शिफ्ट हो रहा है, वहां इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट (आईएसआईएल)-खुरासान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को फायदा मिल सकता है.
तालिबान द्वारा 2022 में अफीम की खेती पर लगाए गए प्रतिबंध से अफगानिस्तान से तैयार होकर बाहर भेजी जाने वाली हेरोइन में कमी आई, लेकिन इससे सूखी अफीम की कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी भी हुई. रिपोर्ट के मुताबिक, ये कीमतें “प्रतिबंध की घोषणा के समय की तुलना में लगभग चार गुना ज्यादा” हो गईं. सूखी अफीम हेरोइन बनाने के लिए मुख्य कच्चा माल होती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान के किसानों ने तालिबान के अफीम प्रतिबंध के खिलाफ विरोध किया है. मई में वास्तविक प्रशासन और अफीम किसानों के बीच हुई झड़प में दो लोगों की मौत हो गई थी. एक महीने बाद फिर से विरोध प्रदर्शन हुए. इसके बाद अफगानिस्तान के बदख्शां और जुर्म इलाकों में अधिकारियों ने खेत नष्ट किए जाने से पहले 15 दिनों की अवधि तक अफीम की फसल काटने की अनुमति देने पर सहमति जताई.
रिपोर्ट के अनुसार, जहां अफीम का उत्पादन घटा है, वहीं यूएन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम ने मेथामफेटामिन जैसे सिंथेटिक नशीले पदार्थ बनाने में इस्तेमाल होने वाली फसलों में बढ़ोतरी देखी है, खासकर अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में, जहां आय के साधन बहुत कम हैं. यूएन मॉनिटरों का कहना है कि ये नशीले पदार्थ धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अफीम की जगह ले सकते हैं.
अन्य खतरे
रिपोर्ट में कहा गया है कि सनाउल्लाह गफ्फारी के नेतृत्व वाला आईएसआईएल-के अफगानिस्तान के उत्तर और पूर्वी इलाकों में अब भी मजबूत बना हुआ है, जबकि तालिबान और पाकिस्तान ने इसके नेतृत्व को नुकसान पहुंचाया है. इस्लामिक स्टेट अपने लड़ाके मध्य एशिया के गरीब समुदायों से जुटाता है, जो अफगान सीमा के दोनों ओर रहते हैं.
यूएन की निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक, इस संगठन ने पिछले साल अफगानिस्तान के बाहर भी सफल हमले किए. इनमें ईरान के केरमान में एक शिया मस्जिद पर हमला और रूस के मॉस्को में क्रोकस सिटी हॉल पर हमला शामिल है.
नूर वली मेहसूद के नेतृत्व वाला टीटीपी पाकिस्तानी सेना पर लगातार ज्यादा घातक हमले कर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 2025 में ही 600 से ज्यादा घात और बम धमाकों की घटनाएं सामने आई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संगठन के अफगानिस्तान के खोस्त, कुनार, नंगरहार, पक्तिका और पक्तिया प्रांतों में 6,000 से ज्यादा कैडर मौजूद हैं.
हालांकि, तालिबान लगातार यह दावा करता रहा है कि उसने अल-कायदा से सभी रिश्ते तोड़ लिए हैं, लेकिन यूएन रिपोर्ट में कहा गया है कि “अल-कायदा के सदस्य या उसके समर्थक वास्तविक प्रशासन के ऊंचे पदों पर मौजूद माने जाते हैं.”
रिपोर्ट में कहा गया है, “2024 की गर्मियों में अल-कायदा के नेता सैफ अल-अदल ने अफगानिस्तान को सुरक्षित ठिकाना बताया और वफादार अल-कायदा सदस्यों से वहां ट्रेनिंग लेने और अनुभव व ज्ञान हासिल करने के लिए जाने की अपील की.”
ईरान और पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों की बड़े पैमाने पर वापसी ने तालिबान-शासित देश पर आर्थिक दबाव और बढ़ा दिया है.
हालांकि, तालिबान ने पढ़ा-लिखा वर्कफोर्स तैयार करने के लिए मदरसों के विकास का एक बड़ा कार्यक्रम शुरू किया है, लेकिन महिलाओं और लड़कियों की एजुकेशन और रोज़गार पर लगाया गया उसका अलोकप्रिय प्रतिबंध रिपोर्ट में कहा गया है, “लंबे वक्त में आर्थिक असर डालेगा, क्योंकि आबादी का आधा हिस्सा न तो पढ़ा-लिखा होगा और न ही खुलकर काम कर पाएगा.”
तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा के खिलाफ असंतोष के बावजूद, यूएन की निगरानी टीम का आकलन है कि देश पर उनकी पकड़ अब भी मजबूत बनी हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “अमीर (हिबतुल्लाह) के फरमानों के क्रियान्वयन और निगरानी के लिए वास्तविक निदेशालय, सदाचार के प्रचार और अवगुणों की रोकथाम मंत्रालय, और वास्तविक मुख्य न्यायाधीश शेख अब्दुल हकीम हक्कानी के अधीन सुप्रीम कोर्ट—ये सभी मिलकर कट्टर मौलवियों का एक स्थिर समूह बनाते हैं, जो हिबतुल्लाह के करीबी हैं और उनके आदेशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करते हैं.”
इसमें आगे कहा गया है कि कंधार के प्रांतीय गवर्नर मुल्ला मोहम्मद शिरीन अखुंद हिबतुल्लाह तक पहुंच के “मुख्य द्वारपाल” हैं और उन्होंने सत्ता के मुख्य घेरे से असंतुष्टों को हाशिए पर डालने में सफलता हासिल की है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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