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Thursday, 27 November, 2025
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कर्नाटक में CM पद को लेकर खिंचतान जारी—शिवकुमार को लेकर वोक्कालिगा समुदाय ने दी आंदोलन की चेतावनी

राज्य वोक्कालिगारा संघ ने डिप्टी CM की ‘मुश्किलों’ के लिए ‘मज़दूरी’ की मांग की है, क्योंकि कांग्रेस नेता, साधु और MLA इस बात पर एक-दूसरे का पक्ष ले रहे हैं कि सिद्धारमैया को टॉप पोस्ट से हट जाना चाहिए या नहीं.

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बेंगलुरु: राज्य वोक्कलिगा संघ (RVS) ने गुरुवार को सिद्धारमैया की जगह डी.के. शिवकुमार को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने की मांग का समर्थन किया.

“हम राज्य वोक्कलिगा संघ के रूप में मांग करते हैं कि डी.के. शिवकुमार को उनके काम और मेहनत का फल (इनाम) दिया जाए, जिसकी वजह से पार्टी (कांग्रेस) सत्ता में आई,” नवनियुक्त अध्यक्ष एल. श्रीनिवास ने गुरुवार को बेंगलुरु में पत्रकारों से कहा.

RVS दक्षिण कर्नाटक के प्रमुख भूमिधर समुदाय वोक्कलिगा का संगठन है, जिसकी बेंगलुरु में बड़ी उपस्थिति है. शिवकुमार इसी समुदाय से आते हैं.

श्रीनिवास के अनुसार, यह शक था कि कांग्रेस हाईकमान अपनी यह बात “निभाएगा” या नहीं कि मौजूदा कार्यकाल के बीच में शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा.

श्रीनिवास ने चेतावनी भी दी कि अगर हाईकमान उनकी मांग नहीं मानता है, तो RVS पूरे राज्य में बड़े स्तर पर विरोध शुरू करेगा.

RVS की यह चेतावनी कर्नाटक की नेतृत्व राजनीति पर और दबाव डाल रही है. पिछले कुछ दिनों में समुदाय के नेता, संत, विधायक और अन्य लोग इस अहम मुद्दे पर अपनी राय रख चुके हैं.

हालांकि शिवकुमार ने सार्वजनिक रूप से सिद्धारमैया के पक्ष में झुकते हुए बयान दिए हैं, लेकिन जानकारों के अनुसार उपमुख्यमंत्री दबाव बढ़ा रहे हैं.

कांग्रेस हाईकमान ने मई 2023 में दोनों नेताओं के बीच समझौता कराया था, जिसमें कहा गया था कि दोनों बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनेंगे.

लेकिन दोनों नेताओं की स्थितियां अलग-अलग रही हैं. सिद्धारमैया कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वे अपना पूरा कार्यकाल पूरा करेंगे, जबकि शिवकुमार का रुख उतार-चढ़ाव भरा रहा है. उन्होंने “गुप्त समझौते” की बात मानी है और कई बार सिद्धारमैया के बयान का सार्वजनिक समर्थन भी किया है.

गुरुवार को उपमुख्यमंत्री ने अपने आधिकारिक X हैंडल से एक पोस्टर साझा किया, जिसमें लिखा था: “शब्द शक्ति विश्व शक्ति है–दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है अपनी बात निभाना. चाहे वह जज हो, राष्ट्रपति हो या कोई और.”

उन्होंने बाद में मीडिया से कहा कि यह पोस्ट उन्होंने नहीं डालाया. हालांकि उन्होंने इसे हटाया भी नहीं है.

‘सबको दिल्ली बुलाया जाएगा’

पिछले दो साल में कई पिछड़ा वर्ग संगठनों ने सिद्धारमैया का समर्थन किया है और चेतावनी दी है कि अगर कांग्रेस उन्हें हटाती है तो बड़े स्तर पर विरोध होगा.

सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से हैं, जो परंपरागत रूप से चरवाहों का समुदाय है और राज्य के सबसे पिछड़े वर्गों में शामिल है, लेकिन राजनीतिक रूप से सक्रिय है. 77 वर्ष के सिद्धारमैया को पिछड़े वर्गों और सामाजिक न्याय का मुखर नेता माना जाता है और वे लिंगायतों और वोक्कलिगाओं के वर्चस्व को चुनौती देने वाले नेता के रूप में भी देखे जाते हैं.

कुछ समूह यह भी मांग कर रहे हैं कि यदि सिद्धारमैया को हटाना है तो जी. परमेश्वर, सतीश जरकिहोली या मल्लिकार्जुन खड़गे को मुख्यमंत्री बनाया जाए.

लेकिन मुख्य मुकाबला सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ही है.

“उन्होंने (शिवकुमार) कड़ी मेहनत की है और वे पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं. यह मांग सभी कर रहे हैं कि उन्हें भी मौका मिलना चाहिए और कई नेताओं ने भी समर्थन किया है. अगले 2.5 साल में उन्हें मुख्यमंत्री बनने का अवसर दीजिए ताकि वे अपनी दृष्टि के अनुसार राज्य का नेतृत्व कर सकें,” अदिचुंचनगिरी मठ के निर्मलानंदनाथ स्वामी ने बुधवार को कहा.

कम से कम दो और प्रमुख वोक्कलिगा संतों ने भी ऐसी ही मांग की है.

कर्नाटक में, विभिन्न जाति और उप-जाति समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले संतों का राजनीतिक मांगें रखना आम बात है. ये संत बड़ी संख्या में लोगों पर प्रभाव रखते हैं क्योंकि वे स्कूल, अस्पताल और अन्य संस्थान चलाते हैं जिन्हें समुदाय के बाहर के लोग भी इस्तेमाल करते हैं.

पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक के.एन. राजन्ना ने हालांकि कहा कि संतों का राजनीति में दखल देना “उचित” नहीं है.

“मेरे अनुसार, संतों को सामाजिक कार्य करना चाहिए और अपने धर्म का संदेश फैलाना चाहिए. वे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के संपर्क में हो सकते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि राजनीति में दखल देना उचित है,” उन्होंने कहा.

कांग्रेस पार्टी अपने भीतर और बाहर बढ़ती आवाजों को अभी तक शांत करने में नाकाम रही है.

विधायक और मंत्री खुलकर किसी न किसी खेमे का समर्थन कर रहे हैं, जो पार्टी के निर्देशों के खिलाफ है.

ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) अध्यक्ष खड़गे ने गुरुवार को कहा कि वे आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे.

“हम सबको दिल्ली बुलाकर इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे. (वरिष्ठ नेता) राहुल गांधी भी इस चर्चा का हिस्सा होंगे. मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी इसमें शामिल होंगे. सबके साथ बात करके ही फैसला लिया जाएगा,” उन्होंने गुरुवार को बेंगलुरु में कहा और फिर दिल्ली रवाना हुए.

सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों ने कहा है कि अगर हाईकमान बुलाता है तो वे दिल्ली जाएंगे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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