हाल के दो घटनाओं ने मुझे यह महसूस करवाया है कि बॉलीवुड और भारत को लेकर लोगों का नजरिया कैसे बदल गया है. या फिर अगर लोगों का नजरिया नहीं बदला है, तो कम से कम उन विवादों का तरीका बदल गया है जिन्हें आजकल बनाया जाता है. पहली घटना बॉलीवुड के सबसे नेकदिल सितारों में से एक, धर्मेंद्र के निधन से जुड़ी है. दूसरी घटना रणबीर कपूर की डाइट को लेकर हुए बेवजह के विवाद से.
पहले धर्मेंद्र की बात करते हैं. जब से मैंने फिल्म इंडस्ट्री के बारे में लिखना शुरू किया है, मुंबई में हर कोई मानता था कि सबसे अच्छे और दरियादिल फिल्म स्टार धरमजी ही थे. कहा जाता था कि पंजाब से कोई भी व्यक्ति बिना बताए उनके घर पहुंच जाए, तो उसे खाना और जरूरत पड़ने पर रहने की जगह भी मिल जाती थी.
धरमजी न तो प्रतियोगी थे और न ही छोटे दिल वाले. अमिताभ बच्चन ने मुझे बताया था कि उन्हें शोले में रोल कैसे मिला, वही रोल जिसने उन्हें सुपरस्टार बना दिया. उस समय ज़ंजीर और दीवार जैसी उनकी बड़ी फिल्में रिलीज़ नहीं हुई थीं. जब सिप्पी शोले के लिए कलाकार चुन रहे थे, तो फिल्म के लेखक सलीम–जावेद ने अमिताभ को एक लीड रोल के लिए सुझाया. लेकिन निर्माता उन्हें लेने में हिचक रहे थे.
जावेद अख्तर ने अमिताभ से कहा कि वे धर्मेंद्र से मिलें और उनसे सिफारिश करने को कहें. अमिताभ, जो आमतौर पर किसी से मदद नहीं मांगते थे, हिम्मत करके धरमजी से मिले. उनकी हैरानी की बात थी कि धरमजी ने तुरंत मदद की और निर्देशक रमेश सिप्पी से बात की.
इसके बाद अमिताभ को रोल मिला और उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. बाद में लोगों ने धर्मेंद्र से कहा कि उन्होंने एक संभावित प्रतिद्वंद्वी की मदद करके गलती की. लेकिन धरमजी ने कभी भी अपने फैसले पर पछतावा नहीं किया. वे सचमुच बड़े दिल वाले इंसान थे.
लोगों ने धर्मेंद्र और अमिताभ पर बहुत कुछ लिखा. लेकिन एक सवाल शायद ही कभी पूछा गया: क्या दोनों अभिनेता शाकाहारी थे?
अगर उस समय किसी को कलाकारों की खाने की आदतों में दिलचस्पी होती, तो जवाब आसानी से मिल जाते.
धरमजी मांस खाते थे, हालांकि बाद के वर्षों में वे अपनी शाकाहारी पत्नी हेमा मालिनी के साथ खाना खाते समय मांस नहीं खाते थे.
अमिताभ भी नॉन–वेजिटेरियन थे. उन्होंने 1989 में मांस खाना छोड़ा, जब वीपी सिंह की सरकार उन्हें परेशान कर रही थी. उन्होंने कुछ महीनों के लिए फिर मांस खाना शुरू किया और बाद में वापस शाकाहारी हो गए. लेकिन उन्होंने कभी अपनी पसंद परिवार पर नहीं थोपी और उनके घर में मांस बनता रहा.
मेरे लिए यह बातें कभी खास मायने नहीं रखती थीं, और आज भी नहीं रखतीं. और न ही किसी और को तब इसकी परवाह थी.
लेकिन अब, जैसा कि रणबीर कपूर ने महसूस किया है, समय बदल गया है.
मध्यकालीन सोच की ‘मीट पुलिस’
कपूर परिवार हमेशा से मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बड़े भोजन–प्रेमी रहे हैं. राज कपूर को पाया करी बहुत पसंद थी. उनके बच्चे और आगे की पीढ़ी को भी खाने का बेहद शौक है. करीना का स्वाद वैश्विक है. अरमान खाने के कारोबार में बड़ी पहचान बनाने वाले हैं. ऋषि कपूर को मेरे फूड कॉलम पर हमेशा कुछ न कुछ कहना रहता था. कभी तारीफ नहीं, लेकिन हमेशा जानकारी और अनुभव के आधार पर. वे अक्सर मुझे नए रेस्त्रां सुझाते थे, और वे हमेशा सही होते थे.
शायद कपूर परिवार, बाकी लोगों की तरह, यह समझ नहीं पाया था कि कुछ भारतीयों की सोच किसी काल्पनिक मध्यकालीन दौर में लौट गई है. इस झूठी सोच के अनुसार हिंदू धर्म और शाकाहार एक–दूसरे से जुड़े हैं और मांस खाना धर्म के खिलाफ है.
यह गलत है. हां, कुछ ऊंची जातियों में शाकाहार की परंपरा है, लेकिन ज्यादातर हिंदू शाकाहारी नहीं हैं. पूरे देश में नॉन–वेज खाने वालों की संख्या बढ़ रही है. एक सर्वे में छह में से चार भारतीयों ने कहा कि वे खुद को शाकाहारी नहीं मानते.
उसी तरह यह दावा भी गलत है कि रामायण या महाभारत के सभी चरित्र शाकाहारी थे. ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है कि वाल्मीकि की रामायण में वर्णित भगवान राम शाकाहारी थे. कई इतिहासकार मानते हैं कि शाकाहार जैन परंपरा से शुरू हुआ और बाद में हिंदू समाज के कुछ हिस्सों में शामिल हुआ.
लेकिन अब सोशल मीडिया पर एक ‘मीट पुलिस’ मौजूद है. कोई भी गैर–शाकाहारी खाना खाने की बात कह दे, खासकर कोई मशहूर व्यक्ति, तो तुरंत हमला शुरू हो जाता है. जब रणबीर कपूर ने बीफ़ पसंद करने की बात कही बताई गई, तो वे इस मीट पुलिस के निशाने पर आ गए. शायद इसी वजह से जब रणबीर को एक फिल्म में भगवान राम के किरदार के लिए चुना गया, तो पीआर टीम ने कहा कि शूटिंग के दौरान वह मांस नहीं खाएंगे.
यह बयान देना गलत था, क्योंकि इससे मीट पुलिस और सतर्क हो गई. और जैसा अनुमान था, हमले का मौका जल्दी ही उन्हें मिल गया. जब उनके कज़िन अरमान ने ‘डाइनिंग विद द कपूर्स’ नाम का टीवी फीचर बनाया, तो मीट पुलिस ने बहुत ध्यान से उसे देखा.
मैंने वह फीचर देखा और मुझे पसंद आया. जैसा उम्मीद थी, कपूर परिवार की कई पीढ़ियों को नॉन–वेज खाना परोसा गया. मैंने रणबीर की प्लेट को ध्यान से नहीं देखा, इसलिए मुझे नहीं पता कि उन्होंने सिर्फ शाकाहारी खाना खाया या नहीं. और मुझे यह भी नहीं पता कि शूट कब हुआ था, हालांकि अंदाजा है कि यह काफी पहले शूट हुआ था.
जब निकम्मे लोग फैसले करते हैं
लेकिन मान लेते हैं कि बहस के लिए यह फीचर उस पीआर घोषणा के बाद शूट हुआ था जिसमें कहा गया था कि रणबीर मांस छोड़ देंगे — और मान लेते हैं कि उन्होंने नॉन-वेज खाना खाया. तो क्या हुआ?
शायद उन्होंने शाकाहारी बनने की बात कहने के बाद अपना मन बदल लिया हो. यह उनका पूरा हक है. इससे वह बुरे इंसान नहीं बन जाते, और न ही इससे वह किसी फिल्मी राम का किरदार निभाने के लायक नहीं रह जाते.
और ज़्यादा ज़रूरी बात यह है कि यह मुद्दा विवाद कैसे बन गया? हम अपने अभिनेताओं के खाने पर इतना ध्यान क्यों देते हैं? कौन लोग हैं जो मीट पुलिस की भूमिका निभाते हुए दूसरों की थाली पर नज़र रखते हैं? क्या उनके पास करने के लिए इससे बेहतर कोई काम नहीं है?
यह एक ऐसी सोच का लक्षण है जो भारत में तेज़ी से फैल रही है. लोग अपने पूर्वाग्रहों को सही साबित करने के लिए इतिहास और धर्म के झूठे ‘तथ्य’ गढ़ लेते हैं. आलसी कट्टरपंथी उन लोगों पर टिप्पणी करके खुद को बड़ा महसूस करते हैं जिन्होंने जीवन में उनसे कहीं ज़्यादा हासिल किया है.
यह दुखद है कि हम धरमजी के ज़माने से आज इतने नीचे आ गए हैं, जब लोगों का मूल्यांकन उनके अच्छे कामों से होता था, न कि उनके बटर चिकन से. यह बताता है कि हम उस दौर से कितनी दूर आ चुके हैं. दुनिया आगे बढ़ रही है, और भारत को पीछे खींच रहे हैं मीट पुलिस जैसे लोग, धर्म और परंपरा पर फैलाए जा रहे झूठ, और यह अस्वस्थ जिज्ञासा कि दूसरे लोग अपनी थाली में क्या खा रहे हैं.
वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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