(फाकिर हसन)
जोहानिसबर्ग, 21 नवंबर (भाषा) भारतीय सांसद शशि थरूर ने केप टाउन में एक व्याख्यान में कहा कि दिवंगत आर्कबिशप डेसमंड टूटू ने साउथ अफ्रीका में रंगभेद को खत्म करने में सिर्फ मदद ही नहीं की, बल्कि इससे भी अधिक प्रयास किए थे।
थरूर ने बृहस्पतिवार को केप टाउन में दक्षिण अफ्रीका के सम्मानित नेता के नाम पर स्थापित फाउंडेशन द्वारा आयोजित वार्षिक ‘डेसमंड टूटू व्याख्यान’ दिया।
थरूर ने कहा, ‘‘टूटू की विरासत को अक्सर रंगभेद को खत्म करने में उनकी भूमिका से जोड़ा जाता है, एक ऐसा संघर्ष जिसके लिए उन्हें 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था। लेकिन उन्हें सिर्फ उस अध्याय तक सीमित करना उनकी नैतिकता की पूरी गहराई को नजरअंदाज करना होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उनकी लड़ाई सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय अन्याय के खिलाफ नहीं थी, बल्कि यह हर उस प्रणाली के खिलाफ थी जिसने इंसान की गरिमा को नकारा। वह महिलाओं की बराबरी के लिए; एलजीबीटीक्यू प्लस लोगों के अधिकारों के लिए; हमारी धरती की सुरक्षा के लिए; फलस्तीन में दबे-कुचले लोगों के लिए; और दुनिया भर में गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए बिना किसी हिचकिचाहट के खड़े रहे।’’
थरूर ने कहा कि टूटू की अंतरात्मा पूरी दुनिया के लिए सक्रिय थी, न कि किसी एक चुनिंदा सोच को लेकर।
थरूर ने उपस्थित श्रोताओं से टूटू के आदर्शों को सक्रियता से अपनाने की अपील की।
उन्होंने कहा, ‘‘आइए हम वह रास्ता चुनें जिस पर टूटू चले। प्रखर सहानुभूति का रास्ता; हिम्मत से सच बोलने का रास्ता; पक्की उम्मीद का रास्ता। ’’
थरूर ने कहा कि टूटू का मानना था कि धर्म की धार्मिक और नैतिक नींव का इस्तेमाल इंसानियत को बांटने के लिए नहीं, बल्कि उसे जोड़ने के लिए किया जा सकता है।
थरूर ने इसे एक हिंदू के तौर पर अपनी मान्यताओं से भी जोड़ा। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का जिक्र किया, जिन्होंने 19वीं सदी के आखिर में हिंदू धर्म को दुनिया तक पहुंचाया, और कहा कि हिंदू धर्म सबकी स्वीकृति और सहनशीलता दोनों के लिए खड़ा है।
थरूर ने कहा, “हिंदू के लिए सबसे बड़ा सच है कि वह दूसरी सच्चाइयों के होने को स्वीकार करता है।”
उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद जैसे मुद्दों के खिलाफ, दुनिया भर में नरसंहार के खिलाफ और यहां तक कि भारत में विभाजन के खिलाफ इस्तेमाल किए गए अंतरधार्मिक संवाद को अपनाने का आह्वान किया।
भाषा वैभव नरेश
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