नई दिल्ली: लाल किला के पास हुए धमाके के बाद जांच के घेरे में आई फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी, हरियाणा के एक कानून के तहत स्थापित हुई थी, जिसके बारे में विशेषज्ञ बताते हैं कि यह दायरे में मजबूत है, लेकिन लागू करने में सीमित है.
यूनिवर्सिटी के तीन कर्मचारियों को, जिनमें वह डॉक्टर भी शामिल है जिसने कथित तौर पर ब्लास्ट वाली कार चलाई, 10 नवंबर के केंद्रीय दिल्ली ब्लास्ट से जोड़ा गया है, जिसमें 15 लोग मरे थे. प्रवर्तन निदेशालय ने इस हफ्ते की शुरुआत में यूनिवर्सिटी के संस्थापक जवाद अहमद सिद्दिकी को भी मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया.
अल-फलाह को 2014 में हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ एक्ट के तहत स्थापित किया गया था.
पूर्व शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि यह कानून वित्तीय गड़बड़ियों और गुणवत्ता नियंत्रण पर निगरानी रखने के लिए विस्तृत प्रावधान रखता है. इसमें नियमों का पालन न करने पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान भी है, लेकिन निगरानी और देखरेख कथित रूप से कमज़ोर है.
2006 में लागू हुए मूल हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ एक्ट ने राज्य में निजी संस्थानों को मान्यता दी, लेकिन सालों बाद कानून को अधिक ताकत दी गई. इसका सबसे विस्तृत संशोधन 2014 में हुआ, इसके बाद छोटे बदलाव हुए. ये धीरे-धीरे भूमि, इंफ्रास्ट्रक्चर और अनुमोदन की शर्तों को आसान बनाते गए ताकि संस्थान आसानी से कैंपस खोल सकें, साथ ही नियामक मानकों को मजबूत किया गया.
अल-फलाह, जो 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में शुरू हुई थी, 2014 में इसे प्राइवेट यूनिवर्सिटी के रूप में मान्यता मिली. वर्तमान में, राज्य में 25 प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं, जिनमें अल-फलाह भी शामिल है.
वित्तीय निगरानी
पूर्व शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि कानून की धारा 42 और 43 के तहत प्राइवेट यूनिवर्सिटी को हर साल अपने वार्षिक रिपोर्ट और ऑडिटेड वित्तीय जानकारी, जिसमें बैलेंस शीट और ऑडिट रिपोर्ट शामिल हैं, शासन संस्थाओं और राज्य सरकार को जमा करना ज़रूरी है.
अधिकारी ने कहा, “सर्वोच्च चुनौती हमेशा इसका पालन कराना रही है. अभी भी कोई उचित तंत्र नहीं है जो यह सुनिश्चित करे कि ये नियम कठोरता से पालन किए जाएं.”
अल-फलाह यूनिवर्सिटी इसका उदाहरण है. ईडी ने 18 नवंबर को संस्थापक को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत गिरफ्तार किया और कहा कि जांच में सार्वजनिक और छात्रों की फीस से जमा हुए फंड को संस्थापक द्वारा निजी इस्तेमाल के लिए डायवर्ट करने के सबूत मिले.
कानून की धारा 13 भी बताती है कि विश्वविद्यालय के ‘जनरल फंड’—जो छात्र फीस और अन्य शुल्क से बनते हैं—का उपयोग केवल शैक्षणिक और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए होना चाहिए.
उक्त अधिकारी ने कहा, “अगर अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने विभाग के साथ अपने रियल टाइम के वित्तीय विवरण और रिकॉर्ड जमा किए होते, तो ये मुद्दे पहले सामने आ सकते थे. यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि ठीक से निगरानी नहीं की गई थी.”
अधिकारी ने यह भी कहा कि संभावना है कि अल-फलाह एकमात्र यूनिवर्सिटी नहीं है जो नियमों का उल्लंघन कर रही है.
अधिकांश राज्यों में निगरानी अभी भी एक समस्या बनी हुई है. अधिकारी ने कहा, “लेकिन कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में निजी यूनिवर्सिटी कानून लागू करने में बेहतर सिस्टम हैं.”
प्रोफेसर हेमंत वर्मा, जो हरियाणा के उच्च शिक्षा विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक और गुरुग्राम की एसजीटी यूनिवर्सिटी के कुलपति रहे, उन्होंने कहा कि हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ एक्ट में मजबूत चेक और बैलेंस बनाए गए हैं.
उन्होंने कहा, “इसके कई प्रावधान दंडात्मक हैं, जो सरकार को अनुमति देते हैं कि जब भी नियमों का पालन नहीं हो, कार्रवाई की जा सके. शिक्षा विभाग में रहते हुए मैंने एक सिस्टम विकसित किया, जिससे हर प्राइवेट यूनिवर्सिटी नियमित रूप से आवश्यक बुनियादी जानकारी अपडेट करे.”
उन्होंने कहा, “साथ ही, कुछ क्षेत्र विश्वविद्यालय के अपने क्षेत्र में रहने चाहिए, जैसा कि उन्हें शैक्षणिक स्वायत्तता दी गई है. उदाहरण के लिए, फैकल्टी का चयन मूल रूप से एक स्वायत्त कार्य है, जैसा कि यूजीसी के नियमों में बताया गया है.”
मान्यता में चूक अनदेखी रही
कानून की धारा 40 हरियाणा में प्राइवेट यूनिवर्सिटी के लिए यह अनिवार्य बनाती है कि वे अपनी स्थापना के पांच साल के भीतर नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (NAAC, राष्ट्रीय गुणवत्ता मूल्यांकन संस्था) या नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन (एनबीए) से मान्यता प्राप्त करें. इसमें कहा गया है कि यूनिवर्सिटी को मान्यता देने वाली एजेंसी द्वारा दिए गए ग्रेड के बारे में सरकार और अन्य संबंधित नियामक संस्थाओं को भी सूचित करना होगा. इसके बाद मान्यता को समय-समय पर नवीनीकृत करना अनिवार्य है.
लेकिन कानून पालन न करने पर सख्त दंड या प्रभावी जांच लागू नहीं करता.
ध्यान देने वाली बात यह है कि अपनी स्थापना के 11 साल बाद भी अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने NAAC से मान्यता नहीं ली. इसके तीन कॉलेजों में से केवल दो को कभी मान्यता मिली थी और वह भी समाप्त होने के बाद नवीनीकृत नहीं की गई. NAAC ने पिछले सप्ताह इस उल्लंघन के लिए यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी किया.
ईडी ने आरोप लगाया कि NAAC मान्यता को जाली बनाकर अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने छात्रों और अभिभावकों को गुमराह किया, जबकि उसने दाखिले जारी रखे और कम से कम 415 करोड़ रुपये जुटाए, जिन्हें “अपराध से प्राप्त संपत्ति” के रूप में डायवर्ट किया गया.
एक अन्य पूर्व नौकरशाह, जो हरियाणा के उच्च शिक्षा विभाग में कार्यरत रहे, ने कहा कि यह तथ्य कि यूनिवर्सिटी कई साल तक बिना किसी मान्यता के चली, प्रभावी जांच की कमी को दर्शाता है.
फैकल्टी की जांच नहीं
हरियाणा के कानून में यूनिवर्सिटी के फैकल्टी और स्टाफ की पृष्ठभूमि जांच कराने का प्रावधान नहीं है. कानून केवल प्राइवेट यूनिवर्सिटी को यह अनिवार्य करता है कि वे स्टाफ भर्ती में यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन के नियमों का पालन करें.
यूजीसी के दिशानिर्देश, जो भारत में उच्च शिक्षा मानक तय करता है, शिक्षकों के लिए शैक्षणिक योग्यता पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इनमें पृष्ठभूमि या पुलिस जांच की कोई आवश्यकता नहीं बताई गई है.
उक्त नौकरशाह ने कहा, “केंद्र और राज्य की यूनिवर्सिटी में तथा सरकारी नौकरियों में भर्ती से पहले पुलिस वेरिफिकेशन किया जाता है. प्राइवेट यूनिवर्सिटी को भी यह प्रक्रिया अपनानी चाहिए. हालांकि, लागू करने का तरीका विश्वविद्यालय को उसकी स्वायत्तता बनाए रखने के लिए छोड़ दिया जा सकता है.”
अधिकारी ने यह भी बताया कि अधिकांश राज्यों के कानूनों में फैकल्टी के लिए ऐसी अनिवार्य पृष्ठभूमि जांच नहीं होती.
उन्होंने कहा, “तमिलनाडु के कानून में विश्वविद्यालय के ट्रस्ट या प्रायोजक संस्था के लिए पृष्ठभूमि जांच का उल्लेख है, लेकिन व्यक्तिगत फैकल्टी या स्टाफ के लिए नहीं. इसी तरह, असम में यह जांच केवल प्रायोजक प्राधिकरण के लिए अनिवार्य है, व्यक्तिगत लोगों के लिए नहीं.”
अल-फलाह यूनिवर्सिटी और हरियाणा का उच्च शिक्षा विभाग शुक्रवार सुबह तक टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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