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Friday, 22 November, 2024
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सहमति-अहसमति और राजनीति के किन्तु-परन्तु के बीच विदेश में भी एसपीजी सुरक्षा को रखना होगा साथ

केन्द्र सरकार ने एसपीजी सुरक्षा प्राप्त लोगों के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये हैं. इनके अंतर्गत एसपीजी सुरक्षा कवच प्राप्त प्रत्येक व्यक्ति के लिये विदेश यात्रा के दौरान भी एसपीजी सुरक्षा कर्मियों को साथ ले जाना होगा.

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एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति का सुरक्षा के बगैर देश विदेश जाने में कई खतरे हो सकते हैं. उच्चतम न्यायालय भी कह चुका है कि ऐसे व्यक्तियों के साथ हमेशा साये की तरह रहेगी सुरक्षा. देश में प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों को सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा प्रदान करने के लिये 1988 में गठित एसपीजी का काम उनकी सुरक्षा के दायरे में आने वाले अतिविशिष्ट व्यक्तियों के साथ हमेशा साये की तरह लगे रहना है, चाहें वे हिरासत में हों या किसी अन्य जगह पर हों.

किसी भी स्थिति में ऐसे अतिविशिष्ट व्यक्ति की सुरक्षा से एसपीजी को हटाया नहीं जा सकता है. यदि इस तरह की सुरक्षा प्राप्त कोई व्यक्ति एसपीजी के सुरक्षा कवच के बगैर कहीं जाता है, चाहें विदेश यात्रा ही क्यों न हो, तो सहज ही कल्पना की जा सकती है कि वह कितने जोखिमों को जन्म देता है. देश में 1988 में बने और बाद में समय- समय पर इसमें हुये संशोधनों में ही नहीं बल्कि 1996 में उच्चतम न्यायालय के फैसले में भी यही स्पष्ट किया गया है. लेकिन अक्सर यह सुनने मे आता है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी एसपीजी के सुरक्षा कवच के बगैर ही विदेश यात्रा करते हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा.

विदेश यात्रा के दौरान एसपीजी सुरक्षा कर्मी 

केन्द्र सरकार ने एसपीजी सुरक्षा प्राप्त लोगों के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये हैं. इनके अंतर्गत एसपीजी सुरक्षा कवच प्राप्त प्रत्येक व्यक्ति के लिये विदेश यात्रा के दौरान भी एसपीजी सुरक्षा कर्मियों को साथ ले जाना होगा. यही नहीं, ऐसे व्यक्तियों को अपनी यात्रा और पिछली कुछ यात्राओं का भी विवरण देना अनिवार्य होगा. एसपीजी सुरक्षा प्राप्त अति विशिष्ट व्यक्ति की इस सुरक्षा कवच के बगैर ही देश-विदेश की यात्रा के दौरान किसी भी तरह की अप्रिय घटना की संभावना खत्म करने के इरादे से ही केन्द्र चाहता है कि इन नियमों का सख्ती से पालन हो. लेकिन ऐसा लगता है कि केन्द्र की पहल को लेकर कांग्रेस खुश नहीं है क्योकि उसे लगता है कि शायद सरकार एसपीजी सुरक्षा कवच के माध्यम से उनके नेताओं की निगरानी करना चाहता है.


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सहमति, अहसमति और राजनीति के किन्तु परंतु के बावजूद केन्द्र की इस पहल के बाद अब कांग्रेस के एसपीजी सुरक्षा प्राप्त नेताओं को अपनी विदेश यात्राओं के दौरान भी इसकी सुरक्षा में ही रहना होगा. कांग्रेस को लगता है कि केन्द्र सरकार एसपीजी सुरक्षा प्राप्त उसके नेताओं की गतिविधियों पर निगाह रखने का प्रयास कर रही है. इसकी एक वजह यह भी है कि कांग्रेस के नेता अपनी विदेश यात्राओं के दौरान एसपीजी की सुरक्षा व्यवस्था के दायरे में नहीं होते हैं.

केन्द्र सरकार के निर्णय और कांग्रेस की असहमति भरे रवैये के परिप्रेक्ष्य में पहला सवाल यही उठता है कि आखिर उसे इसमें क्या आपत्ति हो सकती है? यह सवाल भी उठ सकता है कि ऐसी क्या वजह है कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके पुत्र और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी विदेश यात्रा के दौरान एसपीजी सुरक्षा अपने साथ नहीं रखना चाहते? क्या ये नेता भारत की तुलना में विदेश में खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं या वे अपनी विदेश यात्राओं की गतिविधियों को जनता की नजरों से दूर रखना चाहते हैं?

उच्चतम न्यायालय का क्य़ा था फैसला

सरकार के रुख पर सवाल उठाने से पहले हमें एसपीजी सुरक्षा के बारे में उच्चतम न्यायालय के एक फैसले में की गयी टिप्पणी को भी ध्यान में रखना होगा. न्यायालय ने आरोपी पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा को दिल्ली की निचली अदालत में तलब किये जाने पर उनकी सुरक्षा को लेकर उठे विवाद में 11 अक्टूबर, 1996 को अपना फैसला सुनाया था. हुआ यह था कि सीबीआई बनाम चन्द्रास्वामी और अन्य के मामले में 1996 में मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट-अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजित भरिहोक ने तीस हजारी परिसर में अपनी अदालत में पी वी नरसिंह राव को आरोपी के रूप में 30 सितंबर, 1996 को समन किया था.

पुलिस आयुक्त और एसपीजी निदेशक ने अदालत परिसर में संतोषजनक सुरक्षा प्रदान करने का मुद्दा उच्च न्यायालय के सामने रखा और अदालती कार्यवाही का स्थान किसी सुरक्षित स्थल को बनाने का अनुरोध किया. उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की प्रशासनिक समिति ने 25 सितंबर, 1996 को यह अनुरोध ठुकरा दिया था.

इसके बाद ही एसपीजी सुरक्षा प्राप्त पी वी नरसिंह राव को अदालत परिसर में पुख्ता सुरक्षा प्रदान करने के सवाल पर दिल्ली के पुलिस आयुक्त और एस पी जी के निदेशक ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

न्यायमूर्ति मदन मोहन पंछी और न्यायमूर्ति के टी थामस की पीठ ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त की याचिका पर अपने फैसले में कहा था कि यह ध्यान रखना होगा कि सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति प्रधानमंत्री पद से हटने की तारीख से जीवन की हर सांस तक सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति है. न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की थी कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति अगर अदालत की हिरासत में हो या अदालत के आदेश पर किसी अन्य तरह की हिरासत में हो तो भी उसे प्राप्त एसपीजी सुरक्षा कवच नहीं हटाया जा सकता है.

शीर्ष अदलत ने कहा था कि एसपीजी की सुरक्षा ऐसे व्यक्ति के साथ हर समय साये की तरह रहती है और यह तय करना एसपीजी का काम है कि इस तरह की सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति को एसपीजी कानून की धारा 2:एः के तहत कैसे बेहतरीन और तर्कसंगत सुरक्षा प्रदान की जा सकती है.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बना था विशेष सुरक्षा बल

इस संबंध में यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की उनके आवास में ही हत्या किये जाने के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर उनकी पुख्ता सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संसद ने 1988 में कानून बनाकर विशेष सुरक्षा बल ‘एसपीजी’ का गठन किया था. इस कानून के अंतर्गत एसपीजी की सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति निरंतर इस बल के सुरक्षा दायरे में ही रहता है.

राजीव गांधी दो दिसंबर, 1989 को प्रधानमंत्री पद से हट गये थे। इसके करीब दो साल बाद 21 मई, 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनाव सभा के दौरान हुये विस्फोट में कर दी गयी थी. इस चुनाव सभा के दौरान राजीव गांधी के निकट पहुंच कर लिट्टे की आत्मघाती महिला ने खुद को बम से उड़ा लिया था.

इस घटना के बाद ही यह महसूस किया गया कि पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों को भी एसपीजी कानून के दायरे में सुरक्षा प्रदान की जाये. इसके बाद 25 सितंबर, 1991 को इस कानून में संशोधन करके प्रावधान किया गया कि प्रत्येक पूर्व प्रधानमंत्री को वर्तमान प्रधान मंत्री के समकक्ष ही अत्यधिक सुरक्षा प्रदान की जायेगी.

इसके बाद, एक बार फिर 16 नवंबर, 1994 को इस कानून में संशोधन करके प्रावधान किया गया है कि प्रधानमंत्री के पद से हटने वाले व्यक्ति को पद से हटने की तारीख से पांच साल की बजाये 10 साल तक यह सुरक्षा प्रदान की जायेगी. इसके बाद, इस कानून में 1999 में एक बार फिर संशोधन किया गया.

इस कानून की धारा 2:एः में एसपीजी की ‘सक्रिय ड्यूटी’ को भी परिभाषित किया गया है. इसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों या पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों, वे जहां कहीं भी हों, को शारीरिक रूप से सुरक्षा प्रदान करने के लिये तैनात इस समूह का प्रत्येक सदस्य अपनी तैनात के समय हमेशा ही सक्रिय ड्यूटी पर होगा.

पिछले कुछ सालों से यह देखा जा रहा था कि एसीपीजी की सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति अपनी विदेश यात्राओं के दौरान इस सुरक्षा कवच में नहीं होते हैं. ये अतिविशिष्ट व्यक्ति बगैर एसपीजी सुरक्षा कवच के विदेश जाते हैं और इस तरह उनकी सुरक्षा का खतरा बढ़ जाता है.

केन्द्र सरकार की पहल और उच्चतम न्यायालय के 22 साल पुराने फैसले के मद्देनजर एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों के लिये इसके सुरक्षा कवच के बगैर देश-विदेश में कहीं भी जाना उचित नहीं है. बेहतर होगा कि एसपीजी की सुरक्षा प्राप्त अतिविशिष्ट व्यक्ति अपनी सुरक्षा को लेकर किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरतें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं.यह आलेख उनके निजी विचार हैं)

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