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Monday, 17 November, 2025
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बांग्लादेश की ‘लौह महिला’ शेख हसीना के उदय से लेकर पतन तक की कहानी

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नयी दिल्ली/ढाका, 17 नवंबर (भाषा) बांग्लादेश की राजनीति में शेख हसीना का नाम पिछले दो दशक से केंद्र में बना रहा, फिर चाहे वह सियासी स्थिरता का समय हो या फिर उथल-पुथल का दौर।

हसीना के समर्थकों के लिए वह एक आधुनिक, विकासशील बांग्लादेश का निर्माण करने वाली ‘लौह महिला’ हैं। वहीं, आलोचकों की नजरों में हसीना एक तानाशाह थीं, जिन्होंने सत्ता की भूख में सड़कों पर उठी आवाज को अनसुना कर दिया।

हालांकि, शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 77 वर्षीय अपदस्थ प्रधानमंत्री (हसीना) ने जिस न्यायाधिकरण का गठन कट्टर युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए किया था, वही एक दिन उन्हें कठघरे में ला खड़ा करेगा।

बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने सोमवार को हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई।

हालांकि, पूरी सुनवाई हसीना की गैर-मौजूदगी में हुई, लेकिन इसे दुनिया के किसी देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली महिला शासनाध्यक्ष के दशकों लंबे सियासी जीवन में अब तक का सबसे नाटकीय मोड़ माना जा रहा है।

हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के तुंगीपाड़ा में एक सियासी परिवार में हुआ था, जिसने आगे चलकर एक राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के अस्तित्व को आकार दिया। उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान ने 1971 में भारत की मदद से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान के शासन से मुक्ति दिलाई और बांग्लादेश राष्ट्र की स्थापना की तथा उसके पहले राष्ट्रपति बने।

हसीना ने ढाका विश्वविद्यालय से बांग्ला साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और फिर छात्र राजनीति में सक्रिय हो गईं। 1968 में उन्होंने परमाणु वैज्ञानिक एमए वाजेद मिया से शादी रचाई, जिनका शोध की दुनिया में रचा-बसा सीधा-सादा जीवन बांग्लादेश की राजनीति के उथल-पुथल भरे माहौल से बिल्कुल विपरीत था।

वाजेद का 2009 में 67 साल की उम्र में निधन हो गया। वह अंतिम समय तक हसीना के जीवन के आधार स्तंभ बने रहे। वाजेद और हसीना की दो संतानें हैं-बेटा सजीब वाजेद जॉय और बेटी साइमा वाजेद पुतुल।

हसीना के लिए सियासी डगर अगस्त 1975 के सैन्य तख्तापलट के बाद कठिन हो गई, जिसमें उनके माता-पिता, तीन भाइयों और परिवार के कई अन्य सदस्यों की हत्या कर दी गई। वह और उनकी छोटी बहन रेहाना केवल इसलिए बच गईं, क्योंकि दोनों विदेश में थीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले भारत ने उन्हें शरण दी।

छह साल बाद मई 1981 में हसीना बांग्लादेश लौटीं, जहां उन्हें उनकी अनुपस्थिति में ‘अवामी लीग’ का महासचिव चुना गया था। हालांकि, स्वदेश वापसी पर हसीना को उनकी प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया से कड़ी चुनौती मिली, जो दिवंगत राष्ट्रपति जियाउर रहमान की विधवा थीं।

बांग्लादेश में हसीना और जिया के बीच की सियासी प्रतिद्वंद्विता और वैचारिक संघर्ष ‘बेगमों की लड़ाई’ के रूप में सुर्खियों में छाया रहा तथा तीन दशक से अधिक समय तक इसने देश की राजनीति की दिशा तय की।

हसीना पहली बार 1996 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं, जब उन्होंने कड़े मुकाबले में जिया को मात दी। हालांकि, 2001 में वह सत्ता से बाहर हो गईं, लेकिन 2008 में उन्होंने भारी बहुमत से वापसी की। इसी के साथ उनके शासन का एक लंबा दौर शुरू हुआ।

हसीना के नेतृत्व में ‘अवामी लीग’ ने 2008 के आम चुनाव में भारी जीत हासिल की। 2014 के आम चुनाव, जिसका जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बहिष्कार किया था, उसमें भी हसीना नीत ‘अवामी लीग’ बाजी मारने में सफल रही। इसके बाद 2018 के चुनाव में हसीना की पार्टी ने जीत की ‘हैट्रिक’ लगाई, जिससे वह दुनिया के किसी देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली महिला शासनाध्यक्षों में से एक बन गईं।

हसीना के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान, बांग्लादेश में तीव्र आर्थिक विकास दर्ज किया गया, पद्मा ब्रिज जैसे प्रमुख बुनियादी ढांचों का निर्माण हुआ और गरीबी उन्मूलन की दिशा में प्रगति देखी गई। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश एक वैश्विक परिधान महाशक्ति भी बन गया।

हालांकि, इन उपलब्धियों के बीच हसीना पर विरोधी आवाजों को कुचलने, मीडिया पर अंकुश लगाने, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश देने और सरकारी सुरक्षा एजेंसियों को अत्यधिक शक्तियां प्रदान करने जैसे आरोप भी लगते रहे।

साल 2024 में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सैनिकों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की घोषणा को लेकर हसीना सरकार को छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध-प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा, जिसने धीरे-धीरे देशव्यापी आंदोलन का रूप अख्तियार कर लिया।

प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी, जिसके चलते हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और भारत भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

हसीना के अपदस्थ होने के बाद मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने आईसीटी का पुनर्गठन किया, जिसने 2024 में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को लेकर हसीना और अन्य पर मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मुकदमा चलाया।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में पिछले साल 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच हुए छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध-प्रदर्शन के दौरान लगभग 1,400 लोग मारे गए थे।

सोमवार को आईसीटी ने कई महीनों की सुनवाई के बाद हसीना को मौत की सजा सुनाई।

भारत में निर्वासन में रह रहीं हसीना अब सीमा पार से उस देश को अपने उदय से लेकर पतन तक छोड़ी गई विरासत से जूझते देख रही हैं, जिसके विकास में उन्होंने अहम योगदान दिया और जिस पर उन्होंने लंबे समय तक मजबूती से शासन किया।

भाषा

पारुल नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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