चेन्नई, 16 नवंबर (भाषा) ब्राजील में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में विचार-विमर्श भले ही मुख्यतः केंद्रीकृत जलवायु नीतियों पर केंद्रित है, लेकिन चेन्नई में हाल ही में हुए एक समुदाय-आधारित अध्ययन में पाया गया है कि आपदा प्रबंधन के मामले में समुदाय-संचालित बचाव मॉडल कहीं ज्यादा प्रभावी है।
‘बाढ़ के बीच भविष्य-व्यासरपडी, चेन्नई में बाढ़ के खतरे से निपटने के लिए सामुदायिक अनुभव और मांग’ शीर्षक वाली यह अध्ययन रिपोर्ट ‘चेन्नई क्लाइमेट एक्शन ग्रुप (सीसीएजी)’, व्यासाई थोझार्गल और ‘यूथ क्लाइमेट रेजिलियेंस मूवमेंट’ ने जारी की।
सीसीएजी के पर्यावरण स्वास्थ्य शोधकर्ता और अध्ययन के लेखकों में से एक संबाथ ने रिपोर्ट के साथ जारी बयान में कहा, “व्यासरपडी का अनुभव यह साबित करता है कि समुदाय-संचालित मॉडल और स्थानीय ज्ञान के बिना, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कोई भी कदम उन लोगों के लिए असफल साबित होगा, जो सबसे अधिक जोखिम में हैं।”
व्यासरपडी में सत्यमूर्ति नगर, एमजीआर नगर, थेबर नगर, दामोदर नगर, जेजेआर नगर और कुडिसाई पगुथी के 120 घरों को लेकर किए गए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन में शामिल 99.2 प्रतिशत निवासी बाढ़ से सीधे प्रभावित हुए थे और बाढ़ का पानी उनके घरों में औसतन 3.4 फीट की गहराई तक प्रवेश कर गया था।
अध्ययन में पाया गया कि व्यासरपडी, जो समुद्र तल से केवल सात-आठ मीटर ऊपर स्थित है और बकिंघम नहर, कैप्टन कॉटन नहर और ओटेरी नाला से घिरा हुआ है, वहां बाढ़ का खतरा बहुत अधिक है।
अध्ययन के मुताबिक, व्यासरपडी के बाढ़ के खतरे के प्रति अधिक संवेदनशील होने की मुख्य वजह अतिक्रमित आर्द्रभूमि, सीमित जल निकासी चैनल और एन्नोर क्रीक तथा कोसास्थलाई नदी से आने वाले ज्वारीय पानी का संयोजन है।
भाषा पारुल नरेश
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