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Saturday, 15 November, 2025
होमराजनीतिवह चेतावनियां जिन्हें राहुल गांधी ने नज़रअंदाज़ किया? बिहार में कांग्रेस की हार के कारण

वह चेतावनियां जिन्हें राहुल गांधी ने नज़रअंदाज़ किया? बिहार में कांग्रेस की हार के कारण

कांग्रेस बिहार में लड़ी 61 सीटों में से सिर्फ 6 सीटें जीत पाई और उसका स्ट्राइक रेट सिर्फ 9.8 प्रतिशत रहा — बेहद कम.

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पटना: 10 नवंबर को, बिहार में दूसरे चरण के मतदान से एक दिन पहले, राहुल गांधी ने कहा था कि वे “आश्वस्त” हैं.

राहुल को भरोसा था कि बिहार चुनाव परिणाम आने के बाद वे ऐसे डेटा पेश कर पाएंगे जिससे साबित होगा कि बीजेपी ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के साथ मिलकर “वोट चोरी” की है.

क्या यह शुरुआती संकेत था कि राहुल को पहले ही अंदाज़ा हो गया था कि पार्टी बिहार में खराब प्रदर्शन की ओर जा रही है? वरना वे क्यों यह संकेत देते कि पार्टी का हाल हरियाणा जैसा हो सकता है?

कांग्रेस बिहार इकाई के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “मैं उनकी ओर से नहीं बोल सकता, लेकिन राज्य इकाई के नेता हमारे प्रदर्शन को लेकर बहुत आशावान नहीं थे. फिर भी, हमने यह नहीं सोचा था कि हम डबल डिजिट तक भी नहीं पहुंच पाएंगे.”

पहले से ही राज्य की राजनीति में हाशिये पर चल रही कांग्रेस अब और भी नीचे आ गई है. उसने 61 सीटों में से सिर्फ 6 सीटें जीतीं और सिर्फ 9.8 प्रतिशत की बेहद कम स्ट्राइक रेट दर्ज की.

शुक्रवार तक, बिहार में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन 2010 में था, जब उसने सिर्फ चार सीटें जीती थीं. 2010 का चुनाव नीतीश कुमार की ‘बिहार में वापसी की स्टोरी’ की छवि को और मजबूत करता है.

कांग्रेस की बिहार इकाई के अंदर से कुछ आवाज़ें थीं जो हाईकमान को समझाने की कोशिश कर रही थीं कि राहुल गांधी का “वोट चोरी” को अभियान का मुख्य नारा बनाना गलत फैसला है, क्योंकि यह स्लोगन ज़मीन पर असर नहीं कर रहा था.

अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (AICC) के एक पदाधिकारी, जो बिहार में प्रभारी थे, ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने नेतृत्व को चेतावनी भी दी थी कि अगर पार्टी ने अपना तरीका नहीं बदला तो वह 2020 का प्रदर्शन—जब कांग्रेस ने 70 में से 19 सीटें जीती थीं—भी दोहरा नहीं पाएगी.

पदाधिकारी ने कहा, “हमें डर था कि ‘वोट चोरी’ को अभियान का सबसे बड़ा आधार बनाना जोखिम भरा कदम है, क्योंकि कई संकेत थे कि हमारा प्रदर्शन खराब रहने वाला है, भले ही कोई भी इतना खराब नतीजा उम्मीद नहीं कर रहा था. अब बीजेपी ‘वोट चोरी’ अभियान को पूरी तरह खारिज कर देगी.”


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राहुल का बिहार अभियान

चेतावनी देने वाली आवाज़ों के बावजूद, राहुल गांधी ने दो हफ्तों तक चलने वाली ‘वोटर अधिकार यात्रा’ जारी रखी, जहां-जहां यह यात्रा गई, वहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचे, जिससे कांग्रेस नेतृत्व—जिसमें बिहार के प्रभारी कृष्ण अल्लावरू भी शामिल थे को यकीन हो गया कि पार्टी के पक्ष में माहौल बन रहा है.

यात्रा ने पार्टी में नई जान डाल दी है, इस भरोसे के साथ, अल्लावरू ने सीट-बंटवारे की बातचीत में आरजेडी के साथ कड़ा रुख अपनाने की कोशिश की. उनके पास बातचीत संभालने की पूरी ज़िम्मेदारी थी, क्योंकि 1 सितंबर को यात्रा खत्म होने के बाद राहुल गांधी दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर चले गए थे. वे पहले चरण के मतदान से केवल कुछ दिन पहले लौटे और प्रचार किया.

कांग्रेस नेता अल्लावरू ने बचाव करते हुए कहा, “पार्टी के नज़रिए से, उन्होंने वही किया जिसकी उम्मीद थी—अच्छी सीटों की मांग की. 2020 में हमारा स्ट्राइक रेट ग्रैंड अलायंस की सभी पार्टियों में सबसे कम थी, क्योंकि हमें ऐसी सीटें दी गई थीं जिन पर जीतना लगभग नामुमकिन था.”

हालांकि, सभी इस राय से सहमत नहीं थे. उदाहरण के तौर पर, चुनावों के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री शकील अहमद—जो मधुबनी से दो बार के सांसद रह चुके हैं, ने पार्टी छोड़ दी. उन्होंने नाराज़गी जताई कि अल्लावरू या राजेश राम, दोनों में से किसी ने भी चुनाव से जुड़े किसी मसले पर उनसे—जो राज्य इकाई के अध्यक्ष हैं—सलाह-मशविरा नहीं किया.

सीट-बंटवारे की बातचीत जहां मुश्किलों में फंस रही थी, वहीं कांग्रेस, आरजेडी के बढ़ते दबाव के बावजूद, तेजस्वी यादव को विपक्ष के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन देने से बचती रही. उसका तर्क था कि ऐसा करने से गैर-यादव ओबीसी वोट एनडीए के पक्ष में एकजुट हो जाएंगे.

अल्लावरू के करीबी नेता ने शुक्रवार को कहा, “जैसा कि नतीजे दिखाते हैं, यह फैसला ज़रूरी नहीं कि गलत था. सालों से अगड़ी जातियों ने कांग्रेस से दूरी बना ली है, इसलिए पार्टी के लिए अपना दायरा बढ़ाना समझदारी थी. इसी सोच के तहत कई कोशिशें की गईं, जैसे EBC (आर्थिक रूप से कमजोर पिछड़े वर्ग) के लिए अलग घोषणापत्र. फिर भी, इतना बुरा नतीजा क्यों आया—इसका कोई आसान जवाब नहीं है.”

कांग्रेस और आरजेडी द्वारा 24 सितंबर को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की मौजूदगी में जारी किए गए ईबीसी घोषणापत्र में, एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून जैसी ही एक नई क़ानूनी सुरक्षा देने का वादा किया गया था.

विपक्ष ने यह भी वादा किया था कि पंचायतों और शहरी निकायों में ईबीसी आरक्षण 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जाएगा. इसे एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा गया, ताकि उस वर्ग में पकड़ बनाई जाए जिसे परंपरागत रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू का समर्थक माना जाता है.

आखिर में, हालांकि, मुसलमान—जिन्हें बिहार में कांग्रेस का पक्का वोट बैंक माना जाता था—ने दो सीटों पर कांग्रेस की बजाय AIMIM को चुना. वहीं, तीन और सीटों पर AIMIM ने आरजेडी को मात दी.

2026 के विधानसभा चुनाव

पार्टी अब इस सवाल से जूझ रही है कि आगे क्या होगा, क्योंकि 2026 नज़दीक आ रहा है. असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में 2026 में चुनाव होंगे.

असम में, कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला है. केरल में उसका मुख्य मुकाबला वाम मोर्चे से है. तमिलनाडु में, कांग्रेस द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (डीएमके) के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है. पश्चिम बंगाल में, कांग्रेस ने पिछले कुछ चुनाव वाम मोर्चे के साथ मिलकर लड़े हैं, लेकिन लगातार हार का सामना करना पड़ा है.

2024 में राहुल गांधी के लोकसभा में विपक्ष के नेता बनने के बाद से, कांग्रेस नौ में से सात चुनाव हार चुकी है.

वह हरियाणा और महाराष्ट्र हार गई, जहां उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला था और आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में भी उसका प्रदर्शन खराब रहा, जहां वह लंबे समय से हाशिए पर रही है. केवल झारखंड और जम्मू-कश्मीर में ही इंडिया ब्लॉक को कुछ सफलता मिली है, जहां झामुमो और एनसी ने जीत दर्ज की, जिसमें कांग्रेस की थोड़ी सी मदद रही.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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